Difference between revisions of "जैन व्रताचरण संस्कार"

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*यज्ञोपवीत के पश्चात विद्याध्ययन करने का समय है, विद्याध्ययन करते समय कटिलिंग (कमर का चिह्न), ऊरुलिंग (जंघा का चिह्न), उरोलिंग (हृदयस्थल का चिह्न) और शिरोलिंग (शिर का चिह्न) धारण करना चाहिए।  
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*यज्ञोपवीत के पश्चात् विद्याध्ययन करने का समय है, विद्याध्ययन करते समय कटिलिंग (कमर का चिह्न), ऊरुलिंग (जंघा का चिह्न), उरोलिंग (हृदयस्थल का चिह्न) और शिरोलिंग (शिर का चिह्न) धारण करना चाहिए।  
 
#कटिलिंग – इस विद्यार्थी का कटिलिंग त्रिगुणित मौजीबन्धन है जो कि पूर्वोक्त रत्नत्रय का विशुद्ध अंग और [[ब्राह्मण]], क्षत्रिय, वैश्य का चिह्न है।
 
#कटिलिंग – इस विद्यार्थी का कटिलिंग त्रिगुणित मौजीबन्धन है जो कि पूर्वोक्त रत्नत्रय का विशुद्ध अंग और [[ब्राह्मण]], क्षत्रिय, वैश्य का चिह्न है।
#ऊरुलिंग- इस शिष्य का ऊरुलिंग धुली हुई सफेद धोती तथा लँगोट है जो कि जैनधर्मी जनों के पवित्र विशाल कुल को सूचित करती है।  
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#ऊरुलिंग- इस शिष्य का ऊरुलिंग धुली हुई सफ़ेद धोती तथा लँगोट है जो कि जैनधर्मी जनों के पवित्र विशाल कुल को सूचित करती है।  
 
#उरोलिंग- इस विद्यार्थी के हृदय का चिह्न सात सूत्रों से बनाया हुआ यज्ञोपवीत है। यह यज्ञोपवीत सात परमस्थानों का सूचक है।  
 
#उरोलिंग- इस विद्यार्थी के हृदय का चिह्न सात सूत्रों से बनाया हुआ यज्ञोपवीत है। यह यज्ञोपवीत सात परमस्थानों का सूचक है।  
 
#शिरोलिंग- विद्यार्थी का शिरोलिंग शिर का मुण्डन कर शिखा (चोटी) सुरक्षित करना है। जो कि मन वचन काय की शुद्धता का सूचक है।  
 
#शिरोलिंग- विद्यार्थी का शिरोलिंग शिर का मुण्डन कर शिखा (चोटी) सुरक्षित करना है। जो कि मन वचन काय की शुद्धता का सूचक है।  
*यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात नमस्कार मन्त्र को नौ बार पढ़कर इस विद्यार्थी को प्रथम ही उपासकाचार (श्रावकाचार) गुरुमुख से पढ़ना चाहिए।  
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*यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात् नमस्कार मन्त्र को नौ बार पढ़कर इस विद्यार्थी को प्रथम ही उपासकाचार (श्रावकाचार) गुरुमुख से पढ़ना चाहिए।  
 
*गुरुमुख से पढ़ने का अभिप्राय यह है कि श्रावणों की बहुत-सी ऐसी क्रियाएँ हैं जो अनेक शास्त्रों से मन्थन करने से निकलती हैं, गुरुमुख से वे सहज ही प्राप्त हो सकते हैं।  
 
*गुरुमुख से पढ़ने का अभिप्राय यह है कि श्रावणों की बहुत-सी ऐसी क्रियाएँ हैं जो अनेक शास्त्रों से मन्थन करने से निकलती हैं, गुरुमुख से वे सहज ही प्राप्त हो सकते हैं।  
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Latest revision as of 07:44, 23 June 2017

  • yajnopavit ke pashchath vidyadhyayan karane ka samay hai, vidyadhyayan karate samay katiliang (kamar ka chihn), ooruliang (jangha ka chihn), uroliang (hridayasthal ka chihn) aur shiroliang (shir ka chihn) dharan karana chahie.
  1. katiliang – is vidyarthi ka katiliang trigunit maujibandhan hai jo ki poorvokt ratnatray ka vishuddh aang aur brahman, kshatriy, vaishy ka chihn hai.
  2. ooruliang- is shishy ka ooruliang dhuli huee safed dhoti tatha langot hai jo ki jainadharmi janoan ke pavitr vishal kul ko soochit karati hai.
  3. uroliang- is vidyarthi ke hriday ka chihn sat sootroan se banaya hua yajnopavit hai. yah yajnopavit sat paramasthanoan ka soochak hai.
  4. shiroliang- vidyarthi ka shiroliang shir ka mundan kar shikha (choti) surakshit karana hai. jo ki man vachan kay ki shuddhata ka soochak hai.
  • yajnopavit dharan karane ke pashchath namaskar mantr ko nau bar padhakar is vidyarthi ko pratham hi upasakachar (shravakachar) gurumukh se padhana chahie.
  • gurumukh se padhane ka abhipray yah hai ki shravanoan ki bahut-si aisi kriyaean haian jo anek shastroan se manthan karane se nikalati haian, gurumukh se ve sahaj hi prapt ho sakate haian.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh