उच्छेदवाद

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उच्छेदवाद आत्मा के भी नष्ट हो जाने का सिद्धांत है। प्राचीन काल में अजित केशकंबली के सिद्धांत को 'उच्छेदवाद' के नाम से जाना जाता था। इस सिद्धांत के अनुसार मृत्यु के बाद कोई भी पदार्थ स्थायी नहीं रहता। शरीरस्थ सभी पदार्थों के अस्थायित्व में विश्वास करने वाले इस मत की मान्यता थी कि मृत्युपरांत पृथ्वी, जल, तेज और वायु नामक चार तत्व अपने मूल तत्व में लीन हो जाते हैं।[1]

मान्यताएँ

  • इस सिद्धांत की मान्यता थी कि शरीर के भस्म हो जाने के बाद कुछ भी शेष नहीं रहता, आत्मा भी नहीं। आत्मा की सत्ता मिथ्या है।
  • उच्छेदवाद सिद्धांत का एक दूसरा नाम 'जड़वाद' भी है।
  • बुद्ध काल में उच्छेदवाद का विरोधी मत 'शाश्वतवाद' के नाम से प्रसिद्ध था, जो पाँच तत्वों के साथ ही सुख, दु:ख एवं आत्मा को भी नित्य एवं अचल मानता था।
  • यह मत प्रक्रुध कात्यायन के मत के रूप में विख्यात था। महात्मा बुद्ध ने इन दोनों अंतों का त्याग कर मध्यम मार्ग का अनुसरण करने का उपदेश दिया था।
  • उच्छेदवादी सिद्धांत प्राचीन भौतिकवाद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।[2]
  • इंग्लैंड के विचारक एडवर्ड ह्वाइट ने भी पाश्चात्य ढंग से उच्छेदवाद सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। इसके अनुसार कुटिल और पापी लोग मृत्यु के साथ पूर्णत: विनष्ट हो जाते हैं, लेकिन सदाचारी व्यक्तियों के साथ ऐसा नहीं होता।
  • धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र के अतिरिक्त इस सिद्धांत में दर्शन की पीठिका भी गृहीत है, क्योंकि इसके प्रतिपादन के बीच एडवर्ड ह्वाइट ने कुछ दार्शनिक प्रश्नों को भी उठाया है। लेकिन दर्शन के क्षेत्र में उच्छेदवाद सिद्धांत का कोई विशेष महत्व नहीं है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उच्छेदवाद (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 20 नवम्बर, 2013।
  2. नागेन्द्रनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 57
  3. कैलास चन्द्र शर्मा, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 57

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