पं. मोतीलाल नेहरू

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[[चित्र:Jawahar-Lal-Nehru-Family.jpg|thumb|मोतीलाल नेहरू (दाएं खड़े) अपने बेटे जवाहरलाल, बहू कमला नेहरू (बीच में) और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ]] पं. मोतीलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। ये कश्मीरी ब्राह्मण थे और इनकी पत्नी का नाम स्वरूप रानी था।

पंडित गंगाधर नेहरू भी अपना सब कुछ छोड़कर अपने परिवार को लेकर किसी तरह सुरक्षित रूप से आगरा पहुंच गए।

लेकिन वह आगरा में अपने परिवार को स्थायी रूप से जमा नहीं पाए थे कि सन् 1861 में केवल चौंतीस वर्ष की छोटी-सी आयु में ही वह अपने परिवार को लगभग निराश्रित छोड़कर इस संसार से कूच कर गए। पंडित गंगाधर नेहरू की मृत्यु के तीन महीने बाद 6 मई 1861 को पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ था।

पंडित गंगाधर नेहरू के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े थे पंडित बंसीधर नेहरू जो भारत में विक्टोरिया का शासन स्थापित हो जाने के बाद तत्कालीन न्याय विभाग में नौकर हो गए। उनसे छोटे पंडित नंदलाल नेहरू थे जो लगभग दस वर्ष तक राजस्थान की एक छोटी-सी रियासत खेतड़ी के दीवान रहे। बाद में वह आगरा लौट गए। उन्होंने आगरा में रहकर कानून की शिक्षा प्राप्त की और फिर वहीं वकालत करने लगे। इन दो पुत्रों के अतिरिक्त तीसरे पुत्र थे पंडित मोतीलाल नेहरू। पंडित नन्दलाल नेहरू ने ही अपने छोटे भाई मोतीलाल का पालन-पोषण किया, पढ़ाया-लिखाया।

पंडित नन्दलाल नेहरू की गणना आगरा के सफल वकीलों में की जाती थी। उन्हें मुकदमों के सिलसिले में अपना अधिकांश समय इलाहाबाद में हाईकोर्ट बन जाने के कारण वहीं बिताना पड़ता था। इसलिए उन्होंने इलाहाबाद में ही एक मकान बनवा लिया और अपने परिवार को लेकर स्थायी रूप से इलाहाबाद आ गए और वहीं रहने लगे।


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मोतीलाल नेहरू (6 मई, 1861 - फरवरी 6, 1931) देश के आजादी आंदोलन में मोतीलाल नेहरू एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने न केवल अपनी जिंदगी की शानोशौकत को पूरी तरह से ताक पर रख दिया बल्कि देश के लिए परिजनों सहित अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। मोतीलाल नेहरू अपने दौर में देश के चोटी के वकीलों में थे। वह पश्चिमी रहन-सहन, वेषभूषा और विचारों से काफी प्रभावित थे। लेकिन बाद में वह जब महात्मा गांधी के संपर्क में आए तो उनके जीवन में आमूलचूल परिर्वतन आ गया।पंडित मोतीलाल नेहरू अपने जमाने के शीर्ष वकीलों में शामिल थे। उस दौर में वह हजारों रुपए की फीस लेते थे। उनके मुवक्किलों में अधिकतर बड़े जमींदार और स्थानीय रजवाड़ों के वारिस होते थे। लेकिन वह गरीबों की मदद करने में पीछे नहीं रहते थे।

प्रारंभिक जीवन

मोतीलाल नेहरू का जन्म एक काश्मीरी पण्डित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर था। वह पश्चिमी ढ़ंग की शिक्षा पाने वाली प्रथम पीढ़ी के गिने-चुने भारतीयों में से एक थे। पंडित मोतीलाल नेहरू पढ़ने-लिखने में अधिक ध्यान नहीं देते थे लेकिन अपने स्कूल और कॉलेज में अपनी हंसी-मज़ाक और खेल-कूद के लिए विख्यात थे। आरम्भ में उन्होंने अरबी और फारसी की शिक्षा प्राप्त की थी।

