Template:भारत पृष्ठ शिक्षा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search

1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है।

प्राचीन काल

Template:दाँयाबक्सा2 भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और अशोक के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन पाणिनि ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है। बुद्ध के समय में और उनसे भी पहले इस देश में भाषा के 60 से भी अधिक रूपों को जाना जाता था तथा शाक्यमुनि ने लेखन की एक पद्धति की शिक्षा दी थी। भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने से पहले संस्कृत भाषा एकता का महत्त्वपूर्ण कारक थी। यदि यह मान भी लिया जाए कि उस समय देश की सम्पूर्ण आबादी की एक तिहाई से ज़्यादा ऊँची जातियों की आबादी नहीं थी तो भी यह माना जा सकता है कि अशोक के समय में भारत में दो करोड़ से ज़्यादा लोग शिक्षित थे (यह मानते हुए कि उस समय की जनसंख्या में लगभग 1/5 छोटी आयु वाले बच्चे थे तथा सभी लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त नहीं कर रही थीं)। यह संख्या बहुत अधिक प्रतीत नहीं होती, क्योंकि उस भारत की जनसंख्या पूरी मानवता के एक-तिहाई के लगभग थी। अतः उस समय के शिक्षित लोगों की संख्या इससे अधिक रही होगी और यह उस समय की सबसे कम संख्या ही मानी जा सकती है। आरम्भ में महिलाओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य थी, लेकिन समय के साथ उनकी विवाह आयु कम होती गई और इस वजह से महिलाओं की शिक्षा में बाधा आई, उसे प्रतिबन्धित कर दिया गया।[1]

सल्तनत काल

अलग-अलग भाषाओं और लिपियों में लिखे गए अशोक के प्रसिद्ध शासनादेश भारत के विभिन्न भागों में शिलालेख के रूप में थे। ये शासनादेश जनता को सम्बोधित थे, जिसका मतलब है कि जनता उन्हें पढ़ एवं समझ सकती थी। उत्तर भारत की मुस्लिम विजय भी एक निश्चित सीमा तक साक्षरता और शिक्षा में कमी आने के लिए उत्तरदायी है। यदि हम युद्धों के एवं तनावों के घातक परिणामों का उल्लेख न करें तो भी भारत में इस्लाम की विजय से एक सीमा तक जनता की शिक्षा में गिरावट आई, जो पहले महिलाओं के कारण लिख एवं पढ़ सकते थे। वैदिक युग में एक कन्या की विवाह की आयु 16 से 18 वर्ष थी; 12वीं सदी में यह आयु 12-14 हो गई और आगे चलकर तो यह 7-9 हो गई, इसका परिणाम यह हुआ कि महिलाओं के लिए तो शिक्षा के दरवाज़े बन्द ही कर दिये गए।

औपनिवेश काल

शिक्षा की यूरोपीय शैली स्थापित करने के बाद देश के बजट का केवल 1.7% शिक्षा पर ख़र्च किया गया। यह उपनिवेशकालीन भारत में शिक्षा की स्थिति को बताने के लिए पर्याप्त है कि उस समय लोकप्रिय शिक्षा का स्तर क्या था। "तुर्की सरकार के अपवाद को छोड़कर यूरोप में एक भी सरकार ऐसी नहीं थी, जो लोक-शिक्षा पर इतनी कम राशि व्यय करने वाली हो।"

क्रमवार विकास

भारत में शिक्षा के प्रति रुझान प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है। प्राचीन काल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। तत्कालीन शिक्षा केन्द्रों में नालन्दा, तक्षशिला एवं वल्लभी की गणना की जाती है। मध्य काल में शिक्षा मदरसों में प्रदान की जाती थी। मुग़ल काल में प्राथमिक शिक्षा ‘मक़तव’ में दी जाती थी और उच्च शिक्षा मदरसों में दी जाती थी। शिक्षा के यही दो रूप थे, प्राथमिक और उच्च अर्थात माध्यमिक शिक्षा नहीं थी। मुग़ल शासकों ने दिल्ली, अजमेर, लखनऊ एवं आगरा में मदरसों का निर्माण करवाया।

  • भारत में आधुनिक व पाश्चात्य शिक्षा की शुरूआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन काल से हुई। 1813 ई. के चार्टर में सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए एक लाख रुपये की व्यवस्था की गई।
  • लोक शिक्षा के लिए स्थापित सामान्य समिति के दस सदस्यों में दो दल बन गये थे। एक आंग्ल या पाश्चात्य विद्या का समर्थक था तो दूसरा प्राच्य विद्या का। प्राच्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व लोक शिक्षा समिति के सचिव एच.टी. प्रिंसेप ने किया जबकि इनका समर्थन समिति के मंत्री एच.एच. विल्सन ने किया। ‘अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त’, जिसका अर्थ था- शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को दी जाये, को सर्वप्रथम सरकारी नीति के रूप में आकलैण्ड ने लागू किया। ‘वुड डिस्पैच’ के पहले तक इस सिद्धान्त के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया।
  • बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के प्रधान चार्ल्स वुड ने 19 जुलाई, 1854 को भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की जिसे ‘वुड का डिस्पैच’ कहा जाता है।
  • वुड के घोषणा-पत्र द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा हेतु 1882 ई. में सरकार ने डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की इस आयोग में 8 सदस्य भारतीय थे। आयोग को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा तक ही सीमित कर दिया गया था।
  • 1917 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन के लिए डॉ. एम.ई. सैडलर के नेतृत्व में एक आयोग गठित किया गया।
  • 1929 ई. में ‘भारतीय परिनीति आयोग ने सर फिलिप हार्टोग के नेतृत्व में शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट हेतु एक सहायक समिति का गठन किया गया। समिति ने प्राथमिक शिक्षा के महत्त्व की बात की। हार्टोग समिति की सिफारिश के आधार पर 1935 में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का पुनर्गठन किया गया।
  • वर्धा योजना को कई नामों से जाना जाता है यथा- बुनियादी शिक्षा, बेसिक शिक्षा आदि। गांधीजी द्वारा 1937 ई. में वर्धा नामक स्थान पर इस योजना का सूत्रपात हुआ। इसमें शिक्षा के माध्यम से हस्त उत्पादन कार्यों को महत्त्व दिया गया। इसमें बालक अपनी मातृभाषा के द्वारा 7 वर्ष तक अध्ययन करता था।
  • 1944 ई. में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मण्डल ने ‘सार्जेण्ट योजना’ (सार्जेण्ट भारत सरकार में शिक्षा सलाहकार थे) के नाम से एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना प्रस्तुत की। इसमें 6 से 11 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क अनिवार्य शिक्षा दिये जाने की व्यवस्था की गई थी।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सन 1948-49 में उच्च शिक्षा के सुझाव के लिए राधाकृष्णन आयोग का गठन किया गया।
  • 1953 ई. में राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान अयोग की स्थापना की गयी।
  • मुदालियर या माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन सन 1952-53 में हुआ। इसने माध्यमिक शिक्षा के लिए सुझाव दिए।
  • डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में जुलाई 1964 ई. में कोठारी आयोग की नियुक्ति की गई। इसने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ या सुझाव दिये।
भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों में साक्षरता[1]
काल कुल जनसंख्या (दस लाख में) शिक्षित (दस लाख में) कुल प्रतिशत शिक्षित पुरुष % शिक्षित महिला %
प्राचीन भारत
(300 ई.पू. से 300 ईसवी)
120 20 17 27 7
मध्यकालीन भारत
(1200 ईसवी)
100 9 9 15 3
उपनिवेशककाल भारत
(1900 तक)
300 18 6 11 0.6
आधुनिक भारत (1961) 439 105 24 34 13
आधुनिक भारत (1971) 548 161 29 40 18
आधुनिक भारत (1981) 634 238 36 47 25
उपनिवेशकालीन जनगणनाओं में दस वर्ष से अधिक आयु वर्ग में शिक्षा आँकड़े[1]
जनगणना वर्ष कुल जनसंख्या पुरुष महिलाएं
1891 6.1 11.4 0.5
1901 6.2 11.5 0.7
1911 7.0 12.6 1.1
1921 8.3 14.2 1.9
1931 9.2 15.4 2.4


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारत का जनसंख्या मूलक अध्ययन, लेखक- विक्तर पेत्रोव