ज़रदोज़ी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:48, 2 May 2011 by गोविन्द राम (talk | contribs) ('ज़रदोज़ी का काम एक प्रकार की कढ़ाई होती है। यह काम [[भ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

ज़रदोज़ी का काम एक प्रकार की कढ़ाई होती है। यह काम भारत में ऋग्वेद के समय से प्रचलित है।

प्रचलन

भारतीय किमखाब और पर्शियन सुनहले तारों तथा रेशम के वस्त्र को भी लोग ज़री कहते हैं, किंतु वस्तुत: ये ज़री नहीं हैं, क्योंकि इन वस्त्रों में ज़रीवाली सजावट नहीं होती। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व पर्शिया, सीरिया, उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी यूरोप में सुनहले तारों का वस्त्र अंशत: ज़री होता था। इंग्लैंड, फ्रांस, रोम, चीन, तथा जापान में ज़री का प्रचलन प्राचीन काल से है।

उद्योग के रूप में

भारत का ज़री उद्योग प्राचीन काल से विश्वविख्यात रहा है ओर यहाँ के बने ज़री वस्त्रों को धारण कर देश विदेश के नृपति अपने को गौरवान्वित समझते रहे हैं। काशी ज़री उद्योग का केंद्र रहा है। बनारस की प्रसिद्ध बनारसी सड़ियाँ और दुपट्टे शताब्दियों से लोकप्रिय रहे हैं। आज इनकी खपत, अमेरिका, ब्रिटेन और रूस आदि देशों में क्षिप्र गति से वृद्धि प्राप्त कर रही है। गुजरात वर्तमान भारतीय ज़री तार उद्योग का केंद्र है। इसके पूर्व काशी ही इसका केंद्र था। पहले चाँदी के तारों को सोने की पतली पत्तरों पर खींचकर सुनहला बनाया जाता था, किंतु विज्ञान को उन्नति ने इस श्रमसाध्य विधि के स्थान पर विद्युद्विश्लेषण विधि प्रदान की है। विदेश से आने वाले ज़री के तार इसी विधि द्वारा सुनहले बनाए जाते हैं और भारतीय विधि से बने तारों की अपेक्षा सस्ते भी होते हैं।

सूती वस्त्रों के लिए

अब ज़री शब्द का व्यवहार उभाड़दार अभिकल्प के बने सूती वस्त्रों के लिए भी होने लगा है। इन वस्त्रों के अंतर्गत पर्दे तथा बच्चों एवं स्त्रियों के पहनने के वस्त्र आते हैं। सूती ज़री वस्त्र दोनों ओर एक-सा या उल्टा सीधा होता है। इसके उल्टा सीधा होने पर ताने बाने कई रंग, विभिन्न संख्या और कई किस्म के हो सकते हैं। पर्दे के ताने-बाने की संख्या और किस्म में पहनने के वस्त्र की अपेक्षा कम विषमता होती है।

हाथ द्वारा

ज़री के काम की खासियत ये होती है कि ये काम हाथ से किया जाता है इसमें किसी भी तरह की मशीन का कोई इस्तेमाल नहीं होता है। हाथ से किया गया ये काम इतना बारीक़ और खूबसूरत होता है कि कोई भी इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकता हाथ से की गई इस कारीगरी में एक डिजाइन को पूरा करने में कई-कई दिन लग जाते हैं। लकड़ी का अड्डा (फ्रेम) बनाकर उसमें सलमा-सितारे, कटदाना, कसब, नलकी, मोती, स्टोन आदि बड़ी सफाई से टांकते है।[1]

ज़री के काम को कानूनी मान्यता

देश-विदेश में अपने बेहतरीन डिजाइनों के लिए मशहूर बनारस की साड़ी और ज़री के काम को भौगोलिक रुप से कानूनी संरक्षण मिल गया है। यह संरक्षण कपड़ा मंत्रालय के तहत कपड़ा समिति ने भौगोलिक संकेत कानून 1999 के तहत प्रदान किया है। समिति कपड़ा मंत्रालय के तहत एक संवैधानिक संस्था है। देश के इस परम्परागत खजाने पर घरेलू उत्पादकों और आयातकों द्वारा हमेशा अतिक्रमण किया जाता रहा है। इन उत्पादों की ऊँची कीमत और बाजार हिस्से को अतिक्रमण के जरिये उड़ा लिया जाता था। संरक्षण से बनारस के इन उत्पादों को देश और विदेश में विकास करने में मदद मिलेगी।[2]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धुंधली पड़ रही है जरी कारीगरी की चमक (हिन्दी) (पी.एच.पी) जनोक्ति। अभिगमन तिथि: 2 मई, 2011
  2. ज़री के काम को कानूनी मान्यता (हिन्दी) (पी.एच.पी) complete Grassroots news update। अभिगमन तिथि: 2 मई, 2011

]

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः