ध्यान: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:दर्शन (को हटा दिया गया हैं।))
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
'''ध्यान''' भारतीय [[दर्शन]] में संसार से मुक्ति<ref>मोक्ष या निर्वाण</ref> की ओर ले जाने वाला एक चिंतन है। यह चेतन मन की एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं की चेतना बाह्य जगत के किसी चुने हुए स्थल-विशेष पर केंद्रित करता है। ध्यान से जीवन में दिव्यता आती है, और जब व्यक्ति इस दिव्यता का अनुभव कर लेता है, तो सारी सृष्टि उसे सुन्दर प्रतीत होने लगती है। ध्यान से व्यक्ति जीवन की समस्त बुराइयों से ऊपर उठ जाता है और इस संसार को सुंदर बनाने के कार्य में संलग्न हो जाता है।
ध्यान भारतीय [[दर्शन]] में संसार से मुक्ति<ref>मोक्ष या निर्वाण</ref> की ओर ले जाने वाला चिंतन है।
==महत्त्व==
ध्यान का मानव जीवन में बड़ा ही महत्त्व है। ध्यान व्यक्ति को ऐसे काम की ओर ले जाने से रोकता है, जिससे कि उसे नीचा देखना पड़े। जब भी और जहाँ भी मौका मिले, ध्यान करना चाहिए। [[गंगा]] किनारे या [[पर्वत|पर्वतों]] की श्रृंखलाओं में लगाया गया ध्यान अधिक फल देता है। ऐसी पवित्र जगहों में किया हुआ कोई भी कार्य कई गुना होकर फलित होता है। जिस प्रकार से पहाड़ों और घाटियों में आवाज़ देने पर उसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है, उसी तरह पवित्र स्थानों पर किया हुआ कोई भी कर्म इसी तरह से प्रतिफलित होता है। चाहे वह बुरा हो या अच्छा हो, वह वापस अवश्य मिलता है।
====उपासना का साधन====
साकार और निराकार दोनों ही की उपासनाओं में ध्यान सबसे आवश्यक और महत्त्वपूर्ण साधन है। श्रीभगवान ने [[गीता]] में ध्यान की बड़ी महिमा गायी है। जहाँ–कहीं उनका उच्चतम उपदेश है, वहीं उन्होंने मन को अपने में (भगवान में) प्रवेश करा देने के लिये [[अर्जुन]] के प्रति आज्ञा की है। योगशास्त्र में तो ध्यान का स्थान बहुत ऊँचा है ही। ध्यान के प्रकार बहुत से हैं साधक को अपनी रुचि, भावना और अधिकार के अनुसार तथा अभ्यास की सुगमता देखकर किसी भी एक स्वरूप का ध्यान करना चाहिये। यह स्मरण रखना चाहिये कि निगु‍र्ण–निराकार और सगुण–साकार भगवान वास्तव में एक ही हैं। एक ही परमात्मा के अनेक दिव्य प्रकाशमय स्वरूप है।
==अभ्यास मुद्रा==
[[श्रीमद्भागवदगीता]] के छठे अध्याय के ग्यारहवें से तेरहवें श्लोक तक के वर्णन के अनुसार एकान्त, पवित्र और सात्त्विक स्थान में सिद्ध स्वस्तिक, पद्मासन या अन्य किसी सुख–साध्य आसन से बैठकर नींद का डर न हो, तो आँखें मूँदकर, नहीं तो आँखों को भगवान की मूर्ति पर लगाकर अथवा [[आँख|आँखों]] की दृष्टि को नासिका के अग्र भाग पर जमाकर प्रतिदिन कम–से–कम तीन घंटे, दो घंटे या एक घंटा, जितना भी समय मिल सके, सावधानी के साथ लय, विक्षेप, कषाय, रसास्वाद, आलस्य, प्रमाद, दम्भ आदि दोषों से बचकर श्रद्धा–भक्तिपूर्वक तत्परता के साथ ध्यान का अभ्यास करना चाहिये। ध्यान के समय शरीर, मस्तक और गला सीधा रहे और रीढ़ की हड्डी भी सीधी रहनी चाहिये। ध्यान के लिये समय और स्थान भी सुनिश्चित ही होना चाहिये।


{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 6: Line 11:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
 
ध्यान के प्रकार
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/6003653.cms 'ध्यान करें और देख लें कि हम कहां हैं' लेखक-स्वामी चिदानंद सरस्वती']
*[http://www.rambhakta.com/saahitya4.html 'ध्यान और मानसिक पूजा' 'लेखक-श्री जयदयाल गोयन्दका']
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
[[Category:अध्यात्म]]
[[Category:अध्यात्म]]
[[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:दर्शन कोश]]
 
[[Category:हिन्दू धर्म]]
 
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 09:47, 14 December 2011

ध्यान भारतीय दर्शन में संसार से मुक्ति[1] की ओर ले जाने वाला एक चिंतन है। यह चेतन मन की एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं की चेतना बाह्य जगत के किसी चुने हुए स्थल-विशेष पर केंद्रित करता है। ध्यान से जीवन में दिव्यता आती है, और जब व्यक्ति इस दिव्यता का अनुभव कर लेता है, तो सारी सृष्टि उसे सुन्दर प्रतीत होने लगती है। ध्यान से व्यक्ति जीवन की समस्त बुराइयों से ऊपर उठ जाता है और इस संसार को सुंदर बनाने के कार्य में संलग्न हो जाता है।

महत्त्व

ध्यान का मानव जीवन में बड़ा ही महत्त्व है। ध्यान व्यक्ति को ऐसे काम की ओर ले जाने से रोकता है, जिससे कि उसे नीचा देखना पड़े। जब भी और जहाँ भी मौका मिले, ध्यान करना चाहिए। गंगा किनारे या पर्वतों की श्रृंखलाओं में लगाया गया ध्यान अधिक फल देता है। ऐसी पवित्र जगहों में किया हुआ कोई भी कार्य कई गुना होकर फलित होता है। जिस प्रकार से पहाड़ों और घाटियों में आवाज़ देने पर उसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है, उसी तरह पवित्र स्थानों पर किया हुआ कोई भी कर्म इसी तरह से प्रतिफलित होता है। चाहे वह बुरा हो या अच्छा हो, वह वापस अवश्य मिलता है।

उपासना का साधन

साकार और निराकार दोनों ही की उपासनाओं में ध्यान सबसे आवश्यक और महत्त्वपूर्ण साधन है। श्रीभगवान ने गीता में ध्यान की बड़ी महिमा गायी है। जहाँ–कहीं उनका उच्चतम उपदेश है, वहीं उन्होंने मन को अपने में (भगवान में) प्रवेश करा देने के लिये अर्जुन के प्रति आज्ञा की है। योगशास्त्र में तो ध्यान का स्थान बहुत ऊँचा है ही। ध्यान के प्रकार बहुत से हैं साधक को अपनी रुचि, भावना और अधिकार के अनुसार तथा अभ्यास की सुगमता देखकर किसी भी एक स्वरूप का ध्यान करना चाहिये। यह स्मरण रखना चाहिये कि निगु‍र्ण–निराकार और सगुण–साकार भगवान वास्तव में एक ही हैं। एक ही परमात्मा के अनेक दिव्य प्रकाशमय स्वरूप है।

अभ्यास मुद्रा

श्रीमद्भागवदगीता के छठे अध्याय के ग्यारहवें से तेरहवें श्लोक तक के वर्णन के अनुसार एकान्त, पवित्र और सात्त्विक स्थान में सिद्ध स्वस्तिक, पद्मासन या अन्य किसी सुख–साध्य आसन से बैठकर नींद का डर न हो, तो आँखें मूँदकर, नहीं तो आँखों को भगवान की मूर्ति पर लगाकर अथवा आँखों की दृष्टि को नासिका के अग्र भाग पर जमाकर प्रतिदिन कम–से–कम तीन घंटे, दो घंटे या एक घंटा, जितना भी समय मिल सके, सावधानी के साथ लय, विक्षेप, कषाय, रसास्वाद, आलस्य, प्रमाद, दम्भ आदि दोषों से बचकर श्रद्धा–भक्तिपूर्वक तत्परता के साथ ध्यान का अभ्यास करना चाहिये। ध्यान के समय शरीर, मस्तक और गला सीधा रहे और रीढ़ की हड्डी भी सीधी रहनी चाहिये। ध्यान के लिये समय और स्थान भी सुनिश्चित ही होना चाहिये।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मोक्ष या निर्वाण

ध्यान के प्रकार

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख