काबुल नदी

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काबुल नदी अफ़ग़ानिस्तान में बहने वाली प्रमुख नदी है। प्राचीन समय में इस नदी को 'कोफेसा' नाम से जाना जाता था। यह नदी हिन्दूकुश पर्वत की 'संगलाख श्रेणी' में स्थित उनाई दर्रे के पास से निकलती है। अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल इसी नदी की घाटी में स्थित है। अपने आख़िरी बिन्दु पर काबुल नदी स्वात और बारा नदियों के जल को लाकर अटक के समीप सिन्धु नदी में मिल जाती है। यह नदी नौका चालन के लिए बहुत ही उपयुक्त है। इसकी घाटी की मिट्टी भी बहुत उपजाऊ है।

भौगोलिक तथ्य

अपने उद्गम स्थान से काबुल नगर तक काबुल नदी की लंबाई 45 मील है। अफ़ग़ानिस्तान का मुख्य प्रांत काबुल इस नदी के क्षेत्र से बना है, जिसमें हिन्दूकुश तथा सफ़ेद कोह के बीच का भाग सम्मिलित है। काबुल नगर के ऊपरी हिस्से में नदी का सारा जल, विशेष रूप से गर्मियों में, सूख जाता है। पुन: काबुल नगर के आधा मील पूर्व आने पर लोगार नाम की बड़ी नदी, जो 14,200 फुट की ऊँचाई पर 'गुलकोह', पश्चिमी ग़ज़नी, से निकलती है, काबुल नदी में मिलती है। नदी के मिलन-स्थान से काबुल नदी बड़े तीव्र वेग तथा बड़ी नदी के रूप में आगे बढ़ती है और हिन्दूकुश से निकलने वाली प्राय: सभी नदियों के पानी को लेकर आगे की ओर बढ़ाती है।

काबुल से नीचे आने पर इस नदी में क्रमश: पंजशीर तथा टगाओं नदियाँ, इसके उपरान्त अलिंगार तथा अलिशांग नदियों की संयुक्त धाराएँ मिलती हैं। आगे बढ़ने पर सुरख़ाव और कुनार नदियाँ इसमें समाती हैं। काबुल नदी की यह विशाल धारा मोहमंद पहाड़ियों के गहरे, सँकरे कंदरों में होती हुई पेशावर के उपजाऊ मैदान में प्रवेश करती है। अपने आखिरी भाग में नदी स्वात तथा बारा नदियों के पानी को लेकर अटक के पास सिन्धु नदी में मिल जाती है।

नदी की प्रकृति

स्वभाव से पर्वतीय प्रकृति की यह नदी अपने निम्न भाग में जलालाबाद के बाद से नौका चलाने के लिए बहुत उपयुक्त है। काबुल नदी की घाटी बहुत ही उपजाऊ है। इसमें गेहूँ आदि अन्नों के साथ फल तथा सब्जियाँ प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती हैं। काबुल नदी पर सरोबी का बिजलीघर स्थित है, जहाँ नदी पर बाँध बनाकर पानी से विद्युत पैदा की जाती है।


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