प्रभाववाद

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thumb|200px|प्रभाववादी चित्रकला प्रभाववाद (अंग्रेज़ी: Impressionism) 19वीं सदी का कला आंदोलन था, जो पेरिस स्थित कलाकारों के एक मुक्‍त संगठन के रूप में आरंभ हुआ था और जिनकी स्‍वतंत्र प्रदर्शनियों ने 1870 और 1880 के दशकों में उन्‍हें प्रतिष्ठा दिलवाई।

  • इस आंदोलन का नाम क्‍लाउड मॉनेट की कृति 'इम्प्रेशन', 'सनराइज़' से व्युत्‍पन्‍न है, जिसने आलोचक लुई लेरॉय को ले शैरीवेरी में प्रकाशित एक व्‍यंगात्‍मक समीक्षा में शब्द गढ़ने को उकसाया।
  • प्रभाववादी चित्रों की विशेषताओं में अपेक्षाकृत सूक्ष्‍म, बारीक़, लेकिन दृष्टिगोचर ब्रश स्पर्श, मुक्त संयोजन, प्रकाश का उसके परिवर्तनशील गुणों के साथ स्‍पष्‍ट चित्रण[1], सामान्‍य विषयवस्‍तु, मानव-बोध और अनुभव के रूप में गति को एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व के रूप में शामिल करना और असामान्‍य दृश्‍यात्मक कोण शामिल हैं।
  • दृश्‍य कला में प्रभाववाद के उद्भव का शीघ्र ही अन्‍य माध्‍यमों में सदृश आन्‍दोलनों द्वार अनुगमन किया जाने लगा था, जो प्रभाववादी संगीत और प्रभाववादी साहित्‍य के रूप में विख्यात हुआ।
  • प्रभाववादी तकनीक में विषयवस्तु के विवरणों के बजाय, उसके सार को परदे पर उतारने के लिए, रंग के छोटे और मोटे स्पर्शों का उपयोग किया जाता है। अक्सर रंग थोपा जाता है।
  • एक जीवंत सतह तैयार करते हुए, रंगों को यथासंभव कम मिश्रित करते हुए, पास-पास लगाया जाता है। रंगों का दृश्य मिश्रण दर्शकों की आंखों में होता है।
  • प्राकृतिक प्रकाश के उपयोग पर ज़ोर दिया जाता है। वस्तु दर वस्तु रंगों के प्रतिबिंब पर नज़दीक से ध्यान दिया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (प्राय: समय व्‍यतीत होने के प्रभावों को अंकित करते हुए)

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