पंडित मोतीलील नेहरू ने अपनी पढ़ाई-लिखाई की ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। जब बी.ए. की परीक्षा का समय आया तो उन्होंने परीक्षा की तैयारी बिलकुल ही नहीं की थी। उन्होंने पहला ही पेपर किया था तो लगा कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने की कोई आशा नहीं है, क्योंकि उस पेपर से उन्हें सन्तोष नहीं हुआ है और सोचकर उन्होंने बाकी पेपर नहीं दिए और ताजमहल की सैर करने चले गए। लेकिन वह पेपर ठीक ही हुआ था। इसलिए प्रोफेसर ने उन्हें बुलाकर बहुत डांटा। लेकिन अब क्या हो सकता था। इसका परिणाम यह हुआ कि मोतीलाल नेहरू की शिक्षा यहीं समाप्त हो गई। वह बी.ए. पास नहीं कर पाए।

अपने कॉलेज जीवन में ही मोतीलाल नेहरू पश्चिमी सभ्यता से इतने प्रभावित हो गए थे कि उन्होंने अपने आपको पूरी तरह उसी ढ़ांचे में ढाल लिया था। उस जमाने में कलकत्ता और बम्बई जैसे बड़े-बड़े नगरों मे ही लोगों ने पाश्चात्य वेश-भूषा, रहन-सहन और सभ्यता को अपनाया था लेकिन मोतीलील नेहरू ने इलाहाबाद जैसे छोटे-से शहर में पाश्चात्य वेश-भूषा और सभ्यता को अपनाकर एक नई क्रान्ति को जन्म दिया। भारत में जब पहली बाइसिकल आई तो मोतीलाल नेहरू ही इलाहाबाद के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बाइसिकल खरीदी।

मोतीलाल नेहरू की पढ़ाई भले ही अधूरी रह गई थी लेकिन वे आरम्भ से ही अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि थे। ज्ञान और विद्वता की उनमें कमी नहीं थी। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा दी तो सब लोग चकित रह गए। उन्होंने इस परीक्षा में प्रथम स्थान ही प्राप्त नहीं किया था, बल्कि उन्हें एक स्वर्णपदक भी मिला था। उनकी रुचि आरम्भ से ही वकालत में थी। उन पर अपने बड़े भाई नंदलाल नेहरू का गहरा प्रभाव पड़ा था। नंदलाल नेहरू की गणना कानपुर के अच्छे वकीलों में की जाती थी। इसलिए मोतीलाल नेहरू ने अपनी वकालत उनके सहायक के रूप में ही आरम्भ की।

पंडित मोतीलील नेहरू ने वकालत के पेशे में सफलता प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। इसलिए उन्होंने जी-तोड़ परिश्रम किया और बहुत जल्द उनकी गिनती कानपुर के तेज़-तर्रार वकीलों में होने लगी। उन्होंने तीन वर्ष तक कानपुर की ज़िला अदालतों में वकालत की और फिर इलाहाबाद आकर हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे।

नेहरू एक बैरिस्टर बने और इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के शहर में बस गए। मोतीलाल जल्द ही अपने लिए इलाहाबाद के कानूनी पेशे में प्रसिद्ध हो गये। अपनी सफलता के साथ उन्होंने इलाहाबाद के सिविल लेन में और एक घर खरीदा और उस घर का नाम 'आनंद भवन' रखा। 1909 में 'प्रिवी कौंसिल ग्रेट ब्रिटेन' में अपनी योग्यता प्रदर्शित कर अपने कानूनी कैरियर के शिखर पर पहुंच गये। लगातार यूरोप के दौरे करने से पारंपरिक रूढ़िवादी हिंदू धर्म के कश्मीरी ब्राह्मण समुदाय उनसे नाराज़ हो गया। समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए उन्हें कुछ धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए कहा, क्योंकि रूढ़िवादी ब्राह्मण समुदाय में प्रतिष्ठा पाने के लिए यह अनिवार्य था। किंतु मोतीलाल इन सब बातों को नहीं मानते थे।

उनकी जीवन शैली पाश्चात्य थी। वह एक धनी व्यक्ति थे। 1918 में महात्मा गांधी के प्रभाव से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रभाव में आये और गाँधी जी से प्रभावित होकर देशी भारतीय जीवन शैली अपनाकर अपने जीवन को बदलने की पहले की गई। अपने बड़े परिवार और परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए नेहरू कभी कभी कानून के अपने व्यवसाय को अपनाते थे। बाद में उन्होंने परिवार के लिए 'स्वराज भवन' बनवाया। मोतीलाल नेहरू ने 'स्वरूप रानी', एक कश्मीरी ब्राह्मण से शादी कर ली।

राजनीतिक कैरियर

मोतीलाल नेहरू दो बार राष्ट्रपति ने कांग्रेस पार्टी के रूप में सेवा की. उन्होंने कहा कि गैर सहकारिता आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया. हालांकि शुरू में गांधी के करीब, वह खुलेआम 1922 पुलिसकर्मियों की हत्या के कारण उत्तर प्रदेश में Chauri Chaura में एक उपद्रवी भीड़ द्वारा नागरिक प्रतिरोध की गांधी के निलंबन की आलोचना की. मोतीलाल ने स्वराज पार्टी है, जो ब्रिटिश प्रायोजित परिषदों में प्रवेश करने की कोशिश में शामिल हो गए. 1923 में नेहरू को नए सेंट्रल विधानसभा ब्रिटिश भारत के लिए नई दिल्ली में चुना गया है और विपक्ष के नेता बने. उस भूमिका में उन्होंने या हार, सुरक्षित करने में सक्षम था देरी कम से कम, वित्त बिल और अन्य कानून में. उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में भारतीय अधिकारियों की भर्ती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक समिति में शामिल होने के लिए, पर सहमत हुए यह निर्णय दूसरों आगे जा रही करने के लिए योगदान दिया है और सरकार ही ज्वाइन मार्च 1926 में, नेहरू और एक संविधान भारत पर पूरा डोमिनियन दर्जा conferring मसौदा तैयार करने के लिए एक प्रतिनिधि सम्मेलन, की मांग की है कि संसद द्वारा अधिनियमित किया जाना है. यह मांग विधानसभा द्वारा, और अस्वीकार कर दिया था एक परिणाम नेहरू और उनके सहयोगियों के रूप में विधानसभा छोड़कर कांग्रेस में लौट आया मोतीलाल की आकर्षक, उच्च जवाहरलाल नेहरू उसे राजनीति में 1916 में, सबसे ताकतवर और प्रभावशाली भारतीय राजनीतिक वंश शुरू शिक्षित के प्रवेश. जब 1929 में, मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जवाहरलाल (जवाहरलाल चुने गए थे, के लिए गांधी के समर्थन से) हाथ, यह बहुत बेटा अपने पिता से लेने को देखने के लिए मोतीलाल नेहरू परिवार और प्रशंसकों प्रसन्न. जवाहरलाल, और राज्य की स्थिति के लिए अपने पिता की पसंद का विरोध किया था कि कांग्रेस पार्टी जब मोतीलाल ने स्वराज पार्टी पाया मदद नहीं छोड़ा था. नेहरू रिपोर्ट मोतीलाल नेहरू प्रसिद्ध नेहरू 1928 में, यह है कि सभी ब्रिटिश शमौन आयोग को एक काउंटर था कि आयोग की अध्यक्षता की. नेहरू की रिपोर्ट, पहली संविधान भारतीयों ने लिखा ही है, साम्राज्य, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा के सदृश के भीतर भारत के लिए एक राज्य की स्थिति की कल्पना की. यह कांग्रेस पार्टी ने समर्थन किया गया था, लेकिन और अधिक कट्टरपंथी भारतीयों जो पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की है, और बहुत से मुसलमानों द्वारा जो ठीक से प्रतिनिधित्व कर रहे थे उनके हितों, चिंताओं और अधिकारों को महसूस नहीं किया है अस्वीकार कर दिया. मौत और विरासत मोतीलाल नेहरू की उम्र और गिरावट स्वास्थ्य 1929-1931 के ऐतिहासिक घटना है, जब कांग्रेस और अपने लक्ष्य के रूप में पूर्ण स्वतंत्रता अपनाया है जब गांधी के नमक सत्याग्रह शुरू से बाहर रखा. के बाद उनके बेटे, लेकिन जल्द ही गिरफ्तार कर लिया गया था उसके स्वास्थ्य में असफल रहने के कारण जारी किया गया था वह 1930 में, हालांकि, गिरफ्तार किया गया. वह 6 फरवरी, 1931 को निधन हो गया.

मोतीलाल नेहरू के बाद से बड़े पैमाने पर जो तीन प्रधानमंत्रियों का उत्पादन किया गया है भारत की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक राजवंश के कुलपति बनने के लिए याद किया जाता है. की विधवा नेहरू के प्रपौत्र राजीव गाँधी, श्रीमती. सोनिया गांधी ने भारत में मौजूदा कांग्रेस गठबंधन सरकार है. उनके पुत्र राहुल गांधी ने एक नए संसद सदस्य है http://jawaharlal.over-blog.com/article-30588095.html

पंडित मोतीलाल की कानून पर पकड़ काफी मजबूत थी। इसी कारण से साइमन कमीशन के विरोध में सर्वदलीय सम्मेलन ने 1927 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जिसे भारत का संविधान बनाने का जिम्मा सौंपा गया। इस समिति की रिपोर्ट को नेहरू रिपोर्ट के बारे में जाना जाता है। मोतीलाल का जन्म छह मई को दिल्ली में हुआ। उनकी शुरूआती शिक्षा कानपुर और बाद में इलाहाबाद में हुई। शुरूआत में उन्होंने कानपुर में वकालत की। लेकिन जब वह महज 25 वर्ष के थे तो उनके बड़े भाई का निधन हो गया। इसके बाद मोतीलाल ने इलाहाबच्द उच्च न्यायालय आकर पे्रक्ट्रिस शुरू कर दी। मोतीलाल के घर के चिराग जवाहरलाल नेहरू 1889 में पैदा हुए। बाद में उनके दो पुत्रियां सरूप :बाद में विजयलक्ष्मी पंडित के नाम से विख्यात: और कृष्णा :बाद में कृष्णाहटी सिंग: पैदा हुई। विजयलक्ष्मी पंडित ने अपनी आत्मकथा द स्कोप आफ हैप्पीनेस में बचपन की यादों को ताजा करते हुए लिखा है कि उनके पिता पूरी तरह से पश्चिमी विचारों और रहन-सहन के कायल थे। उस दौर में उन्होंने अपने सची बच्चों को अंगे्रजी शिक्षा दिलवाई। विजयलक्ष्मी पंडित के अनुसार उस दौर में मोतीलाल नेहरू आनंद भवन में भव्य पार्टियां दिया करते थे जिनमें देश के नामी गिरामी लोग और अंगे्रज अधिकारी शामिल हुआ करते थे। लेकिन बाद में इन्हीं मोतीलाल के जीवन में महात्मा गांधी से मिलने के बाद आमूलचूल परिवर्तन आ गया और यहां तक कि उनका बिछौना जमीन पर लगने लगा। मोतीलाल 1910 में संयुक्त प्रांत :वर्तमान में उत्तर प्रदेश: विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। अमृतसर में 1919 के जलियांवाला बाग गोलीकांड के बाद उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी वकालत छोड़ दी। वह 1919 और 1920 में दो बार कांगे्रस के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के साथ 1923 में स्वराज पार्टी का गठन किया। इस पार्टी के जरिए वह सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली पहुंचे और बाद वह विपक्ष के नेता बने। असेम्बली में मोतीलाल ने अपने जबरदस्त कानूनी ज्ञान के कारण सरकार के कई कानूनों की जमकर आलोचना की। मोतीलाल नेहरू ने आजादी के आंदोलन में भारतीय लोगों के पक्ष को सामने रखने के लिए इंडिपेंडेट अखबार भी खोला। देश की आजादी के लिए कई बार जेल जाने वाले मोतीलाल नेहरू का निधन छह फरवरी 1931 को लखनऊ में हुआ।

http://bnsingh.blogspot.com/2009/05/blog-post.html --- वंश परिचय

अठारहवीं शताब्दी एक-एक कदम दृढ़ता के साथ रखती हुई बढ़ी चली जा रही थी और उसी के साथ अफगानिस्तान से अराफान और कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले विस्तृत विशाल मुगल साम्राज्य के कदम तेजी से पतन की ओर बढ़ने लगे थे। मुगल साम्राज्य के पतन का का आरंभ शहंशाह औरंगजेब के जीवन काल में ही आरम्भ हो गया था। व्यापारियों के रूप में अंग्रेजों ने सूरत और भड़ौच जैसे व्यापारिक जल पत्तनों पर अपने पांव पसारने आरंभ कर दिए थे।


