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गन्ना देश की एक प्रमुख वाणिज्यिक फ़सल है और लगभग 4.36 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। गन्ने का वार्षिक उत्पादन 281.6 मिलियन टन है (2002-03)। गन्ने की खेती कुल कृषि क्षेत्र के लगभग 3.0% भाग में की जाती है। यह प्रमुख नकदी फ़सलों में से एक है, जिसका देश में कृषि उत्पादन का सकल मूल्य लगभग 7.5% है। लगभग 50 मिलियन किसान अपनी जीविका के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मजदूर हैं, जो गन्ने के खेतों में काम करके अपनी जीविका कमाते हैं।  
गन्ना देश की एक प्रमुख वाणिज्यिक फ़सल है और लगभग 4.36 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। गन्ने का वार्षिक उत्पादन 281.6 मिलियन टन है (2002-03)। गन्ने की खेती कुल कृषि क्षेत्र के लगभग 3.0% भाग में की जाती है। यह प्रमुख नकदी फ़सलों में से एक है, जिसका देश में कृषि उत्पादन का सकल मूल्य लगभग 7.5% है। लगभग 50 मिलियन किसान अपनी जीविका के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मजदूर हैं, जो गन्ने के खेतों में काम करके अपनी जीविका कमाते हैं।  

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thumb|250px|गन्ने गन्ना देश की एक प्रमुख वाणिज्यिक फ़सल है और लगभग 4.36 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। गन्ने का वार्षिक उत्पादन 281.6 मिलियन टन है (2002-03)। गन्ने की खेती कुल कृषि क्षेत्र के लगभग 3.0% भाग में की जाती है। यह प्रमुख नकदी फ़सलों में से एक है, जिसका देश में कृषि उत्पादन का सकल मूल्य लगभग 7.5% है। लगभग 50 मिलियन किसान अपनी जीविका के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मजदूर हैं, जो गन्ने के खेतों में काम करके अपनी जीविका कमाते हैं।

देश में र्निमित सभी मुख्य मीठाकारकों के लिए गन्ना एक मुख्य कच्चा माल है। इसका उपयोग दो प्रमुख कुटीर उद्योगों नामतः गुड़ तथा खंडसारी उद्योगों में भी किया जाता है। इन दोनों उद्योगों से लगभग 10 मिलियन टन मीठाकारकों (गुड़ और खंडसारी) का उत्पादन होता है जिससे देश में हुए गन्ने के उत्पादन का लगभग 28-35% गन्ने का उपयोग होता है।

गन्ने की उपलब्धता

  • भारत में गन्ने की खेती का मुख्य भाग अर्ध-उष्णकटिबंधीय भाग है। इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, पंजाब, हरियाणा मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं। मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और असम के भी कुछ क्षेत्रों में गन्ना पैदा किया जाता है, लेकिन इन राज्यों में उत्पादकता बहुत ही कम है।
  • गन्ने की खेती व्यापक रुप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में की जाती है, जिसमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात राज्य शामिल हैं। चूंकि गन्ने, जो एक उष्णकटिबंधीय फ़सल है, के लिए इन राज्यों में अनुकूलतम कृषि जलवायु स्थिति है। अर्ध-ऊष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों की तुलना में ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पैदावार अपेक्षाकृत अधिक है।

गन्ने का उपयोग

भारत में 300 मिलियन टन के गन्ने उत्पादन की लगभग 35% मात्रा गुड़ और खंडसारी के विनिर्माण और चूसने के प्रयोजन के लिए उपयोग की जाती है। गुड़ और खंडसारी का विनिर्माण कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में मुख्य रुप से किया जाता है पर काफी अधिक मात्रा में गुड़ और खंडसारी आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में भी तैयार किया जाता है। 1996-2002 की अवधि के दौरान इन राज्यों में गन्ने से चीनी, गुड़ और खंडसारी के उत्पादन के लिए उपयोग में लाए जाने वाली गन्ने की मात्रा का ब्यौरा तालिका 3.2 में दिया गया है।

