बल्लाल सेन: Difference between revisions
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*उसने गौड़ेश्वर तथा निशंकर की उपाधि से उसके शैव मतालम्बी होने का आभास होता है। | *उसने गौड़ेश्वर तथा निशंकर की उपाधि से उसके शैव मतालम्बी होने का आभास होता है। | ||
* उसका साहित्यिक गुरु | * उसका साहित्यिक गुरु विद्वान् अनिरुद्ध था। | ||
*जीवन के अन्तिम समय में वल्लालसेन ने सन्न्यास ले लिया था। | *जीवन के अन्तिम समय में वल्लालसेन ने सन्न्यास ले लिया था। | ||
*उसे बंगाल के [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] और कायस्थों में 'कुलीन प्रथा' का प्रवर्तक माना जाता है। | *उसे बंगाल के [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] और कायस्थों में 'कुलीन प्रथा' का प्रवर्तक माना जाता है। |
Latest revision as of 14:54, 6 July 2017
- बंगाल के सेन वंश का (1158-79 ई.) प्रमुख शासक था। उसने उत्तरी बंगाल पर विजय प्राप्त की और मगध के पालों के विरुद्ध भी अभियान चलाया और बंगाल में पाल वंश के शासन का अन्त कर दिया।
- विजय सेन का उत्तराधिकारी वल्ला सेन हुआ।
- 'लघुभारत' एवं 'वल्लालचरित' ग्रंथ के उल्लेख से प्रमाणित होता है कि वल्लाल का अधिकार मिथिला और उत्तरी बिहार पर था। इसके अतिरिक्त राधा, वारेन्द्र, वाग्डी एवं वंगा वल्लाल सेन के अन्य चार प्रान्त थे।
- वल्ला सेन कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ संस्कृत का ख्याति प्राप्त लेखक था।
- उसने स्मृति दानसागर नाम का लेख एवं खगोल विज्ञानपर अद्भुतसागर लेख लिखा।
- उसने जाति प्रथा एवं कुलीन को अपने शासन काल में प्रोत्साहन दिया।
- उसने गौड़ेश्वर तथा निशंकर की उपाधि से उसके शैव मतालम्बी होने का आभास होता है।
- उसका साहित्यिक गुरु विद्वान् अनिरुद्ध था।
- जीवन के अन्तिम समय में वल्लालसेन ने सन्न्यास ले लिया था।
- उसे बंगाल के ब्राह्मणों और कायस्थों में 'कुलीन प्रथा' का प्रवर्तक माना जाता है।
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