तिरुवल्लूर: Difference between revisions

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[[चित्र:Sri-Veeraraghava-Temple-Tiruvallur.jpg|thumb|250px|वीरराघवस्वामी मंदिर, तिरुवल्लूर]]
'''तिरुवल्लूर''' [[मद्रास]] (वर्तमान [[चेन्नई]]), [[तमिलनाडु]] के आरकोनम स्टेशन से 17 मील दूर है। उत्तर में यह [[कांचीपुरम]] से, पश्चिम में [[वेल्लोर]] से, पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]] और उत्तर में [[आंध्र प्रदेश]] से घिरा हुआ है। तिरुवल्लूर को पहले 'त्रिवेल्लोर' और 'तिरुवल्लूर' के नाम से भी जाना जाता था, किन्तु वर्तमान समय में इसे 'तिरुवल्लूर' ही कहा जाता है।
'''तिरुवल्लूर''' [[मद्रास]] (वर्तमान [[चेन्नई]]), [[तमिलनाडु]] के आरकोनम स्टेशन से 17 मील दूर है। उत्तर में यह [[कांचीपुरम]] से, पश्चिम में [[वेल्लोर]] से, पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]] और उत्तर में [[आंध्र प्रदेश]] से घिरा हुआ है। तिरुवल्लूर को पहले 'त्रिवेल्लोर' और 'तिरुवल्लूर' के नाम से भी जाना जाता था, किन्तु वर्तमान समय में इसे 'तिरुवल्लूर' ही कहा जाता है।
==वरदराज मंदिर==
==वरदराज मंदिर==

Revision as of 09:38, 4 July 2012

thumb|250px|वीरराघवस्वामी मंदिर, तिरुवल्लूर तिरुवल्लूर मद्रास (वर्तमान चेन्नई), तमिलनाडु के आरकोनम स्टेशन से 17 मील दूर है। उत्तर में यह कांचीपुरम से, पश्चिम में वेल्लोर से, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और उत्तर में आंध्र प्रदेश से घिरा हुआ है। तिरुवल्लूर को पहले 'त्रिवेल्लोर' और 'तिरुवल्लूर' के नाम से भी जाना जाता था, किन्तु वर्तमान समय में इसे 'तिरुवल्लूर' ही कहा जाता है।

वरदराज मंदिर

यहाँ वरदराज का विशाल मंदिर तीन घेरों के अंतर्गत स्थित है। पहले घेरे की लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 155 फुट है। दूसरे की लम्बाई 470 फुट और चौड़ाई 470 फुट और तीसरे की लम्बाई 940 फुट और चौड़ाई 700 फुट है। पहले घेरे के चारों ओर दालान और मध्य में वरदराज की मूर्ति भुजंग पर शयन करती हुई दिखाई देती है। पास ही भगवान शिव का मंदिर है। यह भी कई डेवढ़ियों के भीतर है। दोनों मंदिरों के आगे जगमोहन है और घेरे के आगे गोपुर। दूसरे घेरे में जो पीछे बना था, बहुत-से छोटे स्थान और दालान और पहले गोपुर से अधिक ऊँचे दो गोपुर हैं। तीसरे घेरे के भीतर जो दूसरे के बाद में बना था, 668 स्तंभों का एक मंडप और कई मंदिर तथा पांच गोपुर हैं, जिनमें प्रथम और अंतिम बहुत विशाल हैं।

जनश्रुति

एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहाँ शिव की आराधना के फलस्वरूप भयंकर जल त्रास से त्राण पाया था। वदागलाई सम्प्रदाय का केन्द्र यहाँ के अहोविलन मठ में है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 403 |


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