आरट्ठ

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'पंचनद्यो वहन्त्यैता यत्र पीलुवनान्युत, शतद्रुश्च विपाशा च तृतीयैरावती तथा। चन्द्रभागा वितस्ता च सिंध षष्ठा बहिर्गिरै:, आरट्ठा नाम ते देशा नष्टधर्मा न तानू ब्रजेत'[1]

अर्थात् जहाँ पाँच नदियाँ शतद्रु, विपाशा, इरावती, चन्द्रभागा और वितस्ता और छठी सिंधु बहती हैं, जहाँ पीलू वृक्षों के वन हैं, वे हिमालय की सीमा के बाहर के प्रदेश आरट्ठ नाम से विख्यात हैं- इन धर्मरहित प्रदेशों में कभी न जाए। इसी के आगे फिर कहा गया है-

'पंचनद्यो वहन्येता यत्र नि:सृत्य पर्वतात् आरट्ठा नाम वाहीका न तेष्वार्यो द्वयहं वसेत्'[2]

अर्थात् जहाँ पर्वत से निकल कर पाँच नदियाँ बहती हैं वे आरट्ठ नाम से प्रसिद्ध वाहीक प्रदेश है- उनमें श्रेष्ठ पुरुष दो दिन भी निवास न करे। महाभारत काल में आरट्ठ, या आरट्ठ या वाहीक प्रदेश पश्चिमी पंजाब के ही नाम थे। मद्र इसी प्रदेश का एक भाग था। यहाँ का राजा शल्य था जिसके देशवासियों के दोष कर्ण ने उपर्युक्त उद्धरण में बताए हैं। इस वर्णन के अनुसार यहाँ के निवासी आर्य-संस्कृति से बहिष्कृत व भ्रष्ट-आचरण वाले थे। आरट्ठ गणराज्य लगभग 327 ई.पू. में अलक्षेंद्र के भारत पर आक्रमण के समय पंजाब में स्थित था। इसका उल्लेख ग्रीक लेखकों ने किया है। महाकवि माघ ने शिशुपालवध 5, 10 में आरट्ठ देश के घोड़ों का उल्लेख इस प्रकार किया है- :'तेजोनिरोधसमताबहितेन यंत्र: सम्यक्कशात्रयविचारवता नियुक्त:, आरट्ठजश्चटुलनिष्ठुरपातमुच्चैश्चित्रं चकार पदमर्धपुलायितेन'

अर्थात् वेग को रोकने वाली लगाम को थामने में सावधान और तीनों प्रकार के चाबुकों का प्रयोग जानने वाले घुड़सवारों से भली-भांति हांका गया आरट्ट देश में उत्पन्न घोड़ा अपने विचित्र पादप्रक्षेप द्वारा कभी चंचल और कभी कठोर भाव से मडलाकार गति-विशेष से चल रहा था।



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