जयसिंह जगदेकमल्ल: Difference between revisions
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*'तिरुवांलगाडु अभिलेख' में राजेन्द्र चोल को तैलप वंश का उन्मूलक कहा गया है। | *'तिरुवांलगाडु अभिलेख' में राजेन्द्र चोल को तैलप वंश का उन्मूलक कहा गया है। | ||
*जयसिंह ने 'सिंगदे', 'जयदेक्कमल्ल', 'त्रैलोकमल्ल', 'मल्लिकामोद', ' | *जयसिंह ने 'सिंगदे', 'जयदेक्कमल्ल', 'त्रैलोकमल्ल', 'मल्लिकामोद', 'विक्रमसिंह' आदि उपाधियां धारण कीं। | ||
*26 वर्ष के शासन के बाद 1047 ई. में जयसिंह की मृत्यु हो गई। | *26 वर्ष के शासन के बाद 1047 ई. में जयसिंह की मृत्यु हो गई। | ||
Revision as of 13:58, 30 July 2011
- अच्चण द्वितीय पश्चिमी चालुक्यों की बढ़ती हुई शक्ति व दबाव को रोकने में विफल रहा।
- ऐसी स्थिति में उसका भाई जयसिंह द्वितीय (1015 से 1045 ई.), उसे गद्दी से हटाकर सिंहासन पर बैठा।
- इसका विरुद्ध 'जगदेकमल्ल' था, जो इसकी वीरता का परिचायक है।
- जयसिंह द्वितीय ने 1015 ई. में अपने पूर्वजों के रणरक्तनीति का अनुसरण करते हुए उसने अपने राज्य की रक्षा की।
- परमार राजा भोज कलचुरि राजा गंगेयदेव तथा चोल शासक राजेन्द्र चोल ने एक संघ बनाकर जयसिंह पर आक्रमण किए।
- जयसिंह ने इनका सामना किया और इन्हें रोकने में पूरी तरह से सफल रहा।
- 'तिरुवांलगाडु अभिलेख' में राजेन्द्र चोल को तैलप वंश का उन्मूलक कहा गया है।
- जयसिंह ने 'सिंगदे', 'जयदेक्कमल्ल', 'त्रैलोकमल्ल', 'मल्लिकामोद', 'विक्रमसिंह' आदि उपाधियां धारण कीं।
- 26 वर्ष के शासन के बाद 1047 ई. में जयसिंह की मृत्यु हो गई।
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