बड़े दिल वाला -महात्मा गाँधी: Difference between revisions
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[[महात्मा गांधी]] जी ने प्रारंभ में ही छुआछूत की आलोचना तो की परन्तु जाति के संबंध में पूर्व से चले आ रहे नियमों को वैसे ही रहने दिया। कुछ समय बाद उन्होंने दलितो के मंदिर में प्रवेश को लेकर आन्दोलन चलाया तथा साझा भोज पर बल दिया। बहुत बाद में अपने आश्रम में एक दलित और एक सर्वण के [[विवाह]] की अनुमति दी। [[भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन]] की अगुआयी कर रही कांग्रेस गांधी जी द्वारा दलितों के सामाजिक उत्थान हेतु चलाये गये इन कदमों से सहमति नहीं रखती थी क्योंकि उसका मानना था कि '[[सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलन|सामाजिक सुधार]]' को '[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|स्वतंत्रता आन्दोलन]]' से | [[महात्मा गांधी]] जी ने प्रारंभ में ही छुआछूत की आलोचना तो की परन्तु जाति के संबंध में पूर्व से चले आ रहे नियमों को वैसे ही रहने दिया। कुछ समय बाद उन्होंने दलितो के मंदिर में प्रवेश को लेकर आन्दोलन चलाया तथा साझा भोज पर बल दिया। बहुत बाद में अपने आश्रम में एक दलित और एक सर्वण के [[विवाह]] की अनुमति दी। [[भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन]] की अगुआयी कर रही कांग्रेस गांधी जी द्वारा दलितों के सामाजिक उत्थान हेतु चलाये गये इन कदमों से सहमति नहीं रखती थी क्योंकि उसका मानना था कि '[[सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलन|सामाजिक सुधार]]' को '[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|स्वतंत्रता आन्दोलन]]' से पृथक् रखा जाना चाहिये। | ||
[[कांग्रेस]] के इस रवैये के कारण [[भीमराव आम्बेडकर|डॉ भीमराव अम्बेडकर]] अंग्रेजी राज का साथ दे रहे थे और [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] के समय वे [[वायसराय]] की कार्यकारी परिषद के सदस्य होते थे इतना ही नहीं वे गांधी के प्रखर आलोचक भी थे और उनके विरूद्व अपमानजनक और विवादास्पद भाषा का प्रयोग किया करते थे। अपने इस व्यवहार के पीछे उनका मानना था कि कांग्रेस के [[ब्राह्मण]] बाहुल्य ढांचे से दलितोें का भला नहीं हो सकता था। (आम्बेडकर के पूर्वज भी लंबे समय तक ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की सेना में कार्यरत थे और भीमराव के पिता रामजी आम्बेडकर ब्रिटिश फ़ौज में सूबेदार थे) | [[कांग्रेस]] के इस रवैये के कारण [[भीमराव आम्बेडकर|डॉ भीमराव अम्बेडकर]] अंग्रेजी राज का साथ दे रहे थे और [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] के समय वे [[वायसराय]] की कार्यकारी परिषद के सदस्य होते थे इतना ही नहीं वे गांधी के प्रखर आलोचक भी थे और उनके विरूद्व अपमानजनक और विवादास्पद भाषा का प्रयोग किया करते थे। अपने इस व्यवहार के पीछे उनका मानना था कि कांग्रेस के [[ब्राह्मण]] बाहुल्य ढांचे से दलितोें का भला नहीं हो सकता था। (आम्बेडकर के पूर्वज भी लंबे समय तक ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] की सेना में कार्यरत थे और भीमराव के पिता रामजी आम्बेडकर ब्रिटिश फ़ौज में सूबेदार थे) | ||
[[1947]] में जब देश स्वतंत्र हुआ तो [[भीमराव आम्बेडकर|डॉ. अंबेडकर]] के इसी प्रकार के विचारों के चलते कांग्रेस के नेतागण विशेष रूप से [[जवाहरलाल नेहरू]] और [[सरदार पटेल]] उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में साथ रखने को तैयार न थे परन्तु गांधी जी ने हस्तक्षेप करके यह समझाने का प्रयास किया कि कि आज़ादी कांग्रेस को नहीं मिली है अपितु देश को मिली है इसलिये पहले मंत्रिमंडल में सबसे अच्छी प्रतिभाओं को शामिल किया जाना चाहिये चाहे वह किसी भी दल अथवा समुदाय की क्यों न हो। गांधी के इस सकारात्मक हस्तक्षेप के बाद ही डॉ. अम्बेडकर देश के पहले कानून मंत्री बन सके थे। गांधी जी के लिये मन में किसी के लिये बैर अथवा पूर्वाग्रह नहीं था इसीलिये उन्हें महामानव कहा गया। | [[1947]] में जब देश स्वतंत्र हुआ तो [[भीमराव आम्बेडकर|डॉ. अंबेडकर]] के इसी प्रकार के विचारों के चलते कांग्रेस के नेतागण विशेष रूप से [[जवाहरलाल नेहरू]] और [[सरदार पटेल]] उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में साथ रखने को तैयार न थे परन्तु गांधी जी ने हस्तक्षेप करके यह समझाने का प्रयास किया कि कि आज़ादी कांग्रेस को नहीं मिली है अपितु देश को मिली है इसलिये पहले मंत्रिमंडल में सबसे अच्छी प्रतिभाओं को शामिल किया जाना चाहिये चाहे वह किसी भी दल अथवा समुदाय की क्यों न हो। गांधी के इस सकारात्मक हस्तक्षेप के बाद ही डॉ. अम्बेडकर देश के पहले कानून मंत्री बन सके थे। गांधी जी के लिये मन में किसी के लिये बैर अथवा पूर्वाग्रह नहीं था इसीलिये उन्हें महामानव कहा गया। |
Latest revision as of 13:27, 1 August 2017
बड़े दिल वाला -महात्मा गाँधी
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विवरण | महात्मा गाँधी |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
महात्मा गांधी जी ने प्रारंभ में ही छुआछूत की आलोचना तो की परन्तु जाति के संबंध में पूर्व से चले आ रहे नियमों को वैसे ही रहने दिया। कुछ समय बाद उन्होंने दलितो के मंदिर में प्रवेश को लेकर आन्दोलन चलाया तथा साझा भोज पर बल दिया। बहुत बाद में अपने आश्रम में एक दलित और एक सर्वण के विवाह की अनुमति दी। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की अगुआयी कर रही कांग्रेस गांधी जी द्वारा दलितों के सामाजिक उत्थान हेतु चलाये गये इन कदमों से सहमति नहीं रखती थी क्योंकि उसका मानना था कि 'सामाजिक सुधार' को 'स्वतंत्रता आन्दोलन' से पृथक् रखा जाना चाहिये।
कांग्रेस के इस रवैये के कारण डॉ भीमराव अम्बेडकर अंग्रेजी राज का साथ दे रहे थे और भारत छोड़ो आन्दोलन के समय वे वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य होते थे इतना ही नहीं वे गांधी के प्रखर आलोचक भी थे और उनके विरूद्व अपमानजनक और विवादास्पद भाषा का प्रयोग किया करते थे। अपने इस व्यवहार के पीछे उनका मानना था कि कांग्रेस के ब्राह्मण बाहुल्य ढांचे से दलितोें का भला नहीं हो सकता था। (आम्बेडकर के पूर्वज भी लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना में कार्यरत थे और भीमराव के पिता रामजी आम्बेडकर ब्रिटिश फ़ौज में सूबेदार थे)
1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ तो डॉ. अंबेडकर के इसी प्रकार के विचारों के चलते कांग्रेस के नेतागण विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में साथ रखने को तैयार न थे परन्तु गांधी जी ने हस्तक्षेप करके यह समझाने का प्रयास किया कि कि आज़ादी कांग्रेस को नहीं मिली है अपितु देश को मिली है इसलिये पहले मंत्रिमंडल में सबसे अच्छी प्रतिभाओं को शामिल किया जाना चाहिये चाहे वह किसी भी दल अथवा समुदाय की क्यों न हो। गांधी के इस सकारात्मक हस्तक्षेप के बाद ही डॉ. अम्बेडकर देश के पहले कानून मंत्री बन सके थे। गांधी जी के लिये मन में किसी के लिये बैर अथवा पूर्वाग्रह नहीं था इसीलिये उन्हें महामानव कहा गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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