मणिमंगलम: Difference between revisions

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*मणिमंगलम [[तमिलनाडु]] के चिंगलपट्टू ज़िले में कांजीवरम् ताल्लुक के पूर्वी छोर पर स्थित एक गाँव है। जो दक्षिण रेलवे के वण्डलूर स्टेशन से छः मील पश्चिम में स्थित है।  
*मणिमंगलम [[तमिलनाडु]] के चिंगलपट्टू ज़िले में कांजीवरम् ताल्लुक के पूर्वी छोर पर स्थित एक गाँव है। जो दक्षिण रेलवे के वण्डलूर स्टेशन से छः मील पश्चिम में स्थित है।  
*[[संस्कृत साहित्य]] में मणिमंगलम् को 'रत्नाग्रहार' कहा गया है।  
*[[संस्कृत साहित्य]] में मणिमंगलम् को 'रत्नाग्रहार' कहा गया है।  
*[[चोल]] शासक राजराज प्रथम के समय उसकी रानी लोक महादेवी के नाम पर इस नगर को लोकमहादेवी चतुर्वेदिमंगलम् कहा जाने लगा। लेकिन उसके शासक के पन्द्रहवें वर्ष के पश्चात् और उसके उत्तराधिकारियों में कुलोत्तुंग प्रथम तक के नरेशों के शासनकाल में उत्कीर्ण अभिलेखों में मणिमंगलम् को राजचूड़ामणि चतुर्वेदिमंगलम् कहा गया है।  
*चोल शासक राजराज प्रथम के समय उसकी रानी लोक महादेवी के नाम पर इस नगर को लोकमहादेवी चतुर्वेदिमंगलम् कहा जाने लगा। लेकिन उसके शासक के पन्द्रहवें वर्ष के पश्चात् और उसके उत्तराधिकारियों में कुलोत्तुंग प्रथम तक के नरेशों के शासनकाल में उत्कीर्ण अभिलेखों में मणिमंगलम् को राजचूड़ामणि चतुर्वेदिमंगलम् कहा गया है।  
*मणिमंगलम में हुए एक युद्ध में पल्लव नरेश नरसिंह प्रथम (620-668 ई.) ने [[चालुक्य|चालुक्य शासक]] पुलकेशिन् द्वितीय (604- 642 ई.) को पराजित किया था।  
*मणिमंगलम में हुए एक युद्ध में पल्लव नरेश नरसिंह प्रथम (620-668 ई.) ने [[चालुक्य|चालुक्य शासक]] पुलकेशिन् द्वितीय (604- 642 ई.) को पराजित किया था।  


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  • मणिमंगलम तमिलनाडु के चिंगलपट्टू ज़िले में कांजीवरम् ताल्लुक के पूर्वी छोर पर स्थित एक गाँव है। जो दक्षिण रेलवे के वण्डलूर स्टेशन से छः मील पश्चिम में स्थित है।
  • संस्कृत साहित्य में मणिमंगलम् को 'रत्नाग्रहार' कहा गया है।
  • चोल शासक राजराज प्रथम के समय उसकी रानी लोक महादेवी के नाम पर इस नगर को लोकमहादेवी चतुर्वेदिमंगलम् कहा जाने लगा। लेकिन उसके शासक के पन्द्रहवें वर्ष के पश्चात् और उसके उत्तराधिकारियों में कुलोत्तुंग प्रथम तक के नरेशों के शासनकाल में उत्कीर्ण अभिलेखों में मणिमंगलम् को राजचूड़ामणि चतुर्वेदिमंगलम् कहा गया है।
  • मणिमंगलम में हुए एक युद्ध में पल्लव नरेश नरसिंह प्रथम (620-668 ई.) ने चालुक्य शासक पुलकेशिन् द्वितीय (604- 642 ई.) को पराजित किया था।


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