प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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-दुवर्जर | -दुवर्जर | ||
-थामस हेयर | -थामस हेयर | ||
||बार्कर का कहना है कि आधुनिक राज्यों में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी। | ||बार्कर का कहना है कि आधुनिक [[राज्य|राज्यों]] में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी। | ||
{"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57 | {"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57 | ||
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.राजनीतिक विकास (Political Development) की अवधारणा राजनीति शास्त्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई है। | .राजनीतिक विकास (Political Development) की अवधारणा राजनीति शास्त्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई है। | ||
.राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले अन्य राजनीतिक विचार डेविड ईस्टन, डेविड एप्टर, कोलमैन वीनर, रिग्स, ला पालोम्बरा आदि हैं। | .राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले अन्य राजनीतिक विचार डेविड ईस्टन, डेविड एप्टर, कोलमैन वीनर, रिग्स, ला पालोम्बरा आदि हैं। | ||
.माइनर वीनर ने भारत के राजनीतिक विकास का अध्ययन किया। | .माइनर वीनर ने [[भारत]] के राजनीतिक विकास का अध्ययन किया। | ||
{सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67 | {सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67 | ||
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{भारतीय [[संसद]] निर्मित होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-54 | {भारतीय [[संसद]] निर्मित होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-54 | ||
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+राष्ट्रपति राज्य सभा एवं [[लोक सभा]] द्वारा | +[[राष्ट्रपति]] [[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा | ||
-[[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा | -[[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा | ||
-राज्य सभा, लोक सभा एवं एटॉर्नी जनरल द्वारा | -राज्य सभा, लोक सभा एवं एटॉर्नी जनरल द्वारा | ||
-राज्य सभा, लोक सभा एवं [[निर्वाचन आयोग]] द्वारा | -राज्य सभा, लोक सभा एवं [[निर्वाचन आयोग]] द्वारा | ||
||अनुच्छेद 79 के अनुसार [[संसद|भारतीय संसद]] [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से अर्थात [[लोक सभा]] और राज्य सभा से मिलकर बनती है। | ||अनुच्छेद 79 के अनुसार [[संसद|भारतीय संसद]] [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से अर्थात [[लोक सभा]] और [[राज्य सभा]] से मिलकर बनती है। | ||
{राज्य निर्वाचन आयुक्त अपदस्थ किया जा सकता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-113 | {राज्य निर्वाचन आयुक्त अपदस्थ किया जा सकता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-113 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राज्य के [[राज्यपाल]] के द्वारा | -[[राज्य]] के [[राज्यपाल]] के द्वारा | ||
-राज्य [[विधान सभा]] के द्वारा | -राज्य [[विधान सभा]] के द्वारा | ||
-[[मुख्यमंत्री]] द्वारा जारी आदेश के द्वारा | -[[मुख्यमंत्री]] द्वारा जारी आदेश के द्वारा | ||
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||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। | ||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | ||
.अनुच्छेद 243-ट (1) के अनुसार पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचन के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन, अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा जिसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया गया एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा। | .अनुच्छेद 243-ट (1) के अनुसार [[पंचायत|पंचायतों]] के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचन के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन, अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य [[निर्वाचन आयोग]] में निहित होगा जिसमें [[राज्यपाल]] द्वारा नियुक्त किया गया एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा। | ||
.[[निर्वाचन आयोग|भारत निर्वाचन आयोग]] का राज्य स्तरीय प्रतिनिधि मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है। | .[[निर्वाचन आयोग|भारत निर्वाचन आयोग]] का राज्य स्तरीय प्रतिनिधि मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है। | ||
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+गणतांत्रिक समाजवाद के | +गणतांत्रिक समाजवाद के | ||
-अराजकतावाद के | -अराजकतावाद के | ||
||पं. | ||[[पं. जवाहरलाल नेहरू]] गणतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी ये आर्थिक नियोजन (समाजवाद) तथा, लोकतंत्र में समंवय स्थापित करना चाहते थे। इसलिए लोकतांत्रिक समाजवाद में निष्ठा व्यक्त की। इसीलिए नेहरू जी ने [[भारत]] में भूमि सुधार को प्राथमिकता दी तथा जमींदारी, तालुकेदारी प्रथाओं को मिटाने की पहल की। इन्होंने राष्ट्रीयकरण की नीति भी अपनाई और प्रतिरक्षा तथा अन्य प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीकरण किया। | ||
{सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78 | {सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78 | ||
Line 89: | Line 89: | ||
-रॉबर्ट ओवेन | -रॉबर्ट ओवेन | ||
-सेंट साइमन | -सेंट साइमन | ||
+कार्ल मार्क्स | +[[कार्ल मार्क्स]] | ||
||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय कार्ल मार्क्स को दिया जाता है। | ||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय कार्ल मार्क्स को दिया जाता है। इसीलिए उनके समाजवाद को 'वैज्ञानिक समाजवाद' कहा जाता है। लास्की के अनुसार, 'मार्क्स ने समाजवाद को अव्यवस्थित रूप में पाया और इसे एक निश्चित आंदोलन बना दिया"। | ||
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Revision as of 07:38, 7 November 2017
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