पानीपत युद्ध प्रथम

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पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ई.)

यह पानीपत का प्रथम युद्ध था। यह युद्ध सम्भवतः बाबर की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं की अभिव्यक्ति थी। यह युद्ध दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी (अफ़ग़ान) एवं बाबर के मध्य लड़ा गया। 12 अप्रैल, 1526 ई. को दोनों सेनायें पानीपत के मैदान में आमने-सामने हुईं पर दोनों मध्य युद्ध का आरम्भ 21 अप्रैल को हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध का निर्णय दोपहर तक ही हो गया। युद्ध में इब्राहीम लोदी बुरी तरह से परास्त हुआ।

बाबर ने अपनी कृति "बाबरनामा" में इस युद्ध को जीतने में मात्र 12000 सैनिकों के उपयोग का ज़िक्र किया है, किन्तु इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध "तुलगमा युद्ध नीति" का प्रयोग किया। इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में उस्मानी विधि (रूमी विधि) का प्रयोग किया था। बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के युद्ध में ही बाबर ने अपने दो प्रसिद्ध निशानेबाज़ उस्ताद अली एवं मुस्तफ़ा की सेवाएँ ली।

इस युद्ध में लूटे गये धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बाँटा। सम्भवतः इस बँटबारे में हुमायूँ को 'कोहिनूर हीरा' प्राप्त हुआ, जिसे उसने ग्वालियर नरेश 'राजा विक्रमजीत' से छीना था। इस हीरे की क़ीमत के बारे में माना जाता है कि इसके मूल्य द्वारा पूरे संसार का आधे दिन का ख़र्चे पूरा किया जा सकता था। भारत विजय के उपलक्ष्य में ही बाबर ने प्रत्येक काबुल निवासी को एक–एक चाँदी के सिक्के उपहार में दिये थे। अपनी इसी उदारता के कारण उसे 'कलन्दर' की उपाधि दी गई। पानीपत विजय के बाद बाबर ने कहा, काबुल की ग़रीबी अब फिर हमारे लिए नहीं।

पानीपत के युद्ध ने भारत के भाग्य का ही नहीं, किन्तु लोदी वंश के भाग्य का निर्णय अवश्य कर दिया। अफ़ग़ानों की शक्ति समाप्त नहीं हुई, लेकिन दुर्बल अवश्य हो गयी। युद्ध के पश्चात् दिल्ली तथा आगरा पर ही नहीं बल्कि धीरे-धीरे लोदी साम्राज्य के समस्त भागों पर बाबर ने अधिकार कर लिया।



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