विश्राम घाट मथुरा: Difference between revisions

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'''विश्राम घाट / Vishram Ghat'''<br />


[[यमुना नदी|यमुना]] के तट पर विश्राम तीर्थ स्थित है। यह [[मथुरा]] का सर्वप्रधान एवं प्रसिद्ध घाट हैं। इस स्थान का वर्तमान नाम विश्राम घाट है। भगवान श्री [[कृष्ण]] ने [[कंस]] का वध कर इस स्थान पर विश्राम किया था इसलिये यहाँ की महिमा अपरम्पार है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाबलशाली कंस को मारकर [[ध्रुव घाट]] पर उसकी अन्त्येष्टि संस्कार करवाकर बन्धु−बान्धवों के साथ यमुना के इस पवित्र घाट पर स्नान कर विश्राम किया था । श्रीकृष्ण की नरलीला में ऐसा सम्भव है; परन्तु सर्वशक्तियों से सम्पन्न सच्चिदानन्द स्वयं–भगवान श्रीकृष्णको विश्राम की आवश्यकता नहीं होती है । किन्तु भगवान से भूले– भटके जन्म मृत्यु के अनन्त, अथाह सागर में डूबते–उबरते हुए क्लान्त जीवों के लिए यह अवश्यक ही विश्राम का स्थान है।
[[यमुना नदी|यमुना]] के तट पर विश्राम तीर्थ स्थित है। यह [[मथुरा]] का सर्वप्रधान एवं प्रसिद्ध घाट हैं। इस स्थान का वर्तमान नाम विश्राम घाट है। भगवान श्री [[कृष्ण]] ने [[कंस]] का वध कर इस स्थान पर विश्राम किया था इसलिये यहाँ की महिमा अपरम्पार है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाबलशाली कंस को मारकर [[ध्रुव घाट]] पर उसकी अन्त्येष्टि संस्कार करवाकर बन्धु−बान्धवों के साथ यमुना के इस पवित्र घाट पर स्नान कर विश्राम किया था । श्रीकृष्ण की नरलीला में ऐसा सम्भव है; परन्तु सर्वशक्तियों से सम्पन्न सच्चिदानन्द स्वयं–भगवान श्रीकृष्णको विश्राम की आवश्यकता नहीं होती है । किन्तु भगवान से भूले– भटके जन्म मृत्यु के अनन्त, अथाह सागर में डूबते–उबरते हुए क्लान्त जीवों के लिए यह अवश्यक ही विश्राम का स्थान है।
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[[चित्र:Vishram-Ghat-11.jpg|विश्राम घाट, मथुरा
Vishram Ghat, Mathura|thumb]]

यमुना के तट पर विश्राम तीर्थ स्थित है। यह मथुरा का सर्वप्रधान एवं प्रसिद्ध घाट हैं। इस स्थान का वर्तमान नाम विश्राम घाट है। भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध कर इस स्थान पर विश्राम किया था इसलिये यहाँ की महिमा अपरम्पार है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाबलशाली कंस को मारकर ध्रुव घाट पर उसकी अन्त्येष्टि संस्कार करवाकर बन्धु−बान्धवों के साथ यमुना के इस पवित्र घाट पर स्नान कर विश्राम किया था । श्रीकृष्ण की नरलीला में ऐसा सम्भव है; परन्तु सर्वशक्तियों से सम्पन्न सच्चिदानन्द स्वयं–भगवान श्रीकृष्णको विश्राम की आवश्यकता नहीं होती है । किन्तु भगवान से भूले– भटके जन्म मृत्यु के अनन्त, अथाह सागर में डूबते–उबरते हुए क्लान्त जीवों के लिए यह अवश्यक ही विश्राम का स्थान है।


सौर पुराण के अनुसार विश्रान्ति तीर्थ नामकरण का कारण बतलाया गया है−
ततो विश्रान्ति तीर्थाख्यं तीर्थमहो विनाशनम्।
संसारमरू संचार क्लेश विश्रान्तिदं नृणाम।।
संसार रूपी मरूभूमि में भटकते हुए, त्रितापों से प्रपीड़ित, सब प्रकार से निराश्रित, नाना प्रकार के क्लेशों से क्लान्त होकर जीव श्रीकृष्ण के पादपद्म धौत इस महातीर्थ में स्नान कर विश्राम अनुभव करते हैं। इसलिए इस महातीर्थ नाम विश्रान्ति या विश्राम घाट है। इस महातीर्थ में स्नान एवं आचमन के पश्चात प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु लोग ब्रजमण्डल की परिक्रमा का संकल्प लेते है । और पुन: यहीं पर परिक्रमा का समापन करते हैं।


कार्तिक माह की यमद्वितीया के दिन बहुत दूर–दूर प्रदेशों के श्रद्धालुजन यहाँ स्नान करते हैं । पुराणों के अनुसार यम (धर्मराज) एवं यमुना (यमी) ये दोनों जुड़वा भाई–बहन हैं । यमुना जी का हृदय बड़ा कोमल है । जीवों के नाना प्रकार के कष्टों को वे सह न सकीं । उन्होंने अपने जन्म दिन पर भैया यम को निमन्त्रण दिया । उन्हें तरह–तरह के सुस्वादु व्यजंन और मिठाईयाँ खिलाकर सन्तुष्ट किया । भैया यम ने प्रसन्न होकर कुछ माँगने के लिए कहा । यमुना जी ने कहा– भैया ! जो लोग श्रद्धापूर्वक आज के दिन इस स्थान पर मुझमें, स्नान करेंगे, आप उन्हें जन्म–मृत्यु एवं नाना प्रकार के त्रितापों से मुक्त कर दें। ऐसा सुनकर यम महाराज ने कहा– 'ऐसा ही हो । यूँ तो कहीं भी श्रीयमुना में स्नान करने का प्रचुर माहात्म्य है, फिर भी ब्रज में और विशेषकर विश्राम घाट पर भैयादूज के दिन स्नान करने का विशेष महत्व है । विशेषकर लाखों भाई–बहन उस दिन यमुना में इस स्थल पर स्नान करते हैं।

वास्तु

यह दोमंजिली संरचना है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । इसे बुर्ज व खम्बों पर बने अर्ध-गोलाकार, काँटेदार मेहराबों से सुसज्जित किया है । घाट का मध्य क्षेत्र खिले हुए आकर्षक रंगों से स्जा हुआ है । यह तीन तरफ से मठों से घिरा हुआ है व चौथी तरफ सीढ़ियाँ नदी में उतर रही हैं । मध्य क्षेत्र में संगमरमर से निर्मित श्री कृष्ण व बलराम की मूर्तियाँ नदी की ओर मुख करे स्थापित हैं । मूर्तियों के सामने पाँच विभिन्न आकार के मेहराब हैं । बीच का मेहराब पत्थर के कुरसी आधार व पत्थर के छोटे स्तंभ से निर्मित आयताकार आकार का है जबकि नदी की तरफ वाले मेहराब ऊपरी मंज़िल का सहारा लेकर छतरी की आकृति बनाते हैं ।
यहाँ अनेक सन्तों ने तपस्या की एवं अपना विश्राम स्थल बनाया । विश्राम घाट के उत्तर में 12 और दक्षिण में 12 घाट है।

वीथिका विश्राम घाट


अन्य लिंक

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