छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-6

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  • इस खण्ड में पृथ्वी को 'ऋक् और अग्नि को 'साम' कहा गया है।
  • यह अग्नि-रूप साम, पृथ्वी-रूप ऋक् में प्रतिष्ठित है। अत: ऋचा में इसी अधिष्ठित साम का गायन किया जाता है।
  • पृथ्वी को 'सा' और अग्नि को 'अम' मानकर दोनों के मिलन से 'साम' बनता है।
  • ऋषि आगे कहते हैं कि अन्तरिक्ष ही 'ऋक्' है और वायु 'साम' है।
  • वह वायु-रूप साम अन्तरिक्ष-रूप ऋक् में प्रतिष्ठित है। अत: ऋचा में अधिष्ठित साम का गायन किया जाता है।
  • इसी प्रकार नक्षत्र, आकाश व आदित्य को 'ऋक्' मानकर और क्रमश: चन्द्र, आदित्य और नीलवर्ण मिश्रित कृष्ण प्रकाश को 'साम' मानकर उनकी उपासना की गयी है।
  • ऋग्वेद और सामवेद उसी परमपुरुष की उपासना गायन द्वारा करते हैं।
  • वह परमपुरुष आदित्य आदि से भी ऊंचे लोकों तथा देवों का नियामक है और देवों की कामनाओं का पूरक है।
  • यह उद्गीथ की आधिदैविक उपासना का स्वरूप है।


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