तोसली

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भारत के अन्दर अशोक एक विजेता रहा। अपने राज्याभिषेक के नवें वर्ष में अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। ऐसा प्रतीत होता है कि नंद वंश के पतन के बाद कलिंग स्वतंत्र हो गया था। प्लिनी की पुस्तक में उद्धत मेगस्थनीज़ के विवरण के अनुसार चंद्रगुप्त के समय में कलिंग एक स्वतंत्र राज्य था। अशोक के शिलालेख के अनुसार युद्ध में मारे गए तथा क़ैद किए हुए सिपाहियों की संख्या ढाई लाख थी और इससे भी कई गुने सिपाही युद्ध में घायल हुए थे। मगध की सीमाओं से जुड़े हुए ऐसे शक्तिशाली राज्य की स्थिति के प्रति मगध शासक उदासीन नहीं रह सकता था। खारवेल के समय मगध को कलिंग की शक्ति का कटु अनुभव था।

व्यापार

सुरक्षा की दृष्टि से कलिंग का जीतना आवश्यक था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कलिंग को जीतने का दूसरा कारण भी था। दक्षिण के साथ सीधे सम्पर्क के लिए समुद्री और स्थल मार्ग पर मौर्यों का नियंत्रण आवश्यक था। कलिंग यदि स्वतंत्र देश रहता तो समुद्री और स्थल मार्ग से होने वाले व्यापार में रुकावट पड़ सकती थी। अतः कलिंग को मगध साम्राज्य में मिलाना आवश्यक था। किन्तु यह कोई प्रबल कारण प्रतीत नहीं होता क्योंकि इस दृष्टि से तो चंद्रगुप्त के समय से ही कलिंग को मगध साम्राज्य में मिला लेना चाहिए था। कौटिल्य के विवरण से स्पष्ट है कि वह दक्षिण के साथ व्यापार का महत्त्व देता था। विजित कलिंग राज्य मगध साम्राज्य का एक अंग हो गया। राजवंश का कोई राजकुमार वहाँ वाइसराय (उपराजा) नियुक्त कर दिया गया। तोसली इस प्रान्त की राजधानी बनाई गई


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