Difference between revisions of "संकिसा"

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==इतिहास==
 
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संकिसा उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। [[बौद्ध]] अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ [[बुद्ध]]  [[इन्द्र]] एवं [[ब्रह्मा]] सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से [[पृथ्वी]] पर आये थे। इस प्रकार [[गौतम बुद्ध]] के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।  
 
संकिसा उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। [[बौद्ध]] अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ [[बुद्ध]]  [[इन्द्र]] एवं [[ब्रह्मा]] सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से [[पृथ्वी]] पर आये थे। इस प्रकार [[गौतम बुद्ध]] के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।  
==महात्मा बुद्ध आगमन==
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==महात्मा बुद्ध का आगमन==
 
संकिसा इसी नगर मे महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं, लगभग चार मील की परिधि में हैं। चीनी यात्री फाहियान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ [[मथुरा]] से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हजार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था।  
 
संकिसा इसी नगर मे महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं, लगभग चार मील की परिधि में हैं। चीनी यात्री फाहियान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ [[मथुरा]] से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हजार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था।  
 
==विशाल सिंह प्रतिमा==
 
==विशाल सिंह प्रतिमा==

Revision as of 11:06, 6 February 2011

yah sthan uttar pradesh ke farrukhabad ke nikat sthit adhunik sankis gram se samikrit kiya jata hai. kaniangham ne apani kriti 'd enashॅant jiaaugraphi aauph indiya' mean sankisa ka vistar se varnan kiya hai. sankisa ka ullekh mahabharat mean kiya gaya hai.

itihas

sankisa us samay yah nagar paanchal ki rajadhani kaanpily se adhik door nahian tha. mahajanapad yug mean sankisa paanchal janapad ka prasiddh nagar tha. bauddh anushruti ke anusar yah vahi sthan hai, jahaan buddh indr evan brahma sahit svarn athava ratn ki sidhiyoan se trayastrinsa svarg se prithvi par aye the. is prakar gautam buddh ke samay mean bhi yah ek khyati prapt nagar tha.

mahatma buddh ka agaman

sankisa isi nagar me mahatma buddh ne apane priy shishy anand ke kahane par yahaan aye v sangh mean striyoan ki pravrijya par lagayi gayi rok ko to da tha aur bhikshuni utpalavarna ko diksha dekar bauddh sangh ka dvar striyoan ke lie khol diya gaya tha. bauddh granthoan mean is nagar ki ganana us samay ke bis pramukh nagaroan mean ki gayi hai. prachinakal mean yah nagar nishchay hi kafi b da raha hoga, kyoanki isaki nagar bhitti ke avashesh, jo aj bhi haian, lagabhag char mil ki paridhi mean haian. chini yatri phahiyan paanchavian shatabdi ke pahale dashak mean yahaan mathura se chalakar aya tha aur yahaan se kanyakubj, shravasti adi sthanoan par gaya tha. usane sankisa ka ullekh seang-kyi-shi nam se kiya hai. usane yahaan hinayan aur mahayan sampradayoan ke ek hajar bhikshuoan ko dekha tha. kaniangham ko yahaan se skandagupt ka ek chaandi ka sikka mila tha.

vishal sianh pratima

satavian shatabdi mean yuvanachvaang ne yahaan 70 phut ooanchaee stambh dekha tha, jise samrat ashok ne banavaya tha. us samay bhi itana chamakadar tha ki jal se bhiga-sa jan p data tha. stambh ke shirsh par vishal sianh pratima thi. usane apane vivaran mean is vichitr tathy ka ullekh kiya hai ki yahaan ke vishal math ke samip nivas karane vale brahmanoan ki sankhya kee hajar thi.



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh