चम्पतराय

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बुन्देलखंड की भूमि प्राकृतिक सुषमा और शौर्य पराक्रम की भूमि है, जो विंध्याचल पर्वत की पहाडि़यों से घिरी है। चंपतराय जिन्होंने बुन्देलखंड में बुन्देला राज्य की आधार शिला रखी थी, महाराज छत्रसाल ने उस बुन्देला राज्य का विस्तार किया और उसे समृद्धि प्रदान की।

शाहजहाँ के शासन काल में बुन्देलखंड को आज़ाद कराने के लिये चंपतराय ने अकेले घुड़सवार सिपाही के रूप में स्वतंत्रता का अलख जगाया, इस स्वतंत्रता की भावना को छत्रसाल ने समग्रता प्रदान की। उस समय राजपूतों में परम्परा थी कि पुत्र को एक तलवार सौंपकर और एक घोड़ा देकर अपना पराक्रम सिद्ध करने के लिये छोड़ दिया जाता था।

मनसबदार का पद

मुग़ल सल्तनत ने चंपतराय की बहादुरी देख कर उन्हें मनसबदार बनाया और कौंच के जागीरदार के रूप में प्रतिष्ठित किया। कालांतर में जब औरंगज़ेब ने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह किया, चंपतराय की बहादुरी से प्रभावित होकर उसने चंपतराय को अपनी ओर मिला लिया। औरंगज़ेब ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया। औरंगज़ेब इस युद्ध में चंपतराय की वीरता से प्रभावित हुआ और उसने चंपतराय की पदोन्नति कर दी। किंतु कुछ समय बाद चंपतराय ने औरंगज़ेब की नीतियों का विरोध कर उसके विरुद्ध खुला विद्रोह कर दिया। चंपतराय ने युद्ध में मुग़लों के छक्के छुड़ा दिये, किंतु भाग्य में कुछ और ही लिखा था।

शहीद

छत्रसाल के पिता चंपतराय जब मुग़ल सेना से घिर गये तो उन्होंने अपनी पत्नी 'रानी लाल कुंवरि' के साथ अपनी ही कटार से प्राण त्याग दिये, किंतु मुग़लों को स्वीकार नहीं किया। छत्रसाल उस समय चौदह वर्ष की आयु के थे।


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