उन दिनों दिल्ली के तख्त पर शहंशाह फरूखसियर आसीन था। कश्मीर-यात्रा में उसकी भेंट अरबी, फारसी, संस्कृत और कश्मीरी भाषा के विद्वान पंडित राज कौल से हुई। वह पंडित राज कौल की विद्वता और प्रतिभा से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उनसे आग्रह किया कि वह श्री नगर छोड़कर दिल्ली आ जाएं और उसके दरबार की शोभा बढ़ाएं।

शहंशाह फरूखसियर ने पंडित राज कौल को दरबार में सम्मानित पद ही नहीं दिया जागीरें भी दी और हरियाणा में यमुना से निकाली गई नहर जो लाल किले के शाही हमामी तक आती थी, उस नहर के किनारे बनी हुई एक हवेली भी दी। नहर के किनारे बनी इस हवेली में रहने के कारण दिल्ली निवासी पंडित राज कौल को नेहरू के नाम से पुकारने लगे।

कालान्तर में कौल शब्द गायब हो गया और केवल नेहरू ही रह गया और पंडित राज कौल का परिवार नेहरू परिवार के नाम से जाना जाने लगा। यह घटना अठारहवीं सदी के दूसरे दशक की घटना है।

प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के आरम्भ होने से कुछ वर्ष पहले तक नेहरू परिवार के सदस्य मुगल दरबार में सम्मानित पदों पर काम करते थे। लेकिन सन् 1857 की क्रान्ति से कुछ वर्ष पहले ही पंडित गंगाधर नेहरू को दिल्ली के कोतवाल के पद से हटाकर लार्ड मेटकाफ ने अपना मनपसन्द कोतवाल नियुक्त कर दिया।

जब दिल्ली पर अंग्रेजों और उनके पक्षपाती पंजाब के जींद, पटियाला और कपूरथला आदि राज्यों को सेनाओं ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया तो पंडित गंगाधर नेहरू अपने परिवार को किसी प्रकार अंग्रेजी सेना के खूनी पंजों से बचाकर आगरा पहुंच जाने में सफल हो गए।

सआदत खां की बनाई हुई नहर के किनारे बनी नेहरू परिवार की हवेली को अंग्रेजी सैनिकों ने जी भरकर लूटा और सब कुछ लूटने के बाद असंख्य ग्रन्थों के परिवार से संबंधित तमाम कागज-पत्र और दस्तावेज नष्ट कर दिए। पूरी दिल्ली में लूटपाट और कत्ले आम का बाज़ार गर्म था।

दिल्ली निवासी अपने पुश्तैनी मकानों, जमीन, जायदाद और धन-सम्पत्ति का मोह त्याग कर अपने प्राण बचाने के लिए दिल्ली छोड़कर भागने लगे थे। उन्हीं लुटे-पिटे और आतंकित लोगों के काफिले के साथ पंडित गंगाधर नेहरू भी अपना सब कुछ छोड़कर अपने परिवार को लेकर किसी तरह सुरक्षित रूप से आगरा पहुंच गए।

लेकिन वह आगरा में अपने परिवार को स्थायी रूप से जमा नहीं पाए थे कि सन् 1861 में केवल चौंतीस वर्ष की छोटी-सी आयु में ही वह अपने परिवार को लगभग निराश्रित छोड़कर इस संसार से कूच कर गए। पंडित गंगाधर नेहरू की मृत्यु के तीन महीने बाद 6 मई 1861 को पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ था।

पंडित गंगाधर नेहरू के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े थे पंडित बंसीधर नेहरू जो भारत में विक्टोरिया का शासन स्थापित हो जाने के बाद तत्कालीन न्याय विभाग में नौकर हो गए। उनसे छोटे पंडित नंदलाल नेहरू थे जो लगभग दस वर्ष तक राजस्थान की एक छोटी-सी रियासत खेतड़ी के दीवान रहे। बाद में वह आगरा लौट गए। उन्होंने आगरा में रहकर कानून की शिक्षा प्राप्त की और फिर वहीं वकालत करने लगे। इन दो पुत्रों के अतिरिक्त तीसरे पुत्र थे पंडित मोतीलाल नेहरू। पंडित नन्दलाल नेहरू ने ही अपने छोटे भाई मोतीलाल का पालन-पोषण किया, पढ़ाया-लिखाया।