कम उत्पादकता के मुख्य कारण

  • हाल ही में गन्ने की खेती के अधीन क्षेत्र और उसकी पैदावार में काफी कमी हुई है जिसका मुख्य कारण लगभग पूरे उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पड़ा सूखा है। हाल में सूखे, गन्ने के मूल्य का विलम्ब से भुगतान और कम चीनी मूल्यों के असर से गन्ना उत्पादन में कमी आई है और कुछ चीनी मिलें बंद हुई हैं।
  • गन्ने पर वूली एफिड नाम के एक नए कीट के ग्रसन की घटना अगस्त, 2002 में बेलगाम जिले में सामने आई और भद्रा नहर क्षेत्रों और दक्षिणी कर्नाटक के कावेरी घाटी में भी धीरे-धीरे इसकी पहुंच हो गई। इसके प्रभाव और फैलने की बढ़ती दर और तीव्रता ने कावेरी घाटी में गन्ना किसानों के बीच खौफ पैदा कर दिया है जिन्होंने पहले से ही पिछले वर्षों के दौरान सूखे के कारण भारी नुक़सान उठाया था।

जल संरक्षण

thumb|250px|गन्ने

  • देश में कुल सिंचित क्षेत्र में से लगभग 58% नलकूपों एवं अन्य कुओं द्वारा, 32% नहरों द्वारा, 5% तालाबों द्वारा तथा शेष 5% अन्य स्रोतों द्वारा सिंचित है। जल संरक्षण के लिए, गन्ने के अधीन कुएं से सभी सिंचित क्षेत्र को द्रप्स (ड्रिप) सिंचाई के अधीन लाने की आवश्यकता है। द्रप्स सिंचाई से उत्पादन में वृद्धि करने तथा उर्वरकों एवं अन्य पोषक तत्वों के अनुकूलतम उपयोग में मदद मिलेगी।
  • पारिस्थिति की में कीट के बारे में पर्याप्त जानकारी की कमी तथा प्रौद्योगिकियों में इस स्थिति से निपटने के लिए तैयारी के बारे में जानकारी की कमी प्रभावी प्रबंधन कार्यों का सुझाव देने में प्रमुख चिंता का विषय रही है। अधिकांशतः उष्णकटिबंधीय एशियाई क्षेत्र में, ठंडे एवं मेघाच्छित मौसम (19-35 डिग्री सेल्सियस) के साथ-साथ उच्च सापेक्ष आर्द्रता (85%) में जंतुबाधा तेजी से होती है। अतः कीट की जैव पारिस्थितिकीय को ध्यान में रखते हुए इसके प्रसार एवं बुरे प्रभाव को कम करने के लिए कुछ कृषि वैज्ञानिक पद्धतियों का विकास किया जाना आवश्यक है। वसंतदादा शुगर इंस्टीटयूट ने प्राकृतिक प्रतिरोधकों यथा ट्रिचग्रामा, क्राइसोपेरा, इनकार्सिया, आइसो-टोमिया, डायफा आदि का विकास करना तथा मुहैया कराकर रोगों पर नियंत्रण रखने के लिए अपनी सेवा दी हैं।

वैकल्पिक उपयोग

  • निर्वात पात्र चीनी फैक्ट्रियां केवल प्लांटेशन व्हाइट शुगर का ही उत्पादन करने के लिए बाध्य हैं। समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए कुछ अभ्यावेदनों में यह सुझाव दिया गया कि इस प्रतिबंध को हटाया जा सकता है तथा चीनी फैक्ट्रियों को उनकी इच्छानुसार गुड़ तथा खंडसारी जैसे अन्य मीठाकारकों के उत्पादन की छूट दी जा सकती है।
  • समिति ने चीनी मिलों को चीनी के अलावा अन्य मीठाकारकों के विनिर्माण, यदि आवश्यक हों, के लिए अनुमति देने के विचार पर भी चर्चा की। समिति ने नोट किया कि व्हाइट शुगर के अलावा अन्य उत्पादों के विनिर्माण के लिए गन्ने के उपयोग की वाणिज्यिक तथा वैधानिक रुप से जांच की जानी चाहिए।



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