कवितावली -तुलसीदास: Difference between revisions

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Revision as of 10:32, 16 June 2011

'कवितावली' गोस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाओं में है। सोलहवीं शताब्दी में रची गयी कवितावली में श्री रामचन्द्र जी के इतिहास का वर्णन कवित्त, चौपाई, सवैया आदि छंदों में की गई है। रामचरितमानस के जैसे ही कवितावली में भी सात काण्ड हैं। ये छन्द ब्रजभाषा में लिखे गये हैं और इनकी रचना प्राय: उसी परिपाटी पर की गयी है जिस परिपाटी पर रीति काल का अधिकतर रीति- मुक्त काव्य लिखा गया।

कवितावली की छंद रचना

इन छन्दों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -

  1. एक तो वे जो रामकथा के सम्बन्ध के है और
  2. दूसरे वे जो अन्य विविध विषयों के हैं।

समस्त छन्द सात खण्डों में विभक्त हैं। प्रथम प्रकार के छ्न्द रचना के लंका- काण्ड तक आते हैं और द्वितीय प्रकार के छन्द उत्तरकाण्ड में रख दिये गये हैं।

कथा

कथा- सम्बन्धी छन्द 'गीतावली' के पदों की भाँति- वरन् उससे भी अधिक स्फुट ढ़ग से लिखे गये हैं। अरण्य- कांड का एक ही छन्द है जिसमें हरिण के पीछे राम के जाने मात्र का उल्लेख है। किष्किन्धा काण्ड की कथा का एक ही छन्द नहीं है: जो एक छ्न्द किष्किन्धा काण्ड के शीर्षक के नीचे दिया भी गया है, वह वास्तव में सुन्दर काण्ड की कथा का है, क्योंकि उसमें हनुमान के समुद्र लाँघने के सिन्धु- तीर के एक भूधर पर उचक कर चढ़ने का उल्लेख हुआ है। रचना में उत्तरकाण्ड का कथा- विषयक कोई छन्द नहीं है। इसके उत्तरकाण्ड में प्रारम्भ में राम के गुण- गान के कुछ छ्न्द हैं और तदनंतर कुछ स्फुट विषयों के छ्न्दों के आने के बाढ आत्म- निवेदन विषयक छन्द आते हैं। इन आत्म- निवेदन विषयक छन्दों में कवि ने प्राय: अपने जीवन के विभिन्न भागों पर दृष्टिपात किया है, जो उसके जीवनवृत के तथ्यों को स्थिर करने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इनके अतिरिक्त कुछ छ्न्दों में कवि ने सीधे- सीधे भी अपने और समाज के अनेक तथ्यों पर प्रकाश डाला है। उत्तर काण्ड के ये समस्त छन्द अप्रतिम महत्त्व के है।

कवितावली का काव्य- शिल्प

'कवितावली' का काव्य- शिल्प मुक्तक काव्य का है। उक्तियों की विलक्षणता, अनुप्रासों की छटा, लयपूर्ण शब्दों की स्थापना कथा भाग के छ्न्दों में दर्शनीय है। आगे रीति काल में यह काव्य शैली बहुत लोकप्रिय हुई और इस प्रकार तुलसीदास इस काव्य शैली के प्रथम कवियों में से ज्ञात होते हैं फिर भी उनकी 'कवितावली' के छ्न्दों में पूरी प्रौढ़ता दिखाई पड़ती है। कुछ छ्न्द तो मुक्तक शिल्प की दृष्टि से इतने सुन्दर बन पड़े हैं कि उनसे सुन्दर छ्न्द पूरे रीति साहित्य में भी कदाचित ही मिल सकेंगे, यथा बालकाण्ड के प्रथम सात छ्न्द। इसका कारण कदाचित यह है कि इसके अधिकतर छन्द तुलसीदास के कवि जीवन के उत्तरार्द्ध के है। इसकी कथा पूर्ण रूप से 'रामचरित मानस' का अनुसरण करती है, यह तथ्य भी इसी अनुमान की पुष्टि करता है।

कवितावली का रचना- काल

हिन्दी रीति धारा का प्रारम्भ केशव की 'कविप्रिया' तथा 'रसिकप्रिया' से माना जा सकता है। हो सकता है कि 'कवितावली' के अधिकतर छ्न्द इनके रचना- काल के आस- पास और बाद के हों । आत्मोल्लेख के जो छ्न्द उत्तरकाण्ड में आते हैं उनमें भी तुलसीदास के कवि- जीवन के उत्तरार्द्ध की ही घटनाओं का उल्लेख हुआ है। कुछ छ्न्द तो कवि के जीवन के निरे अंत के ज्ञात होते हैं। इसलिए 'कवितावली' के छ्न्दों का रचना- काल संख्या 1655 से 1680 तक ज्ञात होता है।

कवितावली का संकलन

'कवितावली' का संकलन कब हुआ होगा, यह विचारणीय है, क्योंकि रचना तिथि का उल्लेख नहीं हुआ है। इसकी जो भी प्रतियाँ अभी तक मिली हैं, उनके छ्न्दों तथा छ्न्द- क्रम में अंतिम कुछ छन्दों को छोड़कर कोई अंतर नहीं मिलता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसका संकलन कवि ने अपने जीवन काल में ही कर दिया था। उसके देहावसान के बाद जो कवित्त, सवैये और भी प्राप्त हुए उन्हें रचना के अंत में जिस प्रकार वे प्राप्त होते गये, लोगों ने जोड़ लिया; इसीलिए अंत के कुछ छन्दों के विषय में प्रतियों में यह अंतर मिलता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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