पंडित नन्दलाल नेहरू की गणना आगरा के सफल वकीलों में की जाती थी। उन्हें मुकदमों के सिलसिले में अपना अधिकांश समय इलाहाबाद में हाईकोर्ट बन जाने के कारण वहीं बिताना पड़ता था। इसलिए उन्होंने इलाहाबाद में ही एक मकान बनवा लिया और अपने परिवार को लेकर स्थायी रूप से इलाहाबाद आ गए और वहीं रहने लगे।

पंडित मोतीलाल नेहरू पढ़ने-लिखने में तो अधिक ध्यान नहीं देते थे लेकिन अपने स्कूल और कॉलेज में अपनी हंसी-मज़ाक, खेल-कूद और धींगा-मुश्ती के लिए विख्यात थे। आरम्भ में उन्होंने अरबी और फारसी की शिक्षा प्राप्त की थी।

पंडित मोतीलील नेहरू ने अपनी पढ़ाई-लिखाई की ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। जब बी.ए. की परीक्षा का समय आया तो उन्होंने परीक्षा की तैयारी बिलकुल ही नहीं की थी। उन्होंने पहला ही पेपर किया था तो लगा कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने की कोई आशा नहीं है

क्योंकि उस पेपर से उन्हें सन्तोष नहीं हुआ है और सोचकर उन्होंने बाकी पेपर नहीं दिए और ताजमहल की सैर करने चले गए। लेकिन वह पेपर ठीक ही हुआ था। इसलिए प्रोफेसर ने उन्हें बुलाकर बहुत डांटा। लेकिन अब क्या हो सकता था। इसका परिणाम यह हुआ कि मोतीलाल नेहरू की शिक्षा यहीं समाप्त हो गई। वह बी.ए.पास नहीं कर पाए।

अपने कॉलेज जीवन में ही मोतीलाल नेहरू पश्चिमी सभ्यता से इतने प्रभावित हो गए थे कि उन्होंने अपने आपको पूरी तरह उसी ढंचे में ढाल लिया था। उस जमाने में कलकत्ता और बम्बई जैसे बड़े-बड़े नगरों मे ही लोगों ने पाश्चात्य वेश-भूषा, रहन-सहन और सभ्यता को अपनाया था लेकिन मोतीलील नेहरू ने इलाहाबाद जैसे छोटे-से शहर में पाश्चात्य वेश-भूषा और सभ्यता को अपनाकर एक नई क्रान्ति को जन्म दिया। भारत में जब पहली बाइसिकल आई तो मोतीलाल नेहरू ही इलाहाबाद के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बाइसिकल खरीदी।

मोतीलाल नेहरू की पढ़ाई भले ही अधूरी रह गई थी लेकिन वे आरम्भ से ही अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि थे। ज्ञान और विद्वता की उनमें कमी नहीं थी। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा दी तो सब लोग चकित रह गए। उन्होंने इस परीक्षा में प्रथम स्थान ही प्राप्त नहीं किया था, बल्कि उन्हें एक स्वर्णपदक भी मिला था।

उनकी रुचि आरम्भ से ही वकालत में थी। उन पर अपने बड़े भाई नंदलाल नेहरू का गहरा प्रभाव पड़ा था। नंनलाल नेहरू की गणना कानपुर के अच्छे वकीलों में की जाती थी। इसलिए मोतीलाल नेहरू ने अपनी वकालत उनकी सहायता के रूप में ही आरम्भ की।

पंडित मोतीलील नेहरू ने वकालत के पेशे में सफलता प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। इसलिए उन्होंने जी-तोड़ परिश्रम किया और बहुत जल्द उनकी गिनती कानपुर के तेज़-तर्रार वकीलों में होने लगी। उन्होंने तीन वर्ष तक कानपुर की जिला अदालतों में वकालत की और फिर इलाहाबाद आकर हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे। http://pustak.org/home.php?bookid=3692




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