जल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Tap-and-Water.jpg|thumb|250px|नल से आता जल]]
'''जल''' [[पृथ्वी]] पर पाया जाने वाला प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक तरल [[पदार्थ]] है, जो सभी प्राणियों के जीवन का भौतिक आधार है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह एक आम रासायनिक पदार्थ है, जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना होता है। विज्ञान में जल का रासायनिक सूत्र 'H<sub>2</sub>O' होता है।
'''जल''' [[पृथ्वी]] पर पाया जाने वाला प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक तरल [[पदार्थ]] है, जो सभी प्राणियों के जीवन का भौतिक आधार है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह एक आम रासायनिक पदार्थ है, जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना होता है। विज्ञान में जल का रासायनिक सूत्र 'H<sub>2</sub>O' होता है।
==दार्शनिक व्याख्या==
==दार्शनिक व्याख्या==

Revision as of 08:21, 2 April 2013

thumb|250px|नल से आता जल जल पृथ्वी पर पाया जाने वाला प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक तरल पदार्थ है, जो सभी प्राणियों के जीवन का भौतिक आधार है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह एक आम रासायनिक पदार्थ है, जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना होता है। विज्ञान में जल का रासायनिक सूत्र 'H2O' होता है।

दार्शनिक व्याख्या

सूत्रकार कणाद के अनुसार रूप, रस, स्पर्श नामक गुणों का आश्रय तथा स्निग्ध द्रव्य ही जल है।[1] प्रशस्तपाद ने पृथ्वी के समान जल में भी समवाय सम्बन्ध से चौदह गुणों के पाये जाने का उल्लेख किया है। जल का रंग अपाकज और अभास्वर शुक्ल होता है। यमुना के जल में जो नीलापन है, वह यमुना के स्रोत में पाये जाने वाले पार्थिव कणों के संयोग के कारण औपाधिक है। जल में स्नेह के साथ-साथ सांसिद्धिक द्रवत्व हैं।[2] जल का शैत्य ही वास्तविक है। उसमें केवल मधुर रस ही पाया जाता है।[3] उसके अवान्तर स्वाद खारापन, खट्टापन आदि पार्थिव परमाणुओं के कारण होते हैं।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार जल सर्वथा स्वादरहित होता है, अत: जल के माधुर्य के सम्बन्ध में वैशेषिकों का मत चिन्त्य है।[4] पृथ्वी की तरह जल भी परमाणु रूप में नित्य और कार्यरूप में अनित्य होता है। कार्यरूप जल में शरीर, इन्द्रिय (रसना) और विषय-भेद से तीन प्रकार का द्रव्यारम्भकत्व समवायिकारणत्व माना जाता है। अर्थात जल शरीरारम्भक, इन्द्रियारम्भक और विषयारम्भक होता है। सरिता, हिम, करका आदि विषय रूप जल है। जल का ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से होता है।

अवस्थाएँ

जल तीन अवस्थाओं में पाया जाता है। यह उन कुछ पदार्थों में से है, जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से सभी तीन अवस्थाओं में मिलते हैं। जल पृथ्वी पर कई अलग अलग रूपों में मिलता है- आसमान में जल वाष्प और बादल; समुद्र में समुद्री जल और कभी-कभी हिमशैल; पहाड़ों में हिमनद और नदियाँ; और तरल रूप मे भूमि पर एक्वीफर के रूप में। जल में कई प्रकार के पदार्थों को घोला जा सकता है, जो इसे एक अलग स्वाद और गंध प्रदान करते हैं। वास्तव में मानव और अन्य जानवरों में समय के साथ एक दृष्टि विकसित हो गयी है, जिसके माध्यम से वे जल के पीने और योग्यता का मूल्यांकन करने में सक्षम होते हैं और वह बहुत नमकीन या सड़ा हुआ जल नहीं पीते। मनुष्य ठंडे से गुनगुना जल पीना पसंद करते हैं; ठंडे जल मे रोगाणुओं की संख्या काफ़ी कम होने की संभावना होती है। शुद्ध पानी H2O स्वाद मे फीका होता है, जबकि झरने के पानी या लवणित जल[5] का स्वाद इनमे मिले खनिज लवणों के कारण होता है। झरने के पानी या लवणित जल की गुणवत्ता से अभिप्राय इनमें विषैले तत्वों, प्रदूषकों और रोगाणुओं की अनुपस्थिति से होता है।

सागर का जल

सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते हैं। कोई वस्तु किस रंग की दिखाई देगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह सूर्य के प्रकाश में मिले सात रंगों में से किस रंग को परावर्तित करती है। यह उस वस्तु या पदार्थ की संरचना पर निर्भर करता है कि वह किस रंग को परावर्तित करेगी। सामान्यत: समुद्र के पानी की विशेषता होती है कि वह सिर्फ़ नीले रंग को ही परावर्तित करता है, इसलिए सभी समुद्रों का जल नीला दिखाई देता है। अंध महासागर के तल पर हरे पौधे बहुतायत में हैं। इन पौधों के नष्ट होने के कारण पीला रंग महासागर के पानी में घुलता रहता है। इस कारण महासागर का पानी हरा दिखाई देता है, जो नीले और पीले रंग से मिलकर बना है। चूंकि भूमध्य सागर के जल में पीला रंग नहीं घुलता, इसलिए वह अन्य सागरों की तरह सिर्फ़ नीले रंग को ही परावर्तित करता है और पानी नीला दिखाई देता है। भूमध्य सागर और अंध महासागर की विशेषता है कि इन्हें इनके रंग के आधार पर पहचाना जा सकता है।

भौतिक तथा रासायनिक गुण

जल के कुछ महत्त्वपूर्ण भौतिक तथा रासायनिक गुण निम्नलिखित हैं-

  1. जल पारदर्शी होता है, इसलिए जलीय पौधे इसमें जीवित रह सकते हैं, क्योंकि उन्हें सूर्य की रोशनी मिलती रहती है। केवल शक्तिशाली पराबैंगनी किरणों का ही कुछ हद तक यह अवशोषण कर पाता है।
  2. ऑक्सीजन की वैद्युत ऋणात्मकता हाइड्रोजन की तुलना में उच्च होती है, जो जल को एक ध्रुवीय अणु बनाती है। ऑक्सीजन कुछ ऋणावेशित होती है, जबकि हाइड्रोजन कुछ धनावेशित होती है, जो अणु को द्वि-ध्रुवीय बनाती है। प्रत्येक अणु के विभिन्न द्वि-ध्रुवों के बीच पारस्परिक संपर्क एक शुद्ध आकर्षण बल को जन्म देता है, जो जल को उच्च पृष्ट तनाव प्रदान करता है।
  3. जल का क्वथनांक सीधे बैरोमीटर के दबाव से संबंधित होता है। उदाहरण के लिए, एवरेस्ट के शीर्ष पर, जल 68°C पर उबल जाता है, जबकि समुद्र तल पर यह 100°C उबलता है। इसके विपरीत गहरे समुद्र मे भू-उष्मीय छिद्रों के निकट जल का तापमान सैकड़ों डिग्री तक पहुँच सकता है और इसके बावजूद यह द्रवावस्था मे रहता है।
  4. अपनी ध्रुवीय प्रकृति के कारण जल मे उच्च आसंजक गुण भी होते हैं।
  5. जल एक बहुत प्रबल विलायक है, जिसे सर्व-विलायक भी कहा जाता है। वे पदार्थ जो जल मे भलि भाँति घुल जाते है, जैसे- लवण, शर्करा, अम्ल, क्षार, और कुछ गैसें विशेष रूप से ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड उन्हें हाइड्रोफिलिक कहा जाता है, जबकि दूसरी ओर जो पदार्थ अच्छी तरह से जल के साथ मिश्रण नहीं बना पाते हैं, जैसे- वसा और तेल, हाइड्रोफोबिक कहलाते हैं।
  6. शुद्ध जल की विद्युत चालकता कम होती है, लेकिन जब इसमें आयनिक पदार्थ सोडियम क्लोराइड मिला देते हैं, तब यह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है।
  7. जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विद्युत अपघटन द्वारा विभाजित किया जा सकता है।
  8. जल एक ईंधन नहीं है। यह हाइड्रोजन के दहन का अंतिम उत्पाद है।
  9. जल को विद्युत अपघटन द्वारा वापस हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजन करने के लिए आवश्यक ऊर्जा, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पुनर्संयोजन से उत्सर्जित ऊर्जा से अधिक होती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रूपरसस्पर्शवत्य आपो द्रवा: हिनग्धा:, वै.सू. 2.1.2
  2. द्रवत्वं सांसिद्धकिरूपेण जलस्याधारणम्, सेतु पृ. 241
  3. किरणावली, पृ. 67-68
  4. धर्मेन्द्रनाथ शास्त्री, न्या.सि.मु. व्याख्या, पृ. 200
  5. मिनरल वाटर