अंत्याधार

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:14, 12 August 2014 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''अंत्याधार''' पुल के छोरों पर ईंट, [[सीमेंट उद्योग|सीमे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

अंत्याधार पुल के छोरों पर ईंट, सीमेंट आदि की बनी उन भारी संरचनाओं को कहते हैं, जो पुलों की दाब या प्रतिक्रिया सहन करती हैं। बहुधा चारों ओर दीवारें बनाकर बीच में मिट्टी भर दी जाती है। ऊर्ध्वाधर भार सहने के अतिरिक्त अंत्याधार पुल को आगे-पीछे खिसकने से और एक बगल बोझ पड़ने पर पुल की ऐंठने की प्रवृत्ति को भी रोकते हैं।[1]

प्रकार

ईटें चुनकर या सादे कंक्रीट से या इस्पात की छड़ों से सुदृढ़ किए[2] कंक्रीट से ये बनते हैं। अंत्याधार कई प्रकार के होते हैं, जैसे-

  1. सीधे अंत्याधार
  2. सुदृढ़ की गई कंक्रीट की दीवारें
  3. सदृढ़ किये गए सीमेंट के पुश्ते[3]
  4. सुदृढ़ किये गए सीमेंट के कोष्ठमय खोखले अंत्याधार[4]

संरचना

बगली दीवारें[5] और जवाबी दीवारें[6] सभी अलग बना दी जाती हैं, कभी अंत्याधार में जुड़ी हुई बनाई जाती हैं। संरचना को इतना भारी और दृढ़ होना चाहिए कि पुल की दाब से वह उलट न जाए और ऐसा न हो कि वह अपनी नींव पर या बीच के किसी रद्दे पर खिसक जाए। यह ध्यान रखना चाहिए कि संरचना अथवा नींव के किसी भी स्थान पर महत्तम स्वीकृत बल से अधिक बल न पड़े। दाब आदि की गणना करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पुल पर आती-जाती गाड़ियों के कारण बल कितना अधिक बढ़ जाएगा। जहाँ अगल-बगल पक्की दीवारें बनाकर बीच में मिट्टी भरी जाती है, वहाँ ऐसा विश्वास किया जाता है कि लगभग 10 फुट लंबी सुदृढ़ किए कंक्रीट की पाटन[7] डाल देने से मिट्टी के खिसकने का डर नहीं रहता। अगल-बगल की दीवारों पर मुक्के[8] छोड़ देने चाहिए, जिसमें मिट्टी में घुसे पानी को बहने का मार्ग मिल जाए और इस प्रकार मिट्टी के दाब के साथ पानी का अतिरिक्त दाब दीवारों पर न पड़े।[1]

साधारणत: समझा जाता है कि दीवार के किसी बिंदु पर तनाव नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि वे केवल संपीड़नजनित बल ही सँभाल सकती हैं, परंतु यदि सुदृढ़ीकृत कंक्रीट से तनाव सह सकने वाली ऐसी दीवार बनाई जाए, जिसमें संपीड़नजनित बल को केवल कंक्रीट[9] अपनी पूरी सीमा तक सहन करता है, तो खर्च कम पड़ता है।

दीवारें

अंत्याधार की दीवारों की परिकल्पना[10] में यह माना जाता है कि ऊपर पुल का पाट सँभाले हुए हैं और नीचे नींव, या यह माना जाता है कि वे तोड़ा[11] हैं। बड़े पुलों के भारी अंत्याधारों की परिकल्पना स्थिर करने के पहले वहाँ की मिट्टी की जाँच सावधानी से करनी चाहिए। यदि आवश्यकता प्रतीत हो तो खूँटे[12] या कूप[13] गाड़कर उन पर नींव रखनी चाहिए।

कम खर्च के उपाए

पुल बनाने में अंत्याधारों पर भी बहुत खर्च हो जाता है। इस खर्च को कम करने के लिए निम्नलिखित उपायों का उपयोग किया जा सकता है-

  1. पुल पर आने वाली सड़क की मिट्टी पुल के इतने पास तक डाली जाए कि पुल का अंतिम पाया मिट्टी में डूब जाए और फिर वहाँ से भराव ढालू होता हुआ नदी तल तक पहुँचे। ढालू भराव या मिट्टी का हो, या कम से कम ढोंके और मिट्टी की तह से सुरक्षित हो और भूमि के पास नाटी दीवार[14] बनाई जाए।
  2. पुल के अंतिम बयाँग[15] बहुत छोटे हों, जिसमें उनको सँभालने के लिए छिछले अंत्याधारों की आवश्यकता पड़े।[1]

अंत्याधार पाया

उन अंत्याधारों का भी ध्यान रखना चाहिए, जो पुलों के तोड़ेदार छोरों[16] को स्थिर करने के लिए प्रयुक्त होते हैं, या झूला पुलों को दृढ़ करने वाले गर्डरों के सिरों को स्थिर करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। पुलों के पायों में से बीच में पड़ने वाले उन पायों को 'अंत्याधार पाया' कहते हैं, जो आसपास के बयाँगों के भारों को सँभाल सकने के अतिरिक्त केवल एक ओर के बयाँग के कुल अचल बोझ को पूर्णत: सँभाल सकते हैं। मेहराबों से बने पुलों में साधारणत: प्रत्येक चौथा या पाँचवाँ पाया अंत्याधार पाया मानकर अधिक दृढ़ बनाया जाता है, जिसका उद्देश्य यह होता है कि एक बयाँग के टूटने पर सारा पुल ही न टूट जाए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 अंत्याधार (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 12 अगस्त, 2014।
  2. रिइन्फोर्स्ड
  3. काउंटरफोर्ट रिटेनिंग वाल्स
  4. सेलुलर हॉली अबटमेंट
  5. विंग वाल्स
  6. रिटर्न वाल्स
  7. स्लैब
  8. छेद
  9. न कि उसमें पड़ा इस्पात
  10. डिज़ाइन
  11. कैटिलीवर
  12. पाइल
  13. खोखले खंभे
  14. टो वाल
  15. स्पैन
  16. कैंटिलीवर एंड्स

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः