राम नारायण सिंह

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राम नारायण सिंह
पूरा नाम बाबू राम नारायण सिंह
जन्म 19 दिसम्बर, 1884
जन्म भूमि चतरा ज़िला, बिहार (अब झारखंड]])
मृत्यु जून, 1964
अभिभावक पिता- भोली सिंह
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
जेल यात्रा सन 1931 से 1939 तक 8 बार जेल यात्रा।
संबंधित लेख महात्मा गाँधी, असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, अनुग्रह नारायण सिन्हा
पार्टी छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी
अन्य जानकारी सन 1957 में बाबू राम नारायण सिंह संसद के सदस्य बने। उन्होंने पहली बार संसद में अलग झारखंड राज्य की वकालत की थी।

बाबू राम नारायण सिंह(अंग्रेज़ी: Babu Ram Narayan Singh, जन्म- 19 दिसम्बर, 1884; मृत्यु- जून, 1964) प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और हजारीबाग के राजनेता थे। वह खादी का प्रचार किया करते थे और सामाजिक सुधार आंदोलन के लिए ओपन माझी, बंगला मंजी जैसे संथाल नेताओं के साथ काम किया। उन्हें व कृष्ण बल्लभ सहाय को 1920 से 1921 के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा एक महीने के लिए जेल में रखा गया। बाबू राम नारायण सिंह 1921 से लेकर 1944 तक 10 साल, अलग-अलग समय में जेल में रहे। वह 1927 से लेकर 1946 तक केंद्रीय विधानसभा के सदस्य के रूप में अपने विचारों से राष्ट्रवाद की धारा प्रवाहित करते रहे। संविधान सभा की प्रथम कार्यवाही 9 दिसंबर, 1946 को शुरू हुई थी। संविधान सभा में बाबू राम नारायण सिंह ने सदस्य के रूप में पंचायती राज, शक्तियों का विकेंद्रीकरण, मंत्री और सदस्यों का अधिकतम वेतन 500 करने की वकालत की थी।

परिचय

बाबू राम नारायण सिंह का जन्म तत्कालीन चतरा ज़िला, बिहार (अब झारखंड]] का हिस्सा) के हंटरगंज प्रखंड के अंतर्गत तेतरिया ग्राम में 19 दिसंबर, 1884 को हुआ था। उनके पिता का नाम भोली सिंह था। उनका वास्तविक नाम राम नारायण सिंह था। उन्हें 'छोटा नागपुर केसरी' और 'छोटा नागपुर के शेर' के रूप में भी जाना जाता है। उनके भाई का नाम सुखलाल सिंह था।

शिक्षा

बाबू राम नारायण सिंह की प्रारंभिक शिक्षा तेतरिया के विद्यालय में हुई। इसके बाद आगे की शिक्षा के लिए वे हजारीबाग के मिडिल वर्नाक्यूलर स्कूल में आ गये। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई सेंट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता से पूरी की और कानून की डिग्री भी वहीं से प्राप्त की।

योगदान

सन 1920 में महात्मा गांधी ने अहिसात्म्क असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था, जिसमें विशेष रूप से वकीलों और विद्यार्थियों से सक्रिय सहयोग की अपील की गई थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कहने पर बाबू राम नारायण सिंह ने वकालत छोड़ कर देश सेवा का व्रत लिया। वह और उनके भाई सुखलाल सिंह चतरा के शुरुआती कांग्रेस कार्यकर्ताओं में से एक थे। उन्होंने कृष्ण बल्लभ सहाय और राज बल्लभ सहाय सिंह, कोडरमा के बद्री सिंह जैसे युवा कांग्रेस नेताओं के साथ असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

बाबू राम नारायण सिंह ने खादी का प्रचार किया और सामाजिक सुधार आंदोलन के लिए ओपन मांझी, बंगामा मांझी जैसे संथाल नेताओं के साथ मिलकर काम किया। सन 1920 से 1921 में चतरा जिले से बाबू राम नारायण सिंह ने भारत छोड़ो आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस दौरान ब्रिटिश सरकार बाबू राम नारायण सिंह पर विशेष नजर रखती थी। बाबू राम नारायण सिंह को 'छोटा नागपुर केसरी' और 'छोटा नागपुर के शेर' के रूप में भी जाना जाता है। 1921 से 1926 में बाबू राम नारायण सिंह ने महात्मा गांधी के बिहार की यात्रा के दौरान राजेंद्र प्रसाद, जय प्रकाश नारायण, अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे कई राष्ट्रीय नेताओं के साथ भी कार्य किया। इस दौरान वे हजारीबाग जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने।

आजादी के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से खुद को अलग कर लिया और 1991 में हजारीबाग से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के चुनाव लड़ा और उसे जीत गए। सन 1957 में संसद के सदस्य बने। नारायण सिंह ने पहली बार संसद में अलग झारखंड की वकालत की थी। बाबू राम नारायण सिंह, जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति से भी संतुष्ट नहीं हुए थे।

जेल यात्रा

कृष्ण बल्लभ सहाय और बाबू राम नारायण सिंह को 1921 के दौरान पहली बार ब्रिटिश सरकार द्वारा एक महीने के लिए जेल में रखा गया था। 1931 से 1939 तक 8 बार अंग्रेजों द्वारा दी गई जेल यात्रा सहनी पड़ी। अंग्रेजों ने उनके साथ बड़ी बेहरमी और सख्ती का बर्ताव किया। इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि 1934 में भूकंप के समय देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से लेकर सभी अन्य स्वयंसेवक तथा राजनीति के बंधुओं को छोड़ दिया गया था किंतु बाबू राम नारायण को जेल में ही रखा गया।

सन 1942 में बाबू राम नारायण सिंह भारत छोड़ो आंदोलन के समय हजारीबाग केंद्रीय कारागार में भेज दिए गए थे। दीपावली की रात में नवंबर, 1942 को अन्य क्रांतिकारियों के साथ वह भी भागने में सफल रहे। राजबहादुर कामाख्या नारायण सिंह के नेतृत्व में बनी पार्क जनता पार्टी के सदस्य के रूप में चतरा लोकसभा क्षेत्र के निर्वाचित हुए और एक निर्वाचित सदस्य के रूप में प्रशंसनीय कार्य किए। ‘अपना स्वराज्य लुट गया’ नामक पुस्तक की रचना की जो बाबू राम नारायण सिंह की निर्भरता एवं जागरूकता की साक्ष्य है।

मृत्यु

जून 1964 में बाबू राम नारायण सिंह ने मातृभूमि की सेवा में अपना सब-कुछ न्योछावर कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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