चन्द्रकान्ता सन्तति -देवकीनन्दन खत्री: Difference between revisions
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चंद्रकांता संतति को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ़ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह को आपस मे प्रेम है, लेकिन राजपरिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र की प्रमुख कथा के साथ-साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चंद्रकांता के परिणय से होता है। | चंद्रकांता संतति को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ़ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह को आपस मे प्रेम है, लेकिन राजपरिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र की प्रमुख कथा के साथ-साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चंद्रकांता के परिणय से होता है। | ||
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Revision as of 12:59, 7 November 2013
चन्द्रकान्ता सन्तति -देवकीनन्दन खत्री
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लेखक | देवकीनन्दन खत्री |
मूल शीर्षक | चंद्रकांता संतति |
मुख्य पात्र | चंद्रकांता और वीरेंद्र |
प्रकाशक | मनोज पब्लिकेशंस |
प्रकाशन तिथि | 2011 |
ISBN | 978-81-310-1295-6 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 256 |
भाषा | हिंदी |
विषय | प्रेमकथा |
विधा | उपन्यास |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
विशेष | हिन्दी के प्रचार प्रसार में यह उपन्यास मील का पत्थर है। कहते हैं कि लाखों लोगों ने चन्द्रकान्ता संतति को पढ़ने के लिए ही हिन्दी सीखी। |
चंद्रकांता संतति हिन्दी के शुरुआती उपन्यासों में है, जिसके लेखक बाबू देवकीनन्दन खत्री हैं। इसकी रचना 19वीं सदी के अंत में हुई थी। यह उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था और कहा जाता है कि इसे पढ़ने के लिए कई लोगों ने देवनागरी सीखी थी। यह तिलिस्म और ऐय्यारी पर आधारित है और इसका नाम नायिका के नाम पर रखा गया है।
कथानक
चंद्रकांता संतति को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ़ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह को आपस मे प्रेम है, लेकिन राजपरिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र की प्रमुख कथा के साथ-साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चंद्रकांता के परिणय से होता है।
चन्द्रकान्ता और चन्द्रकान्ता सन्तति
"चन्द्रकान्ता" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" में यद्यपि इस बात का पता नहीं लगेगा कि कब और कहाँ भाषा का परिवर्तन हो गया परन्तु उसके आरम्भ और अन्त में आप ठीक वैसा ही परिवर्तन पायेंगे जैसा बालक और वृद्ध में। एक दम से बहुत से शब्दों का प्रचार करते तो कभी सम्भव न था कि उतने संस्कृत शब्द हम ग्रामीण लोगों को याद करा देते। इस पुस्तक के लिए वह लोग भी बोधगम्य उर्दू के शब्दों को अपनी विशुद्ध हिन्दी में लाने लगे हैं जो आरम्भ में इसका विरोध करते थे। इस प्रकार प्राकृत प्रवाह के साथ साथ साहित्यसेवियों की सरस्वती का प्रवाह बदलता देख कर समय के बदलने का अनुमान करना कुछ अनुचित नहीं है। भाषा के विषय में यही होना चाहिए कि वह सरल हो और नागरी वाणी में हो क्योंकि जिस भाषा के अक्षर होते हैं उनका खिंचाव उन्हीं मूल भाषाओं की ओर होता है जिससे उनकी उत्पत्ति हुई है।
- चन्द्रकान्ता संतति
बाबू देवकीनंदन खत्री लिखित चन्द्रकान्ता संतति हिन्दी साहित्य का ऐसा उपन्यास है जिसने पूरे देश में तहलका मचाया था। बाबू देवकीनन्दन खत्री ने पहले चन्द्रकान्ता लिखा फिर चन्द्रकान्ता की लोकप्रियता और सफलता को देख कर उन्होंने चन्द्रकान्ता की कहानी को आगे बढ़ाया और चन्द्रकान्ता संतति की रचना की। हिन्दी के प्रचार प्रसार में यह उपन्यास मील का पत्थर है। कहते हैं कि लाखों लोगों ने चन्द्रकान्ता संतति को पढ़ने के लिए ही हिन्दी सीखी। घटना प्रधान, तिलिस्म, जादूगरी, रहस्यलोक, एय्यारी की पृष्ठभूमि वाला हिन्दी का यह उपन्यास आज भी लोकप्रियता के शीर्ष पर है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- देवकीनंदन खत्री की पुस्तकें
- चन्द्रकान्ता संतति
- चन्द्रकान्ता संतति
- Chandrkanta Santati Part 24 By Babu Devaki Nandan Khatri
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