अगस्त्यवट: Difference between revisions
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*[[महाभारत]] [[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]]<ref>महाभारत आदि पर्व 214,2</ref> में अगस्त्यवट का उल्लेख इस प्रकार है- 'अगस्त्यवटमासाद्य वशिष्ठस्य च पर्वतं, भृगुतुंगे च कौंतेय: कृतवाञ्छौचमात्मन:'। | *[[महाभारत]] [[आदि पर्व महाभारत|आदि पर्व]]<ref>महाभारत आदि पर्व 214,2</ref> में अगस्त्यवट का उल्लेख इस प्रकार है- 'अगस्त्यवटमासाद्य वशिष्ठस्य च पर्वतं, भृगुतुंगे च कौंतेय: कृतवाञ्छौचमात्मन:'। | ||
*अपने द्वादशवर्षीय वनवासकाल में [[अर्जुन]] ने इस तीर्थ की यात्रा, गंगा-द्वार-[[हरिद्वार]] से आगे चलकर की थी। | *अपने द्वादशवर्षीय वनवासकाल में [[अर्जुन]] ने इस तीर्थ की यात्रा, गंगा-द्वार-[[हरिद्वार]] से आगे चलकर की थी। | ||
*यह स्थान [[हिमालय]] पर्वत पर था- 'प्रययौ हिमवत्पार्श्व ततो वज्रधरात्मज:।'<ref>[[आदि पर्व | *यह स्थान [[हिमालय]] पर्वत पर था- 'प्रययौ हिमवत्पार्श्व ततो वज्रधरात्मज:।'<ref>[[आदि पर्व महाभारत]] 214,1</ref> | ||
Revision as of 11:31, 5 July 2011
- महाभारत आदि पर्व[1] में अगस्त्यवट का उल्लेख इस प्रकार है- 'अगस्त्यवटमासाद्य वशिष्ठस्य च पर्वतं, भृगुतुंगे च कौंतेय: कृतवाञ्छौचमात्मन:'।
- अपने द्वादशवर्षीय वनवासकाल में अर्जुन ने इस तीर्थ की यात्रा, गंगा-द्वार-हरिद्वार से आगे चलकर की थी।
- यह स्थान हिमालय पर्वत पर था- 'प्रययौ हिमवत्पार्श्व ततो वज्रधरात्मज:।'[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत आदि पर्व 214,2
- ↑ आदि पर्व महाभारत 214,1