आगम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:53, 16 May 2010 by Govind (talk | contribs)
Jump to navigation Jump to search
  • भगवान महावीर के उपदेश जैन धर्म के मूल सिद्धान्त हैं, जिन्हें 'आगम' कहा जाता है ।
  • वे अर्धमागधी प्राकृत भाषा में हैं । उन्हें आचारांगादि बारह 'अंगों' में संकलित किया गया, जो 'द्वादशंग आगम' कहे जाते हैं ।
  • वैदिक संहिताओं की भाँति जैन आगम भी पहले श्रुत रूप में ही थे ।
  • महावीर जी के बाद भी कई शताब्दियों तक उन्हें लिपिबद्ध नहीं किया गया था ।
  • श्वेताम्बर और दिगम्बर आम्नाओं में जहाँ अनेक बातों में मत-भेद था, वहीं आगमों को लिपिबद्ध न करने में दोनों एक मत थे ।
  • कालांतर में उन्हें लिपिबद्ध तो किया गया; किन्तु लिखित रूप की प्रमाणिकता इस धर्म के दोनों संप्रदायों को समान रूप से स्वीकृत नहीं हुई ।
  • श्वेताम्बर संप्रदाय के अनु्सार समस्त आगमों के छ: विभाग हैं, जो 'अंग', 'उपांग', 'प्रकीर्णक', 'छेदसूत्र', 'सूत्र' और मूलसूत्र कहलाते हैं । इनमें 'एकादश अंग सूत्र' सबसे प्राचीन माने जाते हैं ।
  • दिगम्बर संप्रदाय उपयुक्त आगमों को नहीं मानता है। इस संप्रदाय का मत है, अंतिम श्रुतकेवली भद्रवाहु के पश्चात आगमों का ज्ञान लुप्तप्राय हो गया था।


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः