सोहनी महिवाल

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सोहनी महिवाल लोक प्रचलित प्रसिद्ध लोक प्रेमकथा है। इसका संबंध पंजाब से है। सोहनी चिनाब के किनारे के एक गाँव के कुम्हार की लड़की थी। सोहनी के रूप गुण पर रीझ कर महिवाल नामक राजकुमार था। "महिवाल" का अर्थ है भैंसों का चरवाहा। सोहनी को प्राप्त करने के लिए राजकुमार ने भैसें भी चराईं थीं इसलिए कथा में वह महिवाल हो गया। दोनों के इश्क के किस्से पंजाब ही नहीं सारी दुनिया में मशहूर हैं।

सोहनी और महिवाल की प्रेमकथा

कुम्हार की बेटी सोहनी की ख़ूबसूरती की क्या बात थी। उसका नाम भी सोहनी था और रूप भी सुहाना था। उसी के साथ एक मुगल व्यापारी के यहाँ इज्जत बेग़ (जो आगे जाकर महिवाल कहलाया) ने जन्म लिया। घुमक्कड़ इज्जत बेग़ ने पिताजी से अनुमति लेकर देश भ्रमण का फैसला किया। दिल्ली में उसका दिल नहीं लगा तो वह लाहौर चला गया। वहाँ भी जब उसे सुकून नहीं मिला तो वह घर लौटने लगा। रास्ते में वह गुजरात में एक जगह रुककर तुला के बरतन देखने गया लेकिन उसकी बेटी सोहनी को देखते ही सबकुछ भूल गया। सोहनी के इश्क में गिरफ्तार इज्जत बेग ने उसी के घर में जानवर चराने की नौकरी कर ली। पंजाब में भैंसों को माहियाँ कहा जाता है। इसलिए भैंसों को चराने वाला इज्जत बेग महिवाल कहलाने लगा। महिवाल भी ग़ज़ब का ख़ूबसूरत था। दोनों की मुलाकात मोहब्बत में बदल गई।
जब सोहनी की माँ को यह बात पता चली तो उसने सोहनी को फटकारा। तब सोहनी ने बताया कि किस तरह उसके प्यार में व्यापारी महिवाल भैंस चराने वाला बना। उसने यह भी चेतावनी दी कि यदि उसे महिवाल नहीं मिला तो वह जान दे देगी। सोहनी की माँ ने महिवाल को अपने घर से निकाल दिया। महिवाल जंगल में जाकर सोहनी का नाम ले-लेकर रोने लगा। उधर सोहनी भी महिवाल के इश्क में दीवानी थी। उसकी शादी किसी और से कर दी गई। लेकिन सोहनी ने उसे कुबूल नहीं किया।
उधर महिवाल ने अपने खूने-दिल से लिखा खत सोहनी को भिजवाया। खत पढ़कर सोहनी ने जवाब दिया कि मैं तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूँगी। जवाब पाकर महिवाल ने साधु का भेष बनाया और सोहनी से जा मिला। दोनों की मुलाकातें होने लगीं। सोहनी मिट्टी के घड़े से तैरती हुई चिनाब के एक किनारे से दूसरे किनारे आती और दोनों घंटों प्रेममग्न होकर बैठे रहते। इसकी भनक जब सोहनी की भाभी को लगी तो उसने सोहनी का पक्का घड़ा बदलकर मिट्टी का कच्चा घड़ा रख दिया। सोहनी को पता चल गया कि उसका घड़ा बदल गया है फिर भी अपने प्रियजन से मिलने की ललक में वह कच्चा घड़ा लेकर चिनाब में कूद पड़ी। कच्चा घड़ा टूट गया और वह पानी में डूब गई। दूसरे किनारे पर पैर लटकाए महिवाल सोहनी का इंतज़ार कर रहा था। जब सोहनी का मुर्दा जिस्म उसके पैरों से टकराया तो अपनी प्रियतमा की ऐसी हालत देखकर महिवाल पागल हो गया। उसने सोहनी के जिस्म को अपनी बाँहों में थामा और चिनाब की लहरों में गुम हो गया। सुबह जब मछुआरों ने अपना जाल डाला तो उन्हें अपने जाल में सोहनी-महिवाल के आबद्ध जिस्म मिले जो मर कर भी एक हो गए थे। गाँव वालों ने उनकी मोहब्बत में एक यादगार स्मारक बनाया, जिसे मुसलमान मज़ार और हिन्दू समाधि कहते हैं। क्या फ़र्क़ पड़ता है मोहब्बत का कोई मजहब नहीं होता। आज सोहनी और महिवाल भले ही हमारे बीच न हों लेकिन जिंदा है उनकी अमर मोहब्बत।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सोहनी-महिवाल:दोनों की मोहब्बत ने किया कमाल (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 3 सितम्बर, 2013।

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