खिलखिलाहट -काका हाथरसी: Difference between revisions
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==कवि के अनुसार== | ==कवि के अनुसार== | ||
बहुत दिनों से इच्छा थी कि अपने कवि-साथियों को एक बार फिर एक स्थल पर एकत्र किया जाए। कवि सम्मेलनों में व्यस्त रहने के कारण सब एक मंच पर एकत्र हो सकें, यह तो संभव नहीं था, किंतु अपनी सिद्ध-प्रसिद्ध रचनाओं के साथ उन्हें एक पुस्तक में | बहुत दिनों से इच्छा थी कि अपने कवि-साथियों को एक बार फिर एक स्थल पर एकत्र किया जाए। कवि सम्मेलनों में व्यस्त रहने के कारण सब एक मंच पर एकत्र हो सकें, यह तो संभव नहीं था, किंतु अपनी सिद्ध-प्रसिद्ध रचनाओं के साथ उन्हें एक पुस्तक में संग्रहीत किया जाए, यह विचार बार-बार मस्तिष्क में आने लगा था। हमने अपना यह विचार प्रिय डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल के सामने रखा। फिर हम दोनों अपने इस कार्य में जुट गए। जिस समय सारा मौसम उदास-उदास था, हम पाठकों के लिए खिलखिलाने की सामग्री जुटा रहे थे, मनहूसियत मिटाने का सुअवसर ला रहे थे। अब यह अवसर आ गया है। हास्य-व्यंग्य के सिद्ध-प्रसिद्ध साथियों की खिलखिलाती रचनाओं का संकलन 'खिलखिलाहट'। | ||
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कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया | कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया | ||
रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया | रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया | ||
संग्रहीत कवि मीत, मंच पर जब-जब गाएँ | |||
हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ</poem></blockquote> | हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ</poem></blockquote> | ||
Latest revision as of 08:23, 21 May 2017
खिलखिलाहट -काका हाथरसी
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कवि | काका हाथरसी |
मूल शीर्षक | खिलखिलाहट |
प्रकाशक | डायमंड पॉकेट बुक्स |
ISBN | 81-288-0612-2 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 168 |
भाषा | हिन्दी |
शैली | हास्य |
खिलखिलाहट हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी की कुछ चुनिन्दा कविताओं का संग्रह है। काका हाथरसी को हिन्दी हास्य कवि के रूप में ख्याति प्राप्त है। उनकी हास्य कविताएँ जहाँ एक ओर हँसाती और गुदगुदाती हैं, वहीं दूसरी ओर अनेकों सामाजिक बुराइयों पर भी कुठाराघात करती हैं।
कवि के अनुसार
बहुत दिनों से इच्छा थी कि अपने कवि-साथियों को एक बार फिर एक स्थल पर एकत्र किया जाए। कवि सम्मेलनों में व्यस्त रहने के कारण सब एक मंच पर एकत्र हो सकें, यह तो संभव नहीं था, किंतु अपनी सिद्ध-प्रसिद्ध रचनाओं के साथ उन्हें एक पुस्तक में संग्रहीत किया जाए, यह विचार बार-बार मस्तिष्क में आने लगा था। हमने अपना यह विचार प्रिय डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल के सामने रखा। फिर हम दोनों अपने इस कार्य में जुट गए। जिस समय सारा मौसम उदास-उदास था, हम पाठकों के लिए खिलखिलाने की सामग्री जुटा रहे थे, मनहूसियत मिटाने का सुअवसर ला रहे थे। अब यह अवसर आ गया है। हास्य-व्यंग्य के सिद्ध-प्रसिद्ध साथियों की खिलखिलाती रचनाओं का संकलन 'खिलखिलाहट'।
खिल-खिल खिल-खिल हो रही, श्री यमुना के कूल
अलि अवगुंठन खिल गए, कली बन गईं फूल
कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया
रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया
संग्रहीत कवि मीत, मंच पर जब-जब गाएँ
हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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