गायत्री मन्त्र

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:25, 13 March 2011 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "महत्व" to "महत्त्व")
Jump to navigation Jump to search

thumb|गायत्री मन्त्र|200px गायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- 'जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है। गायत्री-मन्त्र ऋक्, यजु, साम, काण्व, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है, किन्तु सर्वत्र एक ही मिलता है। इसमें चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।[1]

अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें। ( अर्थः- उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। )

गायत्री मंत्र पर महापुरुषों के विचार

महात्मा गाँधी

' गायत्री मंत्र का निरन्तर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्माओं की उन्नति के लिऐ उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त ह्रुदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है। '

महामना मदन मोहन मालवीय

' ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से ऐक अनुपम रत्न गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। '

रवींद्रनाथ टैगोर

' भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह इतना सरल है कि ऐक ही श्वाँस में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह मंत्र है गायत्री मंत्र। '

योगी अरविंद

' गायत्री में ऍसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती है। '

स्वामी रामकृष्ण परमहंस

' गायत्री का जप करने से बडी‍-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति भारी है। '

स्वामी विवेकानंद

' गायत्री सदबुद्धि का मंत्र है, इसलिऐ उसे मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है। '


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (वाजसनेयी सं0 3।35)

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:आरती स्तुति स्तोत्र

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः