बहादुर शाह प्रथम

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बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-12 ई0) था। वह औरंगज़ेब का दूसरा लड़का था, जो 1707 ई॰ से उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर बैठा। औरंगज़ेब के मरने के बाद उत्तराधिकारी के युद्ध में उसके उस समय दो जीवित भाई–आजम और कामबख्श पराजित हुए और मारे गये। शाहजादे के रूप में बहादुर प्रथम मुअज्जम कहलता था। वह शाह आलम के नाम से भी प्रसिद्ध है। तख़्त पर बैठने के बाद उसने बहादुर शाह का ख़िताब धारण किया, लेकिन वह अपने पहले नाम शाह आलम अथवा आलम शाह के नाम से भी पुकारा जाता था। उसके पिता अपने जीवन काल में उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था, कुछ वर्षों तक तो उसे पिता की क़ैद में भी रहना पड़ा। कठोर दमन के कारण उसका व्यक्तित्व कुछ कुंठित हो चुका था और गद्दी पर बैठने के समय संकट की स्थिति में मुग़ल साम्राज्य की रक्षा करने अथवा उसे सुदृढ़ बनाने की क्षमता उसमें नहीं थी। फिर भी उसने पाँच वर्ष के अपने अल्प कालीन शासन में मुग़ल साम्राज्य को फिर से सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया। उस समय मुग़ल साम्राज्य को मुख्य रूप से तीन शत्रुओं से ख़तरा था; यथा–राजपूत, मराठा और सिख। उसने राजपूतों को रियायतें देकर उनसे सुलह कर ली। शम्भूजी के पुत्र साहू को रिहा कर मराठों की शत्रुता को मिटाने का प्रयास किया। साहू के महाराष्ट्र लौटने के बाद मराठों में फूट पैदा हो गयी और गृह-युद्ध छिड़ जाने के कारण कुछ समय के लिए वे दिल्ली के मुग़ल साम्राज्य को परेशान करने की स्थिति में नहीं रहे। लेकिन बादशाह ने सिखों के विरुद्ध सख़्ती से काम लिया और उनके तथा उनके नेता वीर बन्दा वैरागी को पराजित करके उन्हें कुछ समय के लिए कुचल दिया। लेकिन उसके बाद ही 1712 ई0 में बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु हो गयी।


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