दाग -राजेश जोशी: Difference between revisions

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मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग हैं ग्रीस और आइल के
मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के
पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है
पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है
जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद
जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद
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सर उठा कर गा सकता हूँ
सर उठा कर गा सकता हूँ
हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना
हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना
कितने दाग हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान
कितने दाग़ हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान
अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए गलत समझौते
अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए गलत समझौते
ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की
ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की
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और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए
और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए


सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल दाग छिपाता हूँ
सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल दाग़ छिपाता हूँ
और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ।
और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ।



Revision as of 11:08, 20 December 2011

दाग -राजेश जोशी
कवि राजेश जोशी
जन्म 18 जुलाई, 1946
जन्म स्थान नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'समरगाथा- एक लम्बी कविता', एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, दो पंक्तियों के बीच, पतलून पहना आदमी धरती का कल्पतरु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
राजेश जोशी की रचनाएँ

मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के
पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है
जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद
मैं इन दागों को पहनता हूँ
किसी तरह की शरम नहीं काम के बाद वाली तसल्ली है इन दागों में
कि किसी दूसरे की रोटी नहीं छीनी मैंने
अपने को ही खर्च किया है एक एक कौर के लिए

मेरी चादर पर लम्बी यात्राओं की थकान और सिलवटें हैं
मेरी चप्पलों की घिसी एड़ियाँ और थेगड़े
इस मुल्क की सड़कों के संस्मरण हैं
मैं अपनी कमीज, अपनी चादर और अपनी चप्पलों पर लगे दागों को
सर उठा कर गा सकता हूँ
हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना
कितने दाग़ हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान
अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए गलत समझौते
ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की
आँख के सामने होते अन्याय को देख कर भी चीखे नहीं
और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए

सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल दाग़ छिपाता हूँ
और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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