महाद्वीप: Difference between revisions
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सागर तल से एक औसत ऊँचाई तक ऊपर उठे हुए पृथ्वी के क्रमबद्ध विस्तृत भू-भागों को कहते हैं। ये द्वीपों से केवल आकार में ही भिन्न होते हैं। इनके अंतर्गत सागर निहित लगभग 600 फुट तक की महाद्वीपीय मग्नतट भूमि तथा महाद्वीपीय मग्नढाल को भी सम्मिलित किया जाता है। विश्व में सात महाद्वीप हैं:
- एशिया (1,64,94,217 वर्ग मील)
- अफ्रीका (1,15,29,480 वर्ग मील)
- उत्तरी अमरीका (93,63,866 वर्ग मील)
- ऐंटार्कटिका (53,62,626 वर्ग मील)।
ऑस्ट्रेलिया एक लघु महाद्वीप है। कभी-कभी ऐसा भी कहा जाता है कि महाद्वीप के बीच में बेसिन तथा बेसिन के दोनों ओर पर्वतमालाएँ भी होनी चाहिए, किंतु यूरेशिया इसका अपवाद है। अधिकतर महाद्वीप बड़े-बड़े पर्वतों द्वारा सीमाबद्ध हैं।
उपर्युक्त सात महाद्वीपों के अंतर्गत विश्व का 28% भाग आता है। यूरोप को भौतिक दृष्टि से एशिया का ही भाग माना जा सकता है। अफ्रीका एवं यूरोप महाद्वीप एक दूसरे से जिब्राल्टर जलसंयोजक, बाब-अल-मांदेब तथा स्वेज नहर द्वारा अलग होते हैं। अफ्रीका, यूरोप, एवं एशिया महाद्वीप चारों ओर से महासागरों द्वारा घिरे हैं। ये तीनों महाद्वीप उत्तर में केप चिल्यापिनस्क[1] तथा दक्षिण में केप ऑव गुड होप तक विस्तृत हैं। ये तीनों महाद्वीप भूखंड के 66% भाग में विस्तृत हैं एवं इनमें विश्व की 7/8 जनसंख्या निवास करती है। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट[2] तथा सबसे गहरा स्थान[3] मृतसागर एशिया में स्थित है।
उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका महाद्वीप ऐटलैंकि, प्रशांत तथा आर्कटिक महासागरों से घिरै हैं और पनामा नहर द्वारा विभक्त हैं। ऑस्ट्रेलिया तथा ऐंटार्कटिका दोनों महाद्वीप दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं। ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप ऐटलैंटिक, प्रशांत एवं हिंद महासागरों से घिरा तथा ऐंटार्कटिका, को छोड़कर यह सबसे विरल बस्ती वाला महाद्वीप है। ऐंटार्कटिका, यूरोप तथा आस्ट्रेलिया से बड़ा है, किंतु पूर्णरूपेण निर्जन है। इसके बारे में अभी तक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि यह एक ही भूखंउ है या बर्फ़ में दबे हुए कई द्वीपों का एक समूह है।
यद्यपि साधारण तौर पर मनुष्य की दृष्टि में ये महाद्वीप स्थिर हैं, तथापि वास्तव में ये गतिमान हैं और एक दूसरे से अलग होते जा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाद्वीप महासागरों की अपेक्षा हलकी चट्टानों से बने हैं, जो सागरों की भारी तली पर तैर रहे हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार पृथ्वी के महाद्वीपों का प्रवाह ही पर्वतों की उत्पत्ति का कारण हैं। कुछ जीव एक दूसरे से दूरस्थ महाद्वीपों में मिलते हैं, जिनका विवरण संकेत करता है कि ये भाग पूर्वकाल में एक दूसरे से अवश्य ही संबद्ध रहे होंगे। दूरस्थ महाद्वीपों की चट्टानों और उनमें प्राप्त होने वाले खनिजकों की उपलब्धि भी प्रवाह सिद्धांत के आधार पर समझी जा सकती है। पिछले कई भू-वैज्ञानिक कालों में समुद्र के जल तल में भी काफ़ी अंतर आता रहा है। कुछ महाद्वीपों में पर्वत श्रृंखलाओं का विवरण भी उन स्थलखंडों के पूर्वकालिक संबंध को बताता है। इन्हीं सब बातों से यह सिद्ध होता है कि ये महाद्वीप गतिशील हैं।
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