संसद हमला 2001: Difference between revisions

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thumb|300px|संसद पर हमला 13 दिसंबर 2001 को जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया था। उस दिन एक सफ़ेद एंबेसडर कार में आए इन आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी करके पूरे हिंदुस्तान को झकझोर दिया था। यह पाकिस्तान की भारत के लोकतंत्र के मंदिर को नेस्तनाबूद करने की साजिश थी, लेकिन भारत के सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इन आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

संसद भवन पर हमला

भारत का संसद भवन, लोकतंत्र का मंदिर जहां जनता द्वारा चुने सांसद भारत की नीति-नियमों का निर्माण करते हैं। आम दिनों में जब संसद भवन के परिसर कोई सफेद रंग की एंबेसेडर आती है तो कोई ध्यान नहीं देता, लेकिन दिनांक 13 दिसंबर 2001 को उस सफ़ेद रंग की एंबेसेडर कार ने कोहराम मचा दिया। संसद भवन के परिसर में अचानक से आए 5 आतंकवादियों ने 45 मिनट तक लोकतंत्र के इस मंदिर पर गोलियों-बमों से थर्रा कर रख दिया था। आतंक के नापाक कदम उस दिन लोकतंत्र के मंदिर की दहलीज तक पहुंच गए थे। अचानक हुए हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। संसद परिसर के अंदर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने अचानक हुए हमले का बड़ी ही वीरता से सामना किया। लोकतंत्र के इस मंदिर में कोई आंच न आए, इसलिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी ही वीरता से सभी आतंकियों को मार गिराया। आतंकियों का सामना करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए। 16 जवान इस दौरान मुठभेड़ में घायल हुए।

न्यायिक प्रक्रिया

संसद पर हमले की घिनौनी साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफ़ज़ल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त 2005 को अफ़जल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने आदेश दिया था कि 20 अक्टूबर, 2006 को अफ़ज़ल गुरु को फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाए।

फाँसी की सजा

3 अक्टूबर 2006 को अफ़ज़ल गुरु की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर दी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफ़ज़ल की दया याचिका खारिज कर दी और सरकार ने उसे फांसी देकर हमले में शहीद हुए बहादुरों को सही मायने में श्रद्धांजलि दी। राष्ट्रपति ने इस दया याचिका पर गृह मंत्रालय से राय मांगी। मंत्रालय ने इसे दिल्ली सरकार को भेज दिया जहां दिल्ली सरकार ने इसे खारिज करके गृह मंत्रालय को वापस भेजा। गृह मंत्रालय ने भी दया याचिका पर फैसला लेने में वक्त लगाया लेकिन मंत्रालय ने अपनी फाइल राष्ट्रपति के पास भेज दी है। 9 फ़रवरी, 2013 को अफ़ज़ल गुरु को नई दिल्ली को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फाँसी पर लटकाया गया।

सेना की वर्दी पहनकर आए थे आतंकी

दिल्ली पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीतराम उपराष्ट्रपति के काफिले में एस्कॉर्ट वन कार पर तैनात थे। जीतराम को सामने से आती हुई सफेद एंबेसडर दिखाई दी। सेकेंडों में ये कार जीतराम के पास तक आ गई। उसकी कार के चलते रास्ता थोड़ा संकरा हो गया था। एंबेसेडर की रफ्तार धीमी होने के बजाय और तेज हो गई। वो कार की तरफ देखता रहा, अचानक ये कार बाईं ओर मुड़ गई। जीतराम को कार के ड्राइवर की ये हरकत थोड़ी अजीब लगी जबकि कार पर लाल बत्ती है। गृह मंत्रालय का स्टीकर है तो फिर वो उससे बचकर क्यों भागी। जीतराम ने जोर से चिल्ला कर उस कार को रुकने को कहा। एएसआई की आवाज़ सुनकर वो कार आगे जाकर ठिठक गई। लेकिन वहीं इंतजार करने के बजाय उसके ड्राइवर ने कार पीछे करनी शुरू कर दी। अब जीतराम तेजी से उसकी तरफ भागा। इसी हड़बड़ी में वो कार उप राष्ट्रपति के काफिले की मुख्य कार से टकरा गई। जब गाड़ी खड़ी थी तभी आतंकियों की गाड़ी ने उनकी कार में टक्कर मारी। इसके बाद विजेंदर सिंह ने गाड़ी में बैठे आतंकी का कॉलर पकड़ा और कहा कि दिखाई नहीं दे रहा, तुमने उपराष्ट्रपति की गाड़ी को टक्कर मार दी। सुरक्षाकर्मियों के हल्ला मचाने के बावजूद कार में बैठे आतंकी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। जीतराम समेत बाकी लोग उस पर चिल्लाए कि तुम देखकर गाड़ी क्यों नहीं चला रहे हो। इस पर गाड़ी में बैठे ड्राइवर ने उसे धमकी दी कि पीछे हट जाओ वर्ना तुम्हें जान से मार देंगे। अब जीतराम को यकीन हो गया कि कार में बैठे लोगों ने भले सेना की वर्दी पहन रखी है, लेकिन वो सेना में नहीं हैं। उसने तुरंत अपनी रिवॉल्वर निकाल ली। जीतराम को रिवॉल्वर निकालता देख संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ का जेपी यादव गेट नंबर 11 की तरफ भागा। एक ऐसे काम के लिए जिसके शुक्रगुजार हमारे सांसद आज भी हैं।
कार चला रहे आतंकी ने अब कार गेट नंबर 9 की तरफ मोड़ दी। इसी गेट का इस्तेमाल प्रधानमंत्री राज्यसभा में जाने के लिए करते हैं। कार चंद मीटर बढ़ी लेकिन आतंकी उस पर काबू नहीं रख पाए, कार सड़क किनारे लगे पत्थरों से टकरा कर थम गई। तब तक जीतराम भी दौड़ता हुआ कार तक पहुंच गया। उसके हाथ में रिवॉल्वर देख पांचों आतंकी तेजी से बाहर निकल आए। उतरते ही उन्होंने कार के बाहर तार बिछाना और उससे विस्फोटकों को जो़ड़ना शुरू कर दिया। लेकिन तब तक जीतराम को यकीन हो गया कि ये आतंकवादी हैं। उसने बिना देर किए एक पर गोली दाग दी जो उसके पैर पर लगी। जवाब में उस आतंकी ने भी जीतराम पर फायर कर दिया। गोली उसके पैर में जाकर धंस गई और वो वहीं गिर गया। इस वक्त तक सरकार में ऊपर से लेकर नीचे तक किसी को अंदाजा नहीं था कि संसद की सुरक्षा में कितनी बड़ी सेंध लग चुकी है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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