शरद जोशी: Difference between revisions

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शरद जोशी के व्यंग्य में हास्य, कड़वाहट, मनोविनोद और चुटीलापन दिखाई देता है, जो उन्हें जनप्रिय और लोकप्रिय रचनाकार बनाता है। उन्होंने टेलीविजन के लिए ‘ये जो है जिंदगी’, 'विक्रम बेताल', 'सिंहासन बत्तीसी', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'प्याले में तूफान', 'दाने अनार के' और 'ये दुनिया गजब की' आदि धारावाहिक लिखे। इन दिनों 'सब' चैनल पर उनकी कहानियों और व्यंग्य पर आधारित 'लापतागंज शरद जोशी की कहानियों का पता' बहुत पसंद किया जा रहा है।<ref name="WDH"/>
शरद जोशी के व्यंग्य में हास्य, कड़वाहट, मनोविनोद और चुटीलापन दिखाई देता है, जो उन्हें जनप्रिय और लोकप्रिय रचनाकार बनाता है। उन्होंने टेलीविज़न के लिए ‘ये जो है ज़िंदगी’, 'विक्रम बेताल', 'सिंहासन बत्तीसी', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'प्याले में तूफान', 'दाने अनार के' और 'ये दुनिया गजब की' आदि धारावाहिक लिखे। इन दिनों 'सब' चैनल पर उनकी कहानियों और व्यंग्य पर आधारित 'लापतागंज शरद जोशी की कहानियों का पता' बहुत पसंद किया जा रहा है।<ref name="WDH"/>
 
==प्रकाशित कृतियाँ==
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Revision as of 13:49, 1 September 2013

शरद जोशी
पूरा नाम शरद जोशी
जन्म 21 मई 1931
जन्म भूमि उज्जैन, मध्य प्रदेश
मृत्यु 5 सितंबर 1991
मृत्यु स्थान मुंबई
मुख्य रचनाएँ व्यंग्य- परिक्रमा, किसी बहाने, यथासम्भव

फ़िल्म-क्षितिज, छोटी सी बात
धारावाहिक- विक्रम बेताल, सिंहासन बत्तीसी

विषय सामाजिक
भाषा हिन्दी
विद्यालय होल्कर कालेज, इन्दौर
शिक्षा स्नातक
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री, चकल्लस पुरस्कार, काका हाथरसी पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

शरद जोशी (जन्म:21 मई 1931, उज्जैन - 5 सितंबर 1991, मुंबई) अपने समय के अनूठे व्यंग्य रचनाकार थे। अपने वक्त की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को उन्होंने अत्यंत पैनी निगाह से देखा। अपनी पैनी कलम से बड़ी साफगोई के साथ उन्हें सटीक शब्दों में व्यक्त किया। शरद जोशी पहले व्यंग्य नहीं लिखते थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी आलोचना से खिन्न होकर व्यंग्य लिखना शुरू कर दिया। वह भारत के पहले व्यंग्यकार थे, जिन्होंने पहली बार मुंबई में ‘चकल्लस’ के मंच पर 1968 में गद्य पढ़ा और किसी कवि से अधिक लोकप्रिय हुए।

जीवन परिचय

शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन में हुआ था। क्षितिज, छोटी सी बात, साँच को आँच नहीं, गोधूलि और उत्सव फ़िल्में लिखने वाले शरद जोशी ने 25 साल तक कविता के मंच से गद्य पाठ किया।[1]

व्यक्तित्व

बिहारी के दोहे की तरह शरद अपने व्यंग्य का विस्तार पाठक पर छोड़ देते हैं। एक बार शरद जोशी ने लिखा था, ‘'लिखना मेरे लिए जीवन जीने की तरक़ीब है। इतना लिख लेने के बाद अपने लिखे को देख मैं सिर्फ यही कह पाता हूँ कि चलो, इतने बरस जी लिया। यह न होता तो इसका क्या विकल्प होता, अब सोचना कठिन है। लेखन मेरा निजी उद्देश्य है।'[1]

लोकप्रियता

शरद जोशी के व्यंग्य में हास्य, कड़वाहट, मनोविनोद और चुटीलापन दिखाई देता है, जो उन्हें जनप्रिय और लोकप्रिय रचनाकार बनाता है। उन्होंने टेलीविज़न के लिए ‘ये जो है ज़िंदगी’, 'विक्रम बेताल', 'सिंहासन बत्तीसी', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'प्याले में तूफान', 'दाने अनार के' और 'ये दुनिया गजब की' आदि धारावाहिक लिखे। इन दिनों 'सब' चैनल पर उनकी कहानियों और व्यंग्य पर आधारित 'लापतागंज शरद जोशी की कहानियों का पता' बहुत पसंद किया जा रहा है।[1]

प्रकाशित कृतियाँ

शरद जोशी की रचनाएँ[2]
व्यंग्य संग्रह
  1. परिक्रमा
  2. किसी बहाने
  3. तिलिस्म
  4. रहा किनारे बैठ
  5. मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ
  6. दूसरी सतह
  7. हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
  8. यथासम्भव
  9. जीप पर सवार इल्लियाँ।
नाटक
  1. अंधों का हाथी
  2. एक गधा उर्फ अलादाद ख़ाँ
फ़िल्म लेखन
  1. क्षितिज
  2. छोटी सी बात
  3. सांच को आंच नही
  4. गोधूलि
  5. उत्सव
दूरदर्शन धारावाहिक
  1. ये जो है जिन्दगी
  2. विक्रम बेताल
  3. सिंहासन बत्तीसी
  4. वाह जनाब
  5. देवी जी
  6. प्याले में तूफान
  7. दाने अनार के
  8. ये दुनिया गजब की

चित्र:Blockquote-open.gif ‘'लिखना मेरे लिए जीवन जीने की तरकीब है। इतना लिख लेने के बाद अपने लिखे को देख मैं सिर्फ यही कह पाता हूँ कि चलो, इतने बरस जी लिया। यह न होता तो इसका क्या विकल्प होता, अब सोचना कठिन है। लेखन मेरा निजी उद्देश्य है।' चित्र:Blockquote-close.gif

- शरद जोशी

सम्मान और पुरस्कार

  • चकल्लस पुरस्कार।
  • काका हाथरसी पुरस्कार।
  • श्री महाभारत हिन्दी सहित्य समिति इन्दौर द्वारा ‘सारस्वत मार्तण्ड’ की उपाधि परिवार पुरस्कार से सम्मानित।
  • 1990 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित।

निधन

5 सितंबर 1991 में मुंबई में उनका निधन हुआ। इन दिनों 'सब' चैनल पर उनकी कहानियों और व्यंग्य पर आधारित 'सिटकॉम' लापतागंज पसंद किया जा रहा है। उन्होंने लिखा था, 'अब जीवन का विश्लेषण करना मुझे अजीब लगता है। बढ़-चढ़ कर यह कहना कि जीवन संघषर्मय रहा। लेखक होने के कारण मैंने दुखी जीवन जीया, कहना फिजूल है। जीवन होता ही संघषर्मय है। किसका नहीं होता? लिखनेवाले का होता है तो क्या अजब होता है।'


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 शरद जोशी : हिन्दी के अनूठे व्यंग्यकार (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 5 जून, 2012।
  2. शरद जोशी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 5 जून, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख