जातकर्म संस्कार: Difference between revisions

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Revision as of 05:15, 17 February 2011

thumb|जातकर्म संस्कार
Jatkarm Sanskara

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में जातकर्म संस्कार चतुर्थ संस्कार है। गर्भस्थ बालक के जन्म होने पर यह संस्कार किया जाता है - 'जाते जातक्रिया भवेत्।' इसमें सोने की शलाका से विषम मात्रा में घृत और मधु घिस करके बालक को चटाया जाता है। इससे माता के गर्भ में जो रस पीने का दोष है, वह दूर हो जाता है और बालक की आयु तथा मेधाशक्ति को बढ़ाने वाली औषधि बन जाती है। सुवर्ण वातदोष को दूर करता है। मूत्र को भी स्वच्छ बना देता है और रक्त के ऊर्ध्वगामी दोष को भी दूर कर देता है। मधु लाला (लार)-का संचार करता है और रक्त का शोधक होने के साथ-साथ बलपुष्टिकारक भी है।

उत्पन्न हुए बालक के जो कर्म किए जाते है, उनको जातकर्म कहा जाता है| इन कर्मों में बच्चे को स्नान कराना, मुख आदि साफ करना, मधु और घी आदि चटाया जाता है|, स्तनपान तथा आयुप्यकरण है| इतने कर्म सूतिका घर में बच्चे के करने होते है| इसलिये इनको संस्कार का रुप दिया गया है|

शिशु के उत्पन्न हो जाने पर अपने कुल देवता और वृद्ध पुरुषों को नमस्कार कर पुत्र का मुख देखकर नदी-तालाब आदि में शीतल जल से उत्तराभिमुख हो, स्नान करें| यदि मूल-ज्येष्ठा आदि अनिष्ट काल में शिशु उत्पन्न हुआ हो तो मुख देखे बिना स्नान कर लें|

स्नान-इसके लिए बच्चों के शरीर पर उबटन लगाया जाता है| साबुन भी बरता जाता है| परंतु साबुन से उबटन सही है| उबटन में चने का बारीक मैदा, (बेसन) नेल, दही मिलाकर मलते है| चने की अपेक्षा मसूर या मूंग का बारीक आटा उत्तम है|

मुख को साफ करना - बच्चा जब गर्भ में होता है, तब न तो श्वास लेता है, और न मुख ही खोलता है| ये दोनों अवश्य बंद रहे इसलिये प्रकृति इनमें कफ भर देती है| बंद रहने के कारण से बच्चा गर्भोदक को अंदर पी नहीं सकता| परंतु उत्पन्न होने पर इन मार्गो को कफ से खाली करके खोलना जरुरी होता है| इसलिए इस कफ को साधारणतया अंगुलि से साफ कर दें| पंरतु अगुंली से तो कफ मुख के अंदर का या जहाँ तक अँगुली जाती है, वहां तक का बाहर आ सकता है| आमाशय या फेफडों में भरा कफ बाहर नहीं आता| उसके लिए तो बच्चे को वमन ही कराना चाहिए अथवा उसे ऐसी वस्तु देनी चाहिए जिससे कफ निकले| इसके लिए आयुर्वेंद में सैंधव (नमक) उत्तम माना है| इसे अकेला ना देकर घी में मिलाकर देते है|

सिर पर तेल या घी लगाना- तालु को दृढ और मजबुत बनाने के लिए बच्चे के तालु पर घी या तेल लगाया जाता है| ताकि बच्चे का पोषण हो| धृत, बुद्धि, स्मृति, प्रज्ञा, अग्नि, आयु, वीर्य, आखों की रोशनी, बालक वृद्ध के लिए सुकुमारता और स्वर की शक्ति को बढाता है| यह नाना योजनाओं से हजारों काम करता है| जिस प्रकार कमल के पत्ते पर पानी नहीं लगता, वैसे ही स्वर्ण खाने वाले के शरीर को विष प्रभावित नहीं करता|

हमारी सम्मति में किसी शुभ दिन इस संस्कार का संम्पन्न कर लेना चाहिए|


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