मंगोल

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मंगोल, छोटी आँख, पीली चमड़ी वाली एक जाती, जिसके दाढ़ी-मूँछ बहुत कम होती है। मंगोल लोग ख़ानाबदोश थे। ये ख़ानाबदोश मर्द और औरतें बड़े मज़बूत थे।

मजबूत क़द-काठी

मंगोलों को कष्ट झेलने की आदत थी और ये लोग उत्तरी एशिया के लम्बे चौड़े मैदानों में तम्बुओं में रहते थे। लेकिन इनका शारीरिक बल और कष्ट झेलने का मुहावरा इनके ज़्यादा काम न आते, अगर इन्होंने एक सरदार न पैदा किया होता, जो बड़ा अनोखा व्यक्ति था। शहरों और शहरों के रंग-ढंग से भी उन्हें नफ़रत थी। बहुत से लोग समझते हैं कि चूंकि वे ख़ानाबदोश थे, इसलिए जंगली रहे होंगे, लेकिन यह ख्याल ग़लत है। शहर की बहुत सी कलाओं का उन्हें अलबत्ता ज्ञान नहीं था, लेकिन उन्होंने जिन्दगी का अपना एक अलग तरीक़ा ढाल लिया था और उनका संगठन बहुत ही गुंथा हुआ था।

इतिहास

मंगोलों के कई समूह विविध समयों में भारत में आये और उनमें से कुछ यहीं पर बस गए। चंगेज़ ख़ाँ, जिसके भारत पर आक्रमण करने का ख़तरा 1211 ई. में उत्पन्न हो गया था, वह एक मंगोल था। इसी प्रकार से तैमूर भी, जिसने भारत पर 1398 ई. में हमला किया, वह भी एक मंगोल था। चंगेज ख़ाँ और उसके अनुयायी मुसलमान नहीं थे, किन्तु तैमूर और उसके अनुयायी मुसलमान हो गए थे। मंगोल लोग ही मुसलमान बनने के बाद 'मुग़ल' कहलाने लगे। 1211 ई. में चंगेज ख़ाँ तो सिन्ध नदी से वापस लौट गया, किन्तु उसके बाद मंगोलों ने और कई आक्रमण भारत पर किए। दिल्ली के बलबन और अलाउद्दीन ख़िलजी जैसे शक्तिशाली सुल्तानों को भी मंगोलों का आक्रमण रोकने में एड़ी-चोट का पसीना एक कर देना पड़ा। 1398 ई. में तैमूर के हमले ने दिल्ली की सल्तनत की नींवें हिला दीं और मुग़ल वंश की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया, जिसने अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन की स्थापना होने तक इस देश में राज्य किया।

विजय अभियान

लड़ाई के मैदान में अगर उन्होंने महान विजय प्राप्त कीं तो अधिक संख्या होने के कारण नहीं, बल्कि अनुशासन और संगठन के कारण और इसका सबसे बड़ा कारण तो यह था कि उन्हें चंगेज़ ख़ाँ जैसा जगमगाता सेनानी मिला था। इसमें कोई शक नहीं कि इतिहास में चंगेज़ जैसा महान और प्रतिभा वाला सैनिक नेता दूसरा कोई नहीं हुआ है। सिकन्दर और सीजर इसके सामने नाचीज़ नज़र आते हैं। चंगेज़ न सिर्फ़ खुद बहुत बड़ा सिपहसलार था, बल्कि उसने अपने बहुत से फ़ौजी अफसरों को तालीम देकर होशियार नायक बना दिया था। अपने वतन से हज़ारों मील दूर होते हुए भी, दुश्मनों और विरोधी जनता से घिरे रहते हुए भी, वे अपने से ज़्यादा तादाद की फ़ौजों से लड़कर उन पर विजय प्राप्त करते थे।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-342


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