छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-3: Difference between revisions

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*उद्गाता जिस 'साम' के द्वारा उद्गीथ की उपासना करे, सदा उसी का चिन्तन भी करे। जिस [[छन्द]] के द्वारा स्तुति करता हो, उस छन्द का चिन्तन करे। जिन स्तोत्रों से स्तुति करता हो, उस स्तोत्रों का चिन्तन करे। जिस दिशा का चिन्तन करता हो, उस दिशा का चिन्तन करे। इस प्रकार अन्त में अपने आत्म-स्वरूप और कामना आदि का चिन्तन प्रमाद-रहित होकर करे। तभी उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
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Revision as of 12:40, 12 August 2016

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-3
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय 8 (आठ)
प्रकार मुख्य उपनिषद
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह तीसरा खण्ड है। इस खण्ड में आधिदैविक रूप से ॐकार की उपासना की गई है।

  • ॐकार मधुर उद्गान प्राणी में प्राणों को संचार करता है। इस प्रकार वह अन्धकार और सभी प्रकार के भय से प्राणी को मुक्त करने की चेष्टा करता है। प्राण और सूर्य को वह समान मानता है। अत: इस प्राण और उस सूर्य में ही ॐकार को मानकर उपासना करनी चाहिए।
  • उद्गाता जिस 'साम' के द्वारा उद्गीथ की उपासना करे, सदा उसी का चिन्तन भी करे। जिस छन्द के द्वारा स्तुति करता हो, उस छन्द का चिन्तन करे। जिन स्तोत्रों से स्तुति करता हो, उस स्तोत्रों का चिन्तन करे। जिस दिशा का चिन्तन करता हो, उस दिशा का चिन्तन करे। इस प्रकार अन्त में अपने आत्म-स्वरूप और कामना आदि का चिन्तन प्रमाद-रहित होकर करे। तभी उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।


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