कीर्तिलता: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "हिंदी" to "हिन्दी")
m (Text replace - "राजनैतिक" to "राजनीतिक")
Line 4: Line 4:
यह ग्रन्थ प्राचीन काव्य रुढियों के अनुरुप शुक-शुकी-संवाद के रुप में लिखा गया है।
यह ग्रन्थ प्राचीन काव्य रुढियों के अनुरुप शुक-शुकी-संवाद के रुप में लिखा गया है।
;कथानक  
;कथानक  
कीर्तिसिंह के पिता राम गणेश्वर की हत्या असलान नामक पवन सरदार ने छल से करके [[मिथिला]] पर अधिकार कर लिया था। पिता की हत्या का बदला लेने तथा राज्य की पुनर्प्राप्ति के लिए कीर्ति सिंह अपने भाई वीर सिंह के साथ [[जौनपुर]] गये और वहाँ के सुल्तान की सहायता से असलान को युद्ध में परास्त कर मिथिला पर पुन: अधिकार किया। जौनपुर की यात्रा, वहाँ के हाट-बाज़ार का वर्णन तथा महाराज कीर्तिसिंह की वीरता का उल्लेख कीर्तिलता में है। इसके वर्णनों में यर्थाथ के साथ शास्त्रीय पद्धति का प्रभाव भी है। वर्णन के ब्यौरे पर ज्योतिर्श्वर के वर्ण 'रत्नाकर' की स्पष्ट छाप है। तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के अध्ययन के लिए कीर्तिलता से बहुत सहायता ली जा सकती है।  
कीर्तिसिंह के पिता राम गणेश्वर की हत्या असलान नामक पवन सरदार ने छल से करके [[मिथिला]] पर अधिकार कर लिया था। पिता की हत्या का बदला लेने तथा राज्य की पुनर्प्राप्ति के लिए कीर्ति सिंह अपने भाई वीर सिंह के साथ [[जौनपुर]] गये और वहाँ के सुल्तान की सहायता से असलान को युद्ध में परास्त कर मिथिला पर पुन: अधिकार किया। जौनपुर की यात्रा, वहाँ के हाट-बाज़ार का वर्णन तथा महाराज कीर्तिसिंह की वीरता का उल्लेख कीर्तिलता में है। इसके वर्णनों में यर्थाथ के साथ शास्त्रीय पद्धति का प्रभाव भी है। वर्णन के ब्यौरे पर ज्योतिर्श्वर के वर्ण 'रत्नाकर' की स्पष्ट छाप है। तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के अध्ययन के लिए कीर्तिलता से बहुत सहायता ली जा सकती है।  
;काव्यकला
;काव्यकला
इस ग्रन्थ की रचना तक महाकवि विद्यापति ठाकुर का काव्य कला प्रौढ़ हो चुकी थी। इसी कारण इन्होंने आत्मगौरवपरक पंक्तियाँ लिखी:
इस ग्रन्थ की रचना तक महाकवि विद्यापति ठाकुर का काव्य कला प्रौढ़ हो चुकी थी। इसी कारण इन्होंने आत्मगौरवपरक पंक्तियाँ लिखी:

Revision as of 14:24, 11 July 2011

महाकवि विद्यापति कई भाषाओं के ज्ञाता थे। इनकी अधिकांश रचना संस्कृत एवं अवहट्ट में है। 'कीर्तिलता' और 'कीर्तिपताका' इनकी अवहट्ट रचनाएँ हैं, जिनमें इनके आश्रयदाता कीर्ति सिंह की वीरता, उदारता और गुण ग्राहकता का वर्णन है। परवर्ती अपभ्रंश को ही संभवत: महाकवि ने 'अवहट्ठ' नाम दिया है। महाकवि के पूर्व अद्दहयाण[1] ने भी ‘सन्देशरासक’ की भाषा को अवहट्ठ ही कहा था। कीर्तिलता की रचना महाकवि विद्यापति ठाकुर ने अवहट्ठ में की है और इसमें महाराजा कीर्तिसिंह का कीर्ति कीर्तन किया है। ग्रन्थ के आरम्भ में ही महाकवि लिखते है:

… श्रोतुर्ज्ञातुर्वदान्यस्य कीर्तिसिंह महीपते:।
करोतु कवितु: काव्यं भव्यं विद्यापति: कवि:।। [2]

यह ग्रन्थ प्राचीन काव्य रुढियों के अनुरुप शुक-शुकी-संवाद के रुप में लिखा गया है।

कथानक

कीर्तिसिंह के पिता राम गणेश्वर की हत्या असलान नामक पवन सरदार ने छल से करके मिथिला पर अधिकार कर लिया था। पिता की हत्या का बदला लेने तथा राज्य की पुनर्प्राप्ति के लिए कीर्ति सिंह अपने भाई वीर सिंह के साथ जौनपुर गये और वहाँ के सुल्तान की सहायता से असलान को युद्ध में परास्त कर मिथिला पर पुन: अधिकार किया। जौनपुर की यात्रा, वहाँ के हाट-बाज़ार का वर्णन तथा महाराज कीर्तिसिंह की वीरता का उल्लेख कीर्तिलता में है। इसके वर्णनों में यर्थाथ के साथ शास्त्रीय पद्धति का प्रभाव भी है। वर्णन के ब्यौरे पर ज्योतिर्श्वर के वर्ण 'रत्नाकर' की स्पष्ट छाप है। तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के अध्ययन के लिए कीर्तिलता से बहुत सहायता ली जा सकती है।

काव्यकला

इस ग्रन्थ की रचना तक महाकवि विद्यापति ठाकुर का काव्य कला प्रौढ़ हो चुकी थी। इसी कारण इन्होंने आत्मगौरवपरक पंक्तियाँ लिखी:

बालचन्द विज्जावड़ भासा, दुहु नहिं लग्गइ दुज्जन हासा।
ओ परमेसर हर सिर सोहइ, ई णिच्चई नाअर मन मोहइ।।

  • चतुर्थ पल्लव के अन्त में महाकवि लिखते हैं:

'…माधुर्य प्रसवस्थली गुरुयशोविस्तार शिक्षासखी।
यावद्धिश्चमिदञ्च खेलतु कवेर्विद्यापतेर्भारती।।'

म.म. हरप्रसाद शास्री ने भ्रमवश ‘खेलतु कवे:’ के स्थान पर ‘खेलनकवे:’ पढ़ लिया और तब से डॉ. बाबूराम सक्सेना, विमानविहारी मजुमदार, डॉ. जयकान्त मिश्र, डॉ. शिवप्रसाद सिंह प्रभृति विद्धानों ने विद्यापति का उपनाम ‘खेलन कवि’ मान लिया। यह अनवमान कर लिया गया कि चूँकि कवि अपने को ‘खेलन कवि’ कहता है, अर्थात उसके खेलने की ही उम्र है, इसलिए कीर्तिलता महाकवि विद्यापति ठाकुर की प्रथम रचना है। अब इस भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं है और कीर्तिलता में कवि की विकसित काव्य-प्रतिमा के दर्शन होते हैं। [3]

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक 'कवि और कविता' में लिखा है -

वे ऐसे समय में हुए जब चिन्तन की भाषा संस्कृत और साहित्य की भाषा अपभ्रंश थी। विद्यापति ने भी अपभ्रंश में अपनी ‘कीर्तिलता’ नामक पुस्तक की रचना की जिसकी भाषा को उन्होंने अवहट्ट कहा है और जिस भाषा के अनुसार उन्होंने अपना नाम विद्यापति नहीं बताकर, 'बिज्जाबइ' बताया है -

बालचन्द बिज्जावइ भाषा दुहु नहि लग्गइ दुज्जन हासा। [4]

कीर्तिलता विद्यापति की आरम्भिक रचना है जिसे उन्होंने, कदाचित्, सोलह वर्ष की उम्र में लिखा था। प्रौढ़ होने पर उन्होंने अपभ्रंश को छोड़ दिया तथा कविताएँ वे मैथिली में तथा शास्त्रीय निबन्ध संस्कृत में लिखने लगे। इस प्रकार विद्यापति का लिखा हुआ साहित्य परिमाण में भी बहुत है।[5]




पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अब्दुल रहमान
  2. अर्थात महाराज कीर्ति सिंह काव्य सुनने वाले, दान देने वाले, उदार तथा कविता करने वाले हैं। इनके लिए सुन्दर, मनोहर काव्य की रचना कवि विद्यापति करते हैं।
  3. विद्यापति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2 जून, 2011।
  4. अर्थात बाल चन्द्रमा और विद्यापति की भाषा, ये दुर्जनों के हँसने से कलंकित नहीं हो सकते।
  5. कवि और कविता (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2 जून, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख