प्रवरसेन
- वाकाटक विंध्यशक्ति भारशिव नागों का सामन्त था।
- उसके पुत्र का नाम प्रवरसेन था।
- भारशिव राजा भवनाग की इकलौती लड़की प्रवरसेन के पुत्र गौतमी पुत्र को ब्याही थी।
- इस विवाह से गौतमीपुत्र के जो पुत्र हुआ था, उसका नाम रुद्रसेन था। क्योंकि भवनाग के कोई पुत्र नहीं था, अत: उसका उत्तराधिकारी उसका दौहित्र रुद्रसेन ही हुआ।
- गौतमीपुत्र की मृत्यु प्रवरसेन के कार्यकाल में ही हो गयी थी। अत: रुद्रसेन जहाँ अपने पितामह के राज्य का उत्तराधिकारी बना, वहाँ साथ ही वह अपने नाना के विशाल साम्राज्य का भी उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ।
- धीरे-धीरे भारशिव और वाकाटक राज्यों का शासन एक हो गया।
- रुद्रसेन के संरक्षक के रूप में प्रवरसेन ने वाकाटक और भारशिव दोनों वंशों के राज्य के शासन सूत्र को अपने हाथ में ले लिया।
- यह प्रवरसेन बड़ा ही शक्तिशाली राजा हुआ है। इसने चारों दिशाओं में दिग्विजय करके चार बार अश्वमेध यज्ञ किये, और वाजसनेय यज्ञ करके सम्राट का गौरवमय पद प्राप्त किया।
- प्रवरसेन की विजयों के मुख्य क्षेत्र मालवा, गुजरात और काठियावाड़ थे।
- पंजाब और उत्तरी भारत से कुषाणों का शासन इस समय तक समाप्त हो चुका था। पर गुजरात-काठियावाड़ में अभी तक शक महाक्षत्रप राज्य कर रहे थे।
- प्रवरसेन ने इनका अन्त किया। यही उसके शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना है।
- गुजरात और काठियावाड़ के महाक्षत्रपों को प्रवरसेन ने चौथी सदी के प्रारम्भ में परास्त किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