तुलसी: Difference between revisions
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तुलसी [[राधा]] की सखी थी, किंतु राधा ने इसे शाप दे दिया। यह धर्मध्वज के घर पैदा हुई। अनुपम सौंदर्यवती तुलसी ने तप करके [[ब्रह्मा]] से वर मांग लिया कि मुझे पतिरूप में श्री [[कृष्ण]] प्राप्त हों। पर उसका विवाह [[शंखचूर्ण]] नामक राक्षस के साथ हो गया। शंखचूर्ण को वरदान प्राप्त था कि जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व भंग नहीं होगा, वह मर नहीं सकता। जब शंखचूर्ण का उपद्रव बहुत बढ़ गया तो [[विष्णु]] ने शंखचूर्ण का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। इससे रुष्ट होकर तुलसी ने विष्णु को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया। लेकिन विष्णु ने उसे वर दिया कि तुम्हारे केशों से तुलसी का पौधा उत्पन्न होगा और तुम मुझे [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी]] के समान प्रिय होगी। कहते हैं, तभी से विष्णु के [[शालिग्राम]] रूप की तुलसी की पत्तियों से पूजा होने लगी। | तुलसी [[राधा]] की सखी थी, किंतु राधा ने इसे शाप दे दिया। यह धर्मध्वज के घर पैदा हुई। अनुपम सौंदर्यवती तुलसी ने तप करके [[ब्रह्मा]] से वर मांग लिया कि मुझे पतिरूप में श्री [[कृष्ण]] प्राप्त हों। पर उसका विवाह [[शंखचूर्ण]] नामक राक्षस के साथ हो गया। शंखचूर्ण को वरदान प्राप्त था कि जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व भंग नहीं होगा, वह मर नहीं सकता। जब शंखचूर्ण का उपद्रव बहुत बढ़ गया तो [[विष्णु]] ने शंखचूर्ण का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। इससे रुष्ट होकर तुलसी ने विष्णु को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया। लेकिन विष्णु ने उसे वर दिया कि तुम्हारे केशों से तुलसी का पौधा उत्पन्न होगा और तुम मुझे [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी]] के समान प्रिय होगी। कहते हैं, तभी से विष्णु के [[शालिग्राम]] रूप की तुलसी की पत्तियों से पूजा होने लगी। | ||
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Revision as of 12:06, 26 August 2010
- एक छोटा पौधा जिसे वैष्णव धर्मावलंबी अत्यंत पवित्र मानते और पूजा में इसकी पत्तियों का उपयोग करते हैं।
- आंगन में इसका पौधा लगाया जाता है।
- प्रात:काल इसमें जल चढ़ाते और सायं काल इसके नीचे दिया जलाते हैं।
- तुलसी के संबंध में पुराणों में एक कथा मिलती है।
- तुलसी का एक नाम वृन्दा है।
- वह अपने पतिव्रत धर्म के कारण विष्णु के लिए भी वंदनीय थी।
- इसी वृन्दा के नाम पर श्रीकृष्ण की लीलाभूमि का नाम वृन्दावन पड़ा।
तुलसी राधा की सखी थी, किंतु राधा ने इसे शाप दे दिया। यह धर्मध्वज के घर पैदा हुई। अनुपम सौंदर्यवती तुलसी ने तप करके ब्रह्मा से वर मांग लिया कि मुझे पतिरूप में श्री कृष्ण प्राप्त हों। पर उसका विवाह शंखचूर्ण नामक राक्षस के साथ हो गया। शंखचूर्ण को वरदान प्राप्त था कि जब तक उसकी स्त्री का सतीत्व भंग नहीं होगा, वह मर नहीं सकता। जब शंखचूर्ण का उपद्रव बहुत बढ़ गया तो विष्णु ने शंखचूर्ण का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। इससे रुष्ट होकर तुलसी ने विष्णु को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया। लेकिन विष्णु ने उसे वर दिया कि तुम्हारे केशों से तुलसी का पौधा उत्पन्न होगा और तुम मुझे लक्ष्मी के समान प्रिय होगी। कहते हैं, तभी से विष्णु के शालिग्राम रूप की तुलसी की पत्तियों से पूजा होने लगी।