रामयत्न शुक्ल: Difference between revisions

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'''रामयत्न शुक्ल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ramyatan Shukla'') [[संस्कृत]] के विद्वान हैं। शिक्षा और [[साहित्य]] के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा देने वाले संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल को '[[पद्मश्री (2021)]]' से सम्मानित किया गया है। रामयत्न शुक्ल जी 89 वर्ष की आयु में भी नई पीढ़ी को संस्कृत की मुक्त शिक्षा देते है।
'''रामयत्न शुक्ल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ramyatan Shukla'') [[भारत]] के जानेमाने [[संस्कृत]] विद्वान हैं। शिक्षा और [[साहित्य]] के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा देने वाले संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल को '[[पद्मश्री (2021)]]' से सम्मानित किया गया है। रामयत्न शुक्ल जी 89 वर्ष की आयु में भी नई पीढ़ी को संस्कृत की मुक्त शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
==जन्म तथा शिक्षा==
==जन्म तथा शिक्षा==
सन [[1932]] में [[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]] में जन्में रामयत्न शुक्ल की बचपन से ही संस्कृत में विशेष रुचि थी। उनके [[पिता]] रामनिरंजन शुक्ल भी संस्कृत के विद्वान थे। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी चैतन्य भारती से वेदांतशास्त्र, पंडित प्रवर हरिराम शुक्ल से मीमांसाशास्त्र और पंडित रामचंद्र शास्त्री से दर्शनशास्त्र, योग आदि की शिक्षा ली थी। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर से पहले उन्होंने 'संन्यासी संस्कृत महाविद्यालय' में व्याकरण विभागाध्यक्ष के पद से कॅरियर की शुरुआत की थी। उसके बाद शुक्ल गोयनका संस्कृत विद्यालय में प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुए और फिर बीएचयू में सेवाएं दी।
सन [[1932]] में [[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]] में जन्में रामयत्न शुक्ल की बचपन से ही संस्कृत में विशेष रुचि थी। उनके [[पिता]] रामनिरंजन शुक्ल भी संस्कृत के विद्वान थे। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी चैतन्य भारती से [[वेदांत|वेदांतशास्त्र]], पंडित प्रवर हरिराम शुक्ल से [[मीमांसा दर्शन|मीमांसाशास्त्र]] और पंडित रामचंद्र शास्त्री से [[दर्शन|दर्शनशास्त्र]], [[योग दर्शन|योग]] आदि की शिक्षा ली थी। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर से पहले उन्होंने 'संन्यासी संस्कृत महाविद्यालय' में व्याकरण विभागाध्यक्ष के पद से कॅरियर की शुरुआत की थी। उसके बाद शुक्ल गोयनका संस्कृत विद्यालय में प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुए और फिर बीएचयू में सेवाएं दी।
==निशुल्क शिक्षा==
==निशुल्क शिक्षा==
आचार्य रामयत्न शुक्ल 89 वर्ष की आयु में भी युवाओं को [[संस्कृत]] के प्रति जागरूक कर रहे हैं। युवा पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए वें उन्हें मुक्त शिक्षा भी देते हैं। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने '[[अष्टाध्यायी]]' की वीडियो रिकार्डिंग तैयार करवायी है,जिसके माध्यम से संस्कृत के लुप्त होते ज्ञान को सहज रूप में नई पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं। इसके लिए उन्हें वर्ष [[2015]] में संस्कृत के शीर्ष सम्मान 'विश्वभारती' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आचार्य रामयत्न शुक्ल 89 वर्ष की आयु में भी युवाओं को [[संस्कृत]] के प्रति जागरूक कर रहे हैं। युवा पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए वें उन्हें मुक्त शिक्षा भी देते हैं। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने '[[अष्टाध्यायी]]' की वीडियो रिकार्डिंग तैयार करवायी है,जिसके माध्यम से संस्कृत के लुप्त होते ज्ञान को सहज रूप में नई पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं। इसके लिए उन्हें वर्ष [[2015]] में संस्कृत के शीर्ष सम्मान 'विश्वभारती' से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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thumb|250px|रामयत्न शुक्ल रामयत्न शुक्ल (अंग्रेज़ी: Ramyatan Shukla) भारत के जानेमाने संस्कृत विद्वान हैं। शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा देने वाले संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल को 'पद्मश्री (2021)' से सम्मानित किया गया है। रामयत्न शुक्ल जी 89 वर्ष की आयु में भी नई पीढ़ी को संस्कृत की मुक्त शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

जन्म तथा शिक्षा

सन 1932 में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में जन्में रामयत्न शुक्ल की बचपन से ही संस्कृत में विशेष रुचि थी। उनके पिता रामनिरंजन शुक्ल भी संस्कृत के विद्वान थे। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी चैतन्य भारती से वेदांतशास्त्र, पंडित प्रवर हरिराम शुक्ल से मीमांसाशास्त्र और पंडित रामचंद्र शास्त्री से दर्शनशास्त्र, योग आदि की शिक्षा ली थी। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर से पहले उन्होंने 'संन्यासी संस्कृत महाविद्यालय' में व्याकरण विभागाध्यक्ष के पद से कॅरियर की शुरुआत की थी। उसके बाद शुक्ल गोयनका संस्कृत विद्यालय में प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुए और फिर बीएचयू में सेवाएं दी।

निशुल्क शिक्षा

आचार्य रामयत्न शुक्ल 89 वर्ष की आयु में भी युवाओं को संस्कृत के प्रति जागरूक कर रहे हैं। युवा पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए वें उन्हें मुक्त शिक्षा भी देते हैं। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने 'अष्टाध्यायी' की वीडियो रिकार्डिंग तैयार करवायी है,जिसके माध्यम से संस्कृत के लुप्त होते ज्ञान को सहज रूप में नई पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं। इसके लिए उन्हें वर्ष 2015 में संस्कृत के शीर्ष सम्मान 'विश्वभारती' से भी सम्मानित किया जा चुका है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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