Difference between revisions of "धर्मशास्त्र"

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धर्मशास्त्र एक [[संस्कृत भाषा]] का शब्द है जिसका अर्थ पवित्र क़ानून या उचित आचरण का विज्ञान है। विधिशास्त्र की प्राचीन भारतीय व्यवस्था, जो आज भी [[भारत]] के बाहर रहने वाले [[हिंदू|हिंदुओं]]<ref>उदाहरणार्थ: [[पाकिस्तान]], [[मलेशिया]] और पूर्वी अफ़्रीका</ref> के लिए [[परिवार]] क़ानून का आधार है और प्रचलन में है। इसमें क़ानूनी संशोधन हो सकते हैं। धर्मशास्त्र का सीधा संबंध वैधानिक प्रशासन से नहीं, बल्कि प्रत्येक दुविधापूर्ण स्थिती में आचरण के उचित मार्ग से है। फिर भी ख़ासकर बाद के विवरणों में अदालतों और उनकी कार्यवाहियों पर विचार किया गया है। पारंपरिक वातावरण में पले-बढ़े अधिकांश हिंदू, धर्मशास्त्र के कुछ मूलभूत सिद्धांतों से परिचित हैं। इनमें यह मान्यता भी शामिल है कि कर्तव्य अधिकार से बड़ा है। इसके साथ-साथ ये कर्तव्य जाति विशेष में एक व्यक्ति के जन्म के अनुसार अलग-अलग होते हैं और महिलाएँ अपने सबसे नज़दीकी पुरुष के संरक्षण में रहती हैं तथा राजा<ref>विस्तृत रूप में राज्य</ref> को अपनी प्रजा की रक्षा करनी चाहिए।
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'''धर्मशास्त्र''' एक [[संस्कृत भाषा]] का शब्द है जिसका अर्थ "पवित्र क़ानून या उचित आचरण का विज्ञान" है। विधिशास्त्र की प्राचीन भारतीय व्यवस्था, जो आज भी [[भारत]] के बाहर रहने वाले [[हिंदू|हिंदुओं]]<ref>उदाहरणार्थ: [[पाकिस्तान]], [[मलेशिया]] और पूर्वी अफ़्रीका</ref> के लिए [[परिवार]] क़ानून का आधार है और प्रचलन में है। इसमें क़ानूनी संशोधन हो सकते हैं। धर्मशास्त्र का सीधा संबंध वैधानिक प्रशासन से नहीं, बल्कि प्रत्येक दुविधापूर्ण स्थिती में आचरण के उचित मार्ग से है। फिर भी ख़ासकर बाद के विवरणों में अदालतों और उनकी कार्यवाहियों पर विचार किया गया है। पारंपरिक वातावरण में पले-बढ़े अधिकांश हिंदू, धर्मशास्त्र के कुछ मूलभूत सिद्धांतों से परिचित हैं। इनमें यह मान्यता भी शामिल है कि कर्तव्य अधिकार से बड़ा है। इसके साथ-साथ ये कर्तव्य जाति विशेष में एक व्यक्ति के जन्म के अनुसार अलग-अलग होते हैं और महिलाएँ अपने सबसे नज़दीकी पुरुष के संरक्षण में रहती हैं तथा राजा<ref>विस्तृत रूप में राज्य</ref> को अपनी प्रजा की रक्षा करनी चाहिए।
 
==धर्मशास्त्र का साहित्य==
 
==धर्मशास्त्र का साहित्य==
 
संस्कृत में लिखे गए धर्मशास्त्र का साहित्य वृहद है। इसे तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है–  
 
संस्कृत में लिखे गए धर्मशास्त्र का साहित्य वृहद है। इसे तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है–  
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#स्मृति, जिनमें [[मनुस्मृति]]<ref>दूसरी शताब्दी ई. पू. से दूसरी [[सदी]] ई.पू.</ref> संभवत: सर्वाधिक प्रसिद्ध है
 
#स्मृति, जिनमें [[मनुस्मृति]]<ref>दूसरी शताब्दी ई. पू. से दूसरी [[सदी]] ई.पू.</ref> संभवत: सर्वाधिक प्रसिद्ध है
 
#निबंध<ref>विभिन्न हिस्सों से लिए गए समृति के [[श्लोक|श्लोकों]] का सार</ref> और वृत्ति<ref>प्रत्येक [[ग्रंथ]] की टीका</ref>  
 
#निबंध<ref>विभिन्न हिस्सों से लिए गए समृति के [[श्लोक|श्लोकों]] का सार</ref> और वृत्ति<ref>प्रत्येक [[ग्रंथ]] की टीका</ref>  
निबंध और वृत्ति विधि-सलाहकारों के लिए बनाए गए न्याय से संबंधित कार्य हैं और विभिन्न सूत्रों तथा समृतियों के बीच सामंजस्य की दक्षता को प्रदर्शित करते हैं, ऐसे निबंधों में सबसे प्रसिद्ध मिताक्षरा है, जिसे [[चालुक्य]] [[विक्रमादित्य प्रथम|सम्राट विक्रमादित्य षष्ठ]] के दरबार में विघ्नेश्वर ने संकलित किया था।  
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निबंध और वृत्ति विधि-सलाहकारों के लिए बनाए गए न्याय से संबंधित कार्य हैं और विभिन्न सूत्रों तथा स्मृतियों के बीच सामंजस्य की दक्षता को प्रदर्शित करते हैं, ऐसे निबंधों में सबसे प्रसिद्ध मिताक्षरा है, जिसे [[चालुक्य]] [[विक्रमादित्य प्रथम|सम्राट विक्रमादित्य षष्ठ]] के दरबार में विघ्नेश्वर ने संकलित किया था।  
  
 
धर्मशास्त्र की तकनीकी मुख्यत: विभिन्न परंपराओं में तालमेल बैठाकर, यदि आवश्यक हो तो व्याख्या<ref>मीमांसा</ref> के लिए परंपरागत [[विज्ञान]] को उपयोग में लाकर प्राचीन [[ग्रंथ|ग्रंथों]], सिद्धांतों वाक्यों या ॠचाओं को बताना है। धर्मशास्त्र सुनिश्चित की जा सकने वाली परंपराओं को<ref>यदि [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के अनुसार इनका प्रयोग जीवन के सिद्धांतों के विरुद्ध न हो</ref> जीवन में लागू करने की अनुमति देता है। पूजा – पाठ करने वाले पुरोहित वर्ग के विशिष्ट समर्थन ने उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में सदियों से धर्मशास्त्र के कार्यान्वन को वैध बना दिया।
 
धर्मशास्त्र की तकनीकी मुख्यत: विभिन्न परंपराओं में तालमेल बैठाकर, यदि आवश्यक हो तो व्याख्या<ref>मीमांसा</ref> के लिए परंपरागत [[विज्ञान]] को उपयोग में लाकर प्राचीन [[ग्रंथ|ग्रंथों]], सिद्धांतों वाक्यों या ॠचाओं को बताना है। धर्मशास्त्र सुनिश्चित की जा सकने वाली परंपराओं को<ref>यदि [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के अनुसार इनका प्रयोग जीवन के सिद्धांतों के विरुद्ध न हो</ref> जीवन में लागू करने की अनुमति देता है। पूजा – पाठ करने वाले पुरोहित वर्ग के विशिष्ट समर्थन ने उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में सदियों से धर्मशास्त्र के कार्यान्वन को वैध बना दिया।
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पश्चिमी देशों के लोगों को सबसे पहले 18वीं शताब्दी में प्राच्यविद् और न्यायविद् सर विलियम जोन्स ने धर्मशास्त्र से परिचित कराया था। उनका अनुसरण करने वाले बहुत से लोगों, उदाहरणार्थ सर हैनरी मैने<ref>1822-88</ref> का मानना था कि धर्मशास्त्र एक तरीक़े से पुरोहितों की रचना थी, जिसका उद्देश्य [[शूद्र]] और अछूत जैसी निचली जाती के लोगों को उच्च जाति के लोगों के नियंत्रण में रखना था। [[जर्मनी]] और [[इटली]] के विद्वानों ने ख़ासकर, जी. बुहलर, जूलियस जॉली और गुइसेप्पे मज्ज़ारेल्ला ने धर्मशास्त्र के अध्ययन के बाद, इसके मनोवैज्ञानिक और सामाजिक महत्व पर ज़ोर दिया। भारतीय विद्वान पी.वी. काने ने इन परंपराओं का विश्वकोशीय अध्ययन तैयार किया।
 
पश्चिमी देशों के लोगों को सबसे पहले 18वीं शताब्दी में प्राच्यविद् और न्यायविद् सर विलियम जोन्स ने धर्मशास्त्र से परिचित कराया था। उनका अनुसरण करने वाले बहुत से लोगों, उदाहरणार्थ सर हैनरी मैने<ref>1822-88</ref> का मानना था कि धर्मशास्त्र एक तरीक़े से पुरोहितों की रचना थी, जिसका उद्देश्य [[शूद्र]] और अछूत जैसी निचली जाती के लोगों को उच्च जाति के लोगों के नियंत्रण में रखना था। [[जर्मनी]] और [[इटली]] के विद्वानों ने ख़ासकर, जी. बुहलर, जूलियस जॉली और गुइसेप्पे मज्ज़ारेल्ला ने धर्मशास्त्र के अध्ययन के बाद, इसके मनोवैज्ञानिक और सामाजिक महत्व पर ज़ोर दिया। भारतीय विद्वान पी.वी. काने ने इन परंपराओं का विश्वकोशीय अध्ययन तैयार किया।
 
   
 
   
धर्मशास्त्र संभवत: यहूदी क़ानून जितना ही पुराना है,<ref>यदि धर्मशास्त्र की जड़े वास्तव में [[वेद|वेदों]] तक हैं, तो और भी पुराना</ref> लेकिन इसके स्त्रोतों तक आसानी से पहुँचा जा सकता है, जो विविध है और कम कूटबद्ध हैं। इन पहलुओं और ख़ासतौर पर इनके अधिकतम प्रचलन व दीर्घजीविका के दृष्टिकोण से यह यह रोमन क़ानून से भिन्न है। भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने अपने विचारों को वास्तविक रूप में लागू करके और पूर्ववर्तियों की अवधारणाओं का परिचय देकर धर्मशास्त्र को प्रभावित किया। इसके अलावा विदेशी शासन के कारण कई त्वरित सामाजिक बदलाव आए और विभिन्न समायोजन आवश्यक हो गए। उदाहरण के लिए, विधिसम्मत तलाक़ की स्थिति तथा पिता की मृत्यु के बाद लड़कियों को भी लड़कों की तरह संपत्ति में समान हिस्सा मिलने के सवाल पर धर्मशास्त्र में कोई प्रावधान नहीं था। इसके लिये नए [[ग्रंथ]] लिखे जाने की आवश्यकता होती, जो संभव था। इसलिए शुरू में संक्षिप्त रूप से और बाद में<ref>1955-56</ref> व्यापक रूप से न्यायालयों में लागू क़ानूनी व्यवस्था को बदला गया। धीरे-धीरे न्यायधीशों का [[संस्कृत]] ज्ञान कम होता गया समकालीन तथा महानगरीय न्यायिक व सामाजिक अवधारणाओं ने प्राचीन ग्रंथों का स्थान ले लिया।  
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धर्मशास्त्र संभवत: यहूदी क़ानून जितना ही पुराना है,<ref>यदि धर्मशास्त्र की जड़े वास्तव में [[वेद|वेदों]] तक हैं, तो और भी पुराना</ref> लेकिन इसके स्त्रोतों तक आसानी से पहुँचा जा सकता है, जो विविध है और कम कूटबद्ध हैं। इन पहलुओं और ख़ासतौर पर इनके अधिकतम प्रचलन व दीर्घजीविका के दृष्टिकोण से यह रोमन क़ानून से भिन्न है। भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने अपने विचारों को वास्तविक रूप में लागू करके और पूर्ववर्तियों की अवधारणाओं का परिचय देकर धर्मशास्त्र को प्रभावित किया। इसके अलावा विदेशी शासन के कारण कई त्वरित सामाजिक बदलाव आए और विभिन्न समायोजन आवश्यक हो गए। उदाहरण के लिए, विधिसम्मत तलाक़ की स्थिति तथा पिता की मृत्यु के बाद लड़कियों को भी लड़कों की तरह संपत्ति में समान हिस्सा मिलने के सवाल पर धर्मशास्त्र में कोई प्रावधान नहीं था। इसके लिये नए [[ग्रंथ]] लिखे जाने की आवश्यकता होती, जो संभव था। इसलिए शुरू में संक्षिप्त रूप से और बाद में<ref>1955-56</ref> व्यापक रूप से न्यायालयों में लागू क़ानूनी व्यवस्था को बदला गया। धीरे-धीरे न्यायधीशों का [[संस्कृत]] ज्ञान कम होता गया समकालीन तथा महानगरीय न्यायिक व सामाजिक अवधारणाओं ने प्राचीन ग्रंथों का स्थान ले लिया।  
  
 
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Revision as of 06:48, 9 October 2011

dharmashastr ek sanskrit bhasha ka shabd hai jisaka arth "pavitr qanoon ya uchit acharan ka vijnan" hai. vidhishastr ki prachin bharatiy vyavastha, jo aj bhi bharat ke bahar rahane vale hianduoan[1] ke lie parivar qanoon ka adhar hai aur prachalan mean hai. isamean qanooni sanshodhan ho sakate haian. dharmashastr ka sidha sanbandh vaidhanik prashasan se nahian, balki pratyek duvidhapoorn sthiti mean acharan ke uchit marg se hai. phir bhi khasakar bad ke vivaranoan mean adalatoan aur unaki karyavahiyoan par vichar kiya gaya hai. paranparik vatavaran mean pale-badhe adhikaansh hiandoo, dharmashastr ke kuchh moolabhoot siddhaantoan se parichit haian. inamean yah manyata bhi shamil hai ki kartavy adhikar se b da hai. isake sath-sath ye kartavy jati vishesh mean ek vyakti ke janm ke anusar alag-alag hote haian aur mahilaean apane sabase nazadiki purush ke sanrakshan mean rahati haian tatha raja[2] ko apani praja ki raksha karani chahie.

dharmashastr ka sahity

sanskrit mean likhe ge dharmashastr ka sahity vrihad hai. ise tin vargoan mean vibhakt kiya ja sakata hai–

  1. sootr
  2. smriti, jinamean manusmriti[3] sanbhavat: sarvadhik prasiddh hai
  3. nibandh[4] aur vritti[5]

nibandh aur vritti vidhi-salahakaroan ke lie banae ge nyay se sanbandhit kary haian aur vibhinn sootroan tatha smritiyoan ke bich samanjasy ki dakshata ko pradarshit karate haian, aise nibandhoan mean sabase prasiddh mitakshara hai, jise chaluky samrat vikramadity shashth ke darabar mean vighneshvar ne sankalit kiya tha.

dharmashastr ki takaniki mukhyat: vibhinn paranparaoan mean talamel baithakar, yadi avashyak ho to vyakhya[6] ke lie paranparagat vijnan ko upayog mean lakar prachin granthoan, siddhaantoan vakyoan ya rrichaoan ko batana hai. dharmashastr sunishchit ki ja sakane vali paranparaoan ko[7] jivan mean lagoo karane ki anumati deta hai. pooja – path karane vale purohit varg ke vishisht samarthan ne upamahadvip ke vibhinn hissoan mean sadiyoan se dharmashastr ke karyanvan ko vaidh bana diya.

dharmashastr ka itihas

pashchimi deshoan ke logoan ko sabase pahale 18vian shatabdi mean prachyavidh aur nyayavidh sar viliyam jons ne dharmashastr se parichit karaya tha. unaka anusaran karane vale bahut se logoan, udaharanarth sar hainari maine[8] ka manana tha ki dharmashastr ek tariqe se purohitoan ki rachana thi, jisaka uddeshy shoodr aur achhoot jaisi nichali jati ke logoan ko uchch jati ke logoan ke niyantran mean rakhana tha. jarmani aur itali ke vidvanoan ne khasakar, ji. buhalar, jooliyas j aauli aur guiseppe majzarella ne dharmashastr ke adhyayan ke bad, isake manovaijnanik aur samajik mahatv par zor diya. bharatiy vidvan pi.vi. kane ne in paranparaoan ka vishvakoshiy adhyayan taiyar kiya.

dharmashastr sanbhavat: yahoodi qanoon jitana hi purana hai,[9] lekin isake strotoan tak asani se pahuancha ja sakata hai, jo vividh hai aur kam kootabaddh haian. in pahaluoan aur khasataur par inake adhikatam prachalan v dirghajivika ke drishtikon se yah roman qanoon se bhinn hai. bharat mean british aupaniveshik prashasan ne apane vicharoan ko vastavik roop mean lagoo karake aur poorvavartiyoan ki avadharanaoan ka parichay dekar dharmashastr ko prabhavit kiya. isake alava videshi shasan ke karan kee tvarit samajik badalav ae aur vibhinn samayojan avashyak ho ge. udaharan ke lie, vidhisammat talaq ki sthiti tatha pita ki mrityu ke bad l dakiyoan ko bhi l dakoan ki tarah sanpatti mean saman hissa milane ke saval par dharmashastr mean koee pravadhan nahian tha. isake liye ne granth likhe jane ki avashyakata hoti, jo sanbhav tha. isalie shuroo mean sankshipt roop se aur bad mean[10] vyapak roop se nyayalayoan mean lagoo qanooni vyavastha ko badala gaya. dhire-dhire nyayadhishoan ka sanskrit jnan kam hota gaya samakalin tatha mahanagariy nyayik v samajik avadharanaoan ne prachin granthoan ka sthan le liya.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. udaharanarth: pakistan, maleshiya aur poorvi afrika
  2. vistrit roop mean rajy
  3. doosari shatabdi ee. poo. se doosari sadi ee.poo.
  4. vibhinn hissoan se lie ge samriti ke shlokoan ka sar
  5. pratyek granth ki tika
  6. mimaansa
  7. yadi brahmanoan ke anusar inaka prayog jivan ke siddhaantoan ke viruddh n ho
  8. 1822-88
  9. yadi dharmashastr ki j de vastav mean vedoan tak haian, to aur bhi purana
  10. 1955-56

bahari k diyaan

sanbandhit lekh