मुजरिस: Difference between revisions
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'''मुजरिस''' एक ऐतिहासिक स्थान है जो [[केरल]] में [[पेरियार नदी]] के तट पर [[कोचीन]] के समीप बसा है। मुजरिस का प्राचीन नाम "तिरुवेंचीकुलम" था। इसे "मरिचीपत्तन" या "मुरचीपत्तन" भी कहा गया है, जिसका अर्थ है- 'काली मिर्च का बन्दरगाह'। | |||
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*मुजरिस शब्द मुरचीपत्तन का रोमीय रूपांतरण जान पड़ता है। प्लिनी ने भी इसका मुजरिस के रूप में उल्लेख किया है। | *मुजरिस शब्द मुरचीपत्तन का रोमीय रूपांतरण जान पड़ता है। | ||
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*यह केरल के पेरूमाल सम्राटों की प्राचीन राजधानी थी। | *यह केरल के पेरूमाल सम्राटों की प्राचीन राजधानी थी। | ||
*[[महाभारत]] में इसका नाम [[सहदेव]] की दिग्विजय यात्रा के संदर्भ में सुरभिपत्तनम् के रूप में आता है। | *[[महाभारत]] में इसका नाम [[सहदेव]] की दिग्विजय यात्रा के संदर्भ में सुरभिपत्तनम् के रूप में आता है। | ||
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*68 ई. या 69 ई. में रोमनों द्वारा निष्कासित यहूदियों ने यहीं पर शरण ली थी। रोमन व्यापारियों ने यहाँ आगस्टस का मंदिर बनवाया था। | *68 ई. या 69 ई. में रोमनों द्वारा निष्कासित [[यहूदी|यहूदियों]] ने यहीं पर शरण ली थी। | ||
*रोमन व्यापारियों ने यहाँ आगस्टस का मंदिर बनवाया था। | |||
*दसवीं शताब्दी के चेर शासक रविवर्मन कुलशेखर ने यहाँ यहूदियों एवं [[ईसाई|ईसाइयों]] को धर्म प्रचार की अनुमति दी थी। | *दसवीं शताब्दी के चेर शासक रविवर्मन कुलशेखर ने यहाँ यहूदियों एवं [[ईसाई|ईसाइयों]] को धर्म प्रचार की अनुमति दी थी। | ||
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मुजरिस एक ऐतिहासिक स्थान है जो केरल में पेरियार नदी के तट पर कोचीन के समीप बसा है। मुजरिस का प्राचीन नाम "तिरुवेंचीकुलम" था। इसे "मरिचीपत्तन" या "मुरचीपत्तन" भी कहा गया है, जिसका अर्थ है- 'काली मिर्च का बन्दरगाह'।
- अन्य प्रमाणों से भी यह जानकारी मिलती है कि यह केन्द्र काली मिर्च का निर्यात केन्द्र था।
- मुजरिस शब्द मुरचीपत्तन का रोमीय रूपांतरण जान पड़ता है।
- प्लिनी ने भी इसका मुजरिस के रूप में उल्लेख किया है।
- यह केरल के पेरूमाल सम्राटों की प्राचीन राजधानी थी।
- महाभारत में इसका नाम सहदेव की दिग्विजय यात्रा के संदर्भ में सुरभिपत्तनम् के रूप में आता है।
- महाभारत के अन्य संस्करण में इसे 'मुरिचीपत्तन' भी लिखा है। ईसा पूर्व की कई सदियों तक यह स्थान एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र के रुप में प्रसिद्ध था।
- मुजरिस के मोती रोम तक पहुँचते थे।
- मुजरिस मिस्र, काबुल ,यूनान, रोम और चीन के व्यापारिक समूह बराबर आते रहते थे।
- 68 ई. या 69 ई. में रोमनों द्वारा निष्कासित यहूदियों ने यहीं पर शरण ली थी।
- रोमन व्यापारियों ने यहाँ आगस्टस का मंदिर बनवाया था।
- दसवीं शताब्दी के चेर शासक रविवर्मन कुलशेखर ने यहाँ यहूदियों एवं ईसाइयों को धर्म प्रचार की अनुमति दी थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख