कुलचंद: Difference between revisions
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[[महमूद ग़ज़नवी]] ने अपने नौवें आक्रमण का निशाना [[मथुरा]] को बनाया। 1017 ई. में उसने मथुरा पर आक्रमण किया। महमूद के मीर मुंशी 'अल-उत्वी' ने अपनी पुस्तक 'तारीखे यामिनी' में इस आक्रमण का वर्णन किया है- '[[महावन]] में उस समय कुलचंद नाम का राजा था। उसका बहुत बड़ा क़िला था (संभवतः इस समय मथुरा प्रदेश का राजनीतिक केंद्र महावन ही था।) कूलचंद बड़ा शक्तिशाली राजा था, उससे युद्ध में कोई जीत नहीं सका था। वह विशाल राज्य का शासक था। उसके पास अपार धन था और वह एक बहुत बड़ी सेना का स्वामी था और उसके सुदृढ क़िले कोई भी दुश्मन नहीं ढहा सकता था। जब उसने सुलतान (महमूद) की चढ़ाई की बाबत सुना तो अपनी फ़ौज इकट्ठी करके मुक़ाबले के लिए तैयार हो गया। परन्तु उसकी सेना शत्रु को हटाने में असफल रही और सैनिक मैदान छोड़ कर भाग गये, जिससे नदी पार निकल जाये। जब कुलचंद्र के लगभग 50,000 आदमी मारे गये या नदी में डूब गये, तब राजा ने एक खंजर लेकर अपनी स्त्री को समाप्त कर दिया और फिर उसी के द्वारा अपना भी अंत कर लिया। सुल्तान को इस विजय में 185 गाड़ियाँ, हाथी तथा अन्य माल हाथ लगा।' | [[महमूद ग़ज़नवी]] ने अपने नौवें आक्रमण का निशाना [[मथुरा]] को बनाया। 1017 ई. में उसने मथुरा पर आक्रमण किया। महमूद के मीर मुंशी 'अल-उत्वी' ने अपनी पुस्तक 'तारीखे यामिनी' में इस आक्रमण का वर्णन किया है- '[[महावन]] में उस समय कुलचंद नाम का राजा था। उसका बहुत बड़ा क़िला था (संभवतः इस समय मथुरा प्रदेश का राजनीतिक केंद्र महावन ही था।) कूलचंद बड़ा शक्तिशाली राजा था, उससे युद्ध में कोई जीत नहीं सका था। वह विशाल राज्य का शासक था। उसके पास अपार धन था और वह एक बहुत बड़ी सेना का स्वामी था और उसके सुदृढ क़िले कोई भी दुश्मन नहीं ढहा सकता था। जब उसने सुलतान (महमूद) की चढ़ाई की बाबत सुना तो अपनी फ़ौज इकट्ठी करके मुक़ाबले के लिए तैयार हो गया। परन्तु उसकी सेना शत्रु को हटाने में असफल रही और सैनिक मैदान छोड़ कर भाग गये, जिससे नदी पार निकल जाये। जब कुलचंद्र के लगभग 50,000 आदमी मारे गये या नदी में डूब गये, तब राजा ने एक खंजर लेकर अपनी स्त्री को समाप्त कर दिया और फिर उसी के द्वारा अपना भी अंत कर लिया। सुल्तान को इस विजय में 185 गाड़ियाँ, हाथी तथा अन्य माल हाथ लगा।' | ||
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Revision as of 13:18, 15 December 2010
महमूद ग़ज़नवी ने अपने नौवें आक्रमण का निशाना मथुरा को बनाया। 1017 ई. में उसने मथुरा पर आक्रमण किया। महमूद के मीर मुंशी 'अल-उत्वी' ने अपनी पुस्तक 'तारीखे यामिनी' में इस आक्रमण का वर्णन किया है- 'महावन में उस समय कुलचंद नाम का राजा था। उसका बहुत बड़ा क़िला था (संभवतः इस समय मथुरा प्रदेश का राजनीतिक केंद्र महावन ही था।) कूलचंद बड़ा शक्तिशाली राजा था, उससे युद्ध में कोई जीत नहीं सका था। वह विशाल राज्य का शासक था। उसके पास अपार धन था और वह एक बहुत बड़ी सेना का स्वामी था और उसके सुदृढ क़िले कोई भी दुश्मन नहीं ढहा सकता था। जब उसने सुलतान (महमूद) की चढ़ाई की बाबत सुना तो अपनी फ़ौज इकट्ठी करके मुक़ाबले के लिए तैयार हो गया। परन्तु उसकी सेना शत्रु को हटाने में असफल रही और सैनिक मैदान छोड़ कर भाग गये, जिससे नदी पार निकल जाये। जब कुलचंद्र के लगभग 50,000 आदमी मारे गये या नदी में डूब गये, तब राजा ने एक खंजर लेकर अपनी स्त्री को समाप्त कर दिया और फिर उसी के द्वारा अपना भी अंत कर लिया। सुल्तान को इस विजय में 185 गाड़ियाँ, हाथी तथा अन्य माल हाथ लगा।'