प्रयोग:कविता बघेल 5: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 3: Line 3:
|चित्र का नाम=जे.सी. कुमारप्पा
|चित्र का नाम=जे.सी. कुमारप्पा
|पूरा नाम=जे.सी. कुमारप्पा
|पूरा नाम=जे.सी. कुमारप्पा
|अन्य नाम=
|अन्य नाम=जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस
|जन्म=[[4 जनवरी]], [[1892]]
|जन्म=[[4 जनवरी]], [[1892]]
|जन्म भूमि=[[मद्रास]] के थानजीवर
|जन्म भूमि=[[मद्रास]] के थानजीवर
Line 14: Line 14:
|कर्म भूमि=भारत
|कर्म भूमि=भारत
|कर्म-क्षेत्र=लेखन कार्य
|कर्म-क्षेत्र=लेखन कार्य
|मुख्य रचनाएँ=इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स (Economy of Permanence), गांधीयन इकोनोमीक थोट (Gandhian Economic)
|मुख्य रचनाएँ=इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स, गांधीयन इकोनोमीक थोट
|विषय=
|विषय=
|खोज=
|खोज=

Revision as of 11:33, 18 February 2017

कविता बघेल 5
पूरा नाम जे.सी. कुमारप्पा
अन्य नाम जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस
जन्म 4 जनवरी, 1892
जन्म भूमि मद्रास के थानजीवर
मृत्यु 30 जनवरी, 1960
मृत्यु स्थान मदुरई
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र लेखन कार्य
मुख्य रचनाएँ इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स, गांधीयन इकोनोमीक थोट
शिक्षा स्नातक
विद्यालय सायराक्रुज़ विश्वविद्यालय
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख महात्मा गाँधी
अन्य जानकारी गाँधीजी की अनुपस्थिति में कुमारप्पा ने यंग इण्डिया के सम्पादन की ज़िम्मेदारी उठायी और इनके आक्रामक लेखन के कारण ब्रिटिश सरकार ने इन्हें गिरफ्तार करके ढाई साल के लिए ज़ेल भेज दिया। जेल से रिहा होने के बाद इन्होंने बिहार में विनाशकारी भूकम्प के राहत-कार्य के पैसे के लेन-देन का काम देखने लगे।

जे.सी. कुमारप्पा (अंग्रेज़ी: J. C. Kumarappa, जन्म: 4 जनवरी, 1892, मद्रास; मृत्यु: 30 जनवरी, 1960, मदुरई) भारत के एक अर्थशास्त्री थे। इनका मूल नाम 'जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस' था। ये महात्मा गांधी के निकट सहयोगी रहे थे। जे सी कुमारप्पा को भारत में गाँधीवादी अर्थशास्त्र का प्रथम गुरु माना जाता है।

परिचय

जे.सी. कुमारप्पा मद्रास में थानजीवर नामक स्थान पर 4 जनवरी, 1892 में पैदा हुए थे। ये मदुरई के मध्यमवर्गीय परम्परागत इक़साई परिवार से थे। इनके बचपन का नाम जोसफ़ चेल्लादुरै कॉर्नेलियस था। इन्होंने मद्रास से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की तथा उसके बाद लंदन जाकर लेखा-विधि (एकाउंटेंसी) में प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर वहीं लंदन में एकाउंटेंट के रूप में कुछ वर्षों तक काम भी किया। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर और अपनी माता के बुलाने पर ये भारत लौट आये और बम्बई में कुछ समय तक एक ब्रिटिश कम्पनी में काम किया। उसके बाद 1924 में इन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया।[1]

शिक्षा

1927 में ये फिर उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका गये और सायराक्रुज़ विश्वविद्यालय से वाणिज्य एवं व्यापार प्रबंधन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद इन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय में सार्वजनिक वित्त का अध्ययन करके अपने समय के प्रख्यात अर्थशास्त्री एडविन सेलिग्मन के मार्गदर्शन में 'सार्वजनिकवित्त एवं भारत की निर्धनता' पर शोध पत्र लिखा जिसमें भारत की आर्थिक दुर्दशा में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नीतियों से हुए नुकसान का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन के दौरान ही कुमारप्पा ने पाया कि भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अनैतिक और शोषक नीतियाँ हैं। इसी बीच उन्होंने अपने मूल पारिवारिक नाम कुमारप्पा को अपने नाम के साथ जोड़ने का फ़ैसला किया।

स्वतंत्रता में सहायक

जे.सी. कुमारप्पा 1929 में भारत वापिस लौट आए। उन्होंने स्वयं महात्मा गांधीजी के साथ मिलकर गुजरात में ग्रामीण सर्वेक्षण संचालित किया तथा केन्द्रीय प्रान्तों में औद्योगिक सर्वेक्षण किया। इन्होंने 1929-1931 के दौरान गुजरात विद्यापीठ में पढ़ाया और गांधीजी की गैर-मोजूदगी में यंग इण्डिया का सम्पादन किया। यंग इण्डिया में कुमारप्पा के लेख ‘सार्वजनिक वित्त और हमारी निर्धनता’ का सिलसिलेवार प्रकाशन भी शुरू हो गया। साथ ही मातर ताल्लुका के आर्थिक सर्वेक्षण का प्रकाशन भी हो रहा था। इन प्रकाशनों के बीच गाँधी ने नमक सत्याग्रह के लिए दांडी यात्रा भी शुरू कर दी। नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जब ब्रिटिश प्रशासन ने गाँधी को गिरफ्तार कर लिया तो यंग इण्डिया के संचालन की ज़िम्मेदारी कुमारप्पा पर आ गयी। इस पत्र में लेखन के कारण कुमारप्पा को भी गिरफ्तार करके डेढ़ साल के लिए जेल भेज दिया गया।

1931 में गाँधी-इरविन समझौते के बाद कुमारप्पा रिहा हुए और इन्हें लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार और भारत के बीच के वित्तीय लेन देन की समुचित पड़ताल करने के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इस कांग्रेस अधिवेशन के बाद गाँधी गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड चले गये। गाँधी की अनुपस्थिति में कुमारप्पा ने यंग इण्डिया के सम्पादन की ज़िम्मेदारी फिर से उठायी और उनके आक्रामक लेखन के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पुनः गिरफ्तार करके ढाई साल के लिए ज़ेल भेज दिया। जेल से रिहा होने के बाद कुमारप्पा ने बिहार में विनाशकारी भूकम्प के राहत-कार्य के पैसे के लेन-देन का काम देखने लगे। सन् 1934 में ये ऑल इण्डिया विलेज इन्डस्ट्रीज एसोशिएशन के सचिव बनाये गये और गांधीजी के देहान्त के बाद ये इसके अध्यापक बनाये गये कुमारप्पा ने महात्मा गांधी के आर्थिक विचारों को एक वैज्ञानिक आत्मा के साथ व्याख्यायित किया। आधारभूत शिक्षा के प्रतिपादन में भी इन्होंने मुख्य भूमिका निभायी।

रचनाएं

जे.सी. कुमारप्पा एक बहुसर्जक रचनाकार थे और उन्होंने गांधीवादी अर्थशास्त्र में अनेक पुस्तकें लिखी। उनमें दो पुस्तकें इनकी अत्यंत लोकप्रिय हुई जो निम्न प्रकार है-

  1. इकोनोमी ऑफ प्रमानेन्स (Economy of Permanence)
  2. गांधीयन इकोनोमीक थोट (Gandhian Economic)

मृत्यु

जे.सी. कुमारप्पा का निधन 30 जनवरी, 1960 हुआ। इनकी स्मृति में कुमारप्पा इंस्टीट्यूट ऑफ़ ग्राम स्वराज की स्थापना की गयीं।

  1. जे.सी. कुमारप्पा (हिन्दी) ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 18 फ़रवरी, 2017।