हेलिओडोरस: Difference between revisions

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'''हेलिओडोरस''' 'दिया' (दियोन) का पुत्र और [[तक्षशिला]] का निवासी था। वह पाँचवें [[शुंग वंश|शुंग]] राजा काशीपुत भागभद्र के राज्य काल के चौदहवें वर्ष में तक्षशिला के [[यवन]] राजा एण्टिआल्कीडस (लगभग 140-130 ई.पू.) का दूत बनकर [[विदिशा]] आया था।
'''हेलिओडोरस''' 'दिया' (दियोन) का पुत्र और [[तक्षशिला]] का निवासी था। वह पाँचवें [[शुंग वंश|शुंग]] राजा काशीपुत भागभद्र के राज्य काल के चौदहवें वर्ष में तक्षशिला के [[यवन]] राजा एण्टिआल्कीडस (लगभग 140-130 ई.पू.) का दूत बनकर [[विदिशा]] आया था।



Latest revision as of 12:56, 13 August 2013

[[चित्र:Heliodorus-Pillar-Vidisha.jpg|thumb|200px|हेलिओडोरस स्तम्भ]] हेलिओडोरस 'दिया' (दियोन) का पुत्र और तक्षशिला का निवासी था। वह पाँचवें शुंग राजा काशीपुत भागभद्र के राज्य काल के चौदहवें वर्ष में तक्षशिला के यवन राजा एण्टिआल्कीडस (लगभग 140-130 ई.पू.) का दूत बनकर विदिशा आया था।

  • हेलिओडोरस यवन होते हुए भी भागवत धर्म का अनुयायी हो गया था। उसने देवाधिदेव वासुदेव (विष्णु) का एक 'गरुड़ स्तम्भ' बनवाया था, जिसे 'हेलिओडोरस स्तम्भ' भी कहा जाता है। यह सारी सूचना उक्त स्तम्भ पर अंकित है, जिससे प्रकट होता है कि हेलिओडोरस को महाभारत का परिचय था।
  • यह स्तम्भ लेख महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे प्रकट होता है कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में यवनों ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। इससे वैष्णव धर्म के क्रमिक विकास पर भी प्रकाश पड़ता है।
  • हेलिओडोरस द्वारा बनवाये गए गरुड़ स्तम्भ से प्राप्त अभिलेख इस प्रकार है-
  1. देव देवस वासुदेवस गरुड़ध्वजे अयं
  2. कारिते इष्य हेलियो दरेण भाग
  3. वर्तन दियस पुत्रेण नखसिला केन
  4. योन दूतेन आगतेन महाराज स
  5. अंतलिकितस उपता सकारु रजो
  6. कासी पु (त्र) (भा) ग (भ) द्रस त्रातारस
  7. वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।

"! देवाधिदेव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज (स्तम्भ) तक्षशिला निवासी दिय के पुत्र भागवत हेलिओवर ने बनवाया, जो महाराज अंतिलिकित के यवन राजदूत होकर विदिशा में काशी (माता) पुत्र (प्रजा) पालक भागभद्र के समीप उनके राज्यकाल के चौदहवें वर्ष में आये थे।"

  • हेलिओडोरस द्वारा निर्मित विदिशा का गरुड़ स्तम्भ कला का एक अच्छा नमूना है। वह मूलत: अशोक के ही स्तम्भों के आदर्श पर बना था। पर साथ ही उसमें कुछ मौलिक विशेषतायें भी हैं। इसका सबसे निचला भाग आठ कोनों का है। इसी तरह मध्य भाग सोलह कोने का और ऊपरी भाग बत्तीस कोने का है। यह विशेषता अशोक के स्तम्भों में नहीं दिखाई देती। इससे लगता है कि विदिशा के कलाकार निपुण थे और उनकी प्रतिभा मौलिक कोटि की थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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