पुरूरवा: Difference between revisions
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Revision as of 05:22, 24 February 2011
एक प्राचीन राजा जिनकी राजधानी गंगा तट पर प्रयाग में थी। इन्हें बृहस्पति की पत्नी तारा और चंद्रमा के संयोग ने उत्पन्न बुध का पुत्र बताया जाता है। इनकी माता मनु की पुत्री इला थी। पुरूरवा रूपवान और पराक्रमी था। नारद के मुख से देवसभा में इनके गुणों का बखान सुनकर उर्वशी इन पर मुग्ध हो गई । वह शाप के कारण भूतल पर आई किंतु केशी नामक दैत्य के हाथों में पड़ गई। पुरूरवा ने उर्वशी को छुड़ाया और विवाह के लिए रखी हुई उसकी ये शर्ते मान लीं—
- उर्वशी की प्रिय तीनों भेड़ो की रक्षा की जाएगी।
- शैया को छोड़कर पुरूरवा कभी भी उसे नग्न न दिखाई पड़ेंगे।
उर्वशी वापस स्वर्गलोक को
गंधर्व उर्वशी को वापस स्वर्गलोक में ले जाना चाहते थे। अत: एक रात वे उसकी भेड़ों को खोलकर ले जाने लगे। यह देखकर उर्वशी चिल्लाई और पुरूरवा नग्नावस्था में ही भेड़ो को बचाने के लिए दौड़े। इतने में बिजली कौंधी और उर्वशी ने राजा को नग्नावस्था में देख लिया। विवाह की शर्त के अनुसार वह स्वर्ग चली गई किंतु राजा की दीन-दशा देखकर बीच-बीच में उनसे मिलती रही। उर्वशी से पुरूरवा के छह पुत्र उत्पन्न हुए।
कथा
कालिदास ने पुरूरवा और उर्वशी का वैदिक और उत्तर वैदिक वर्णन किया है। कालिदास के नाटक में उर्वशी एक कोमलांगी सुकुमार सुन्दरी है। सुरलोक की सर्वश्रेष्ठ नर्तकी उर्वशी को इन्द्र बहुत चाहते थे। एक दिन जब चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, "हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।" उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, "हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। "अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा," तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे। "इतना कहकर उर्वशी वहाँ से चली गई। जब इन्द्र को इस घटना के विषय में ज्ञात हुआ तो वे अर्जुन से बोले," वत्स! तुमने जो व्यवहार किया है, वह तुम्हारे योग्य ही था। उर्वशी का यह शाप भी भगवान की इच्छा थी, यह शाप तुम्हारे अज्ञातवास के समय काम आयेगा। अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ही तुम पुंसत्वहीन रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने पर तुम्हें पुनः पुंसत्व की प्राप्ति हो जायेगी